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हिमाचल के सियासी रण में भाषा के गिरते स्तर का जिम्मेदार कौन ? क्या एक्शन और रिएक्शन की थ्योरी माहौल में घोलेगी कड़वाहट ? - Dignity of Language in Himachal - DIGNITY OF LANGUAGE IN HIMACHAL

Kangana Ranaut vs Vikramaditya Singh: हिमाचल प्रदेश के सियासी रण में भाषा का स्तर गिरता जा रहा है. छोटा पप्पू, बड़ा पप्पू से लेकर ढिंगा-चिका और गौमांस से लेकर ना जाने क्या-क्या बयान दिए जा रहे हैं. सवाल है कि आखिर भाषा के इस गिरते स्तर का जिम्मेदार कौन है ? आइये जानते हैं क्या कहते हैं हिमाचल के बुद्धिजीवी

Kangana Ranaut and Vikramaditya Singh
Kangana Ranaut and Vikramaditya Singh

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Apr 13, 2024, 6:07 PM IST

Updated : Apr 13, 2024, 8:04 PM IST

शिमला: बॉलीवुड क्वीन कंगना के बयानों ने हिमाचल ही नहीं देश भर के सियासी माहौल को गर्माया हुआ है. कंगना ने कांग्रेस के सुप्रीम लीडर कहे जाने वाले राहुल गांधी सहित हिमाचल के युवा कैबिनेट मंत्री को जिस तरह बड़ा पप्पू और छोटा पप्पू कहकर घेरा है, उससे देवभूमि में प्रचार के दौरान भाषा की मर्यादा पर नई बहस छिड़ गई है. शालीन नारों के साथ प्रचार अब दूर की कौड़ी बनता जा रहा है.

कंगना रनौत के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया भी हो रही है. सोशल मीडिया पर एक बहस छिड़ गई है. कुछ सोशल मीडिया यूजर्स कह रहे हैं कि पहले कांग्रेस ने कंगना के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की है. अब उस एक्शन का रिएक्शन हो रहा है. वहीं, दूसरे पक्ष के यूजर्स कह रहे हैं कि चुनाव में मुद्दों पर बात होनी चाहिए न कि एक-दूसरे पर अशोभनीय छींटाकशी. कंगना के बयान पर विक्रमादित्य सिंह ने पलटवार करते हुए सधी हुई प्रतिक्रिया दी. उसके बाद कंगना ने भी विक्रमादित्य सिंह को अपना छोटा भाई बता दिया. लोग कांग्रेस नेताओं को भी सलाह दे रहे हैं कि कोई क्या खाता है और उसका निजी जीवन में क्या सोचना है, इस पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.

वहीं, कांग्रेस समर्थक भी कह रहे हैं कि कंगना ने राहुल गांधी और विक्रमादित्य सिंह को जिस अंदाज में बड़ा पप्पू व छोटा पप्पू कहा है, वो किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा. इस तरह हिमाचल में कंगना के एक के बाद एक बयानों ने भाषा के संस्कारों और मर्यादा पर बहस छेड़ दे है.

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कांग्रेस ने उछाला बीफ वाला मुद्दा

वैसे तो भाजपा की तरफ से कंगना की टिकट घोषित होते ही सुप्रिया श्रीनेत ने एक बहुत ही अशोभनीय टिप्पणी कर दी थी. उस टिप्पणी पर बवाल मचा और सुप्रिया श्रीनेत सहित कांग्रेस को बैकफुट पर आना पड़ा. उसके बाद कंगना के बीफ खाने वाले एक पुराने ट्वीट को सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया में प्लेस किया गया. इस पर हिमाचल में खूब टिप्पणिया होने लगीं. विक्रमादित्य सिंह ने भी 5 अप्रैल को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक पोस्ट डाली. उसमें लिखा था- 'हिमाचल देवी-देवताओं का पवित्र स्थल है देवभूमि है, जहां गोमांस का सेवन करने वाले चुनाव लड़ें यह हमारी संस्कृति के लिए चिंता का विषय है. कांग्रेस समर्थकों की तरफ से भी बीफ वाले मुद्दे को उछाला जाने लगा.

विक्रमादित्या सिंह ने कंगना पर किया वार

कंगना ने किया पलटवार

इसके बाद मनाली में कंगना ने कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला. कंगना ने राहुल गांधी और विक्रमादित्य सिंह को घेरते हुए उन्हें बड़ा पप्पू व छोटा पप्पू कह डाला. उसके बाद से ही भाषा की मर्यादा पर चर्चा होने लगी है. हालांकि अगले ही दिन यानी शुक्रवार को कंगना ने कुल्लू में अपनी बातों को घुमाकर नए सिरे से छोटा पप्पू, राजा बेटा, राजा बाबू जैसे शब्दों का प्रयोग विक्रमादित्य सिंह के लिए कर दिया. कंगना ने कहा कि "विक्रमादित्य सिंह उनके छोटे भाई हैं. अगर कोई अपने छोटे भाई को राजा बाबू या राजा बेटा कह दे तो इसमें क्या अभद्रता है. अगर विक्रमादित्य सिंह को हमने छोटा पप्पू कह दिया तो इसमें नाराज होने वाली क्या बात है".

कंगना रनौत बनाम विक्रमादित्य सिंह

यही नहीं, कंगना ने अपनी बात को नया मोड़ देते हुए कह दिया कि विक्रमादित्य सिंह भाजपा में आएंगे और वे एक साथ मंच पर बैठेंगे. वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने भी विक्रमादित्य सिंह पर निशाना साधा है. जयराम ठाकुर ने कहा कि एक तरफ तो विक्रमादित्य सिंह कंगना को अपनी बड़ी बहन बताते हैं और साथ में उन्हें गाली भी दी जाती है. इससे पहले कंगना ने बीफ वाले विवाद पर जब विक्रमादित्य सिंह पर हमला बोलते हुए सबूत मांगे थे तो विक्रमादित्य सिंह ने उन्हें पुराने ट्वीट याद दिलाए थे. खैर, इस सारे प्रकरण में भाषा की मर्यादा और देवभूमि के संस्कारों पर छिड़ी बहस में यहां के प्रबुद्ध नागरिक भी अपना पक्ष रख रहे हैं.

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भाषा के गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार कौन है ?

हिमाचल की राजनीति को चार दशक से परख रहे लेखक-संपादक और राजनीतिक टिप्पणीकार गुरमीत बेदी कहते हैं कि "चुनाव में जो शब्दों की मर्यादा लांघ जाते हैं और प्रतिद्वंद्वी का कुछ भी नामकरण करके उसका उपहास उड़ाने की कोशिश करते हैं, देवभूमि की जनता उसे पसंद नहीं करती है."

वहीं, हिमाचल की राजनीति पर बेबाक टिप्पणियों के लिए विख्यात लेखिका पौमिला ठाकुर लिखती हैं "मांसाहारी और शाकाहारी होना किसी को परखने की कोई कसौटी नहीं होनी चाहिए. कंगना रणौत में कई खूबियां हैं, वो उर्जावान, ठहरकर, साफगोई से अपनी बात कहने वाली है, लेकिन पप्पू शब्द का प्रयोग कर कंगना ने खुद को निचले पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया है. पप्पू व फेंकू जैसे नामकरण करने वाले स्वस्थ मानसिकता के नहीं हो सकते हैं. विक्रमादित्य सिंह ने भी कोई गरिमापूर्ण शब्द नहीं कहे हैं. आने वाले समय में दोनों को कई बार आमने-सामने होना होगा, ऐसे में भाषा की मर्यादा रखने में ही भलाई है."

वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा का कहना है कि "हिमाचल के चुनाव प्रचार में इस तरह की भाषा अकसर प्रयोग नहीं होती है. हिमाचल में सोशल मीडिया पर नेताओं को चाहे कुछ भी लिखा जाए, लेकिन सार्वजनिक रूप से चुनाव प्रचार के दौरान पप्पू जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं हुआ है. ये देवभूमि के संस्कारों के अनुरूप नहीं है. बातों को तोड़मरोड़ कर पेश करना और है, लेकिन सीधे-सीधे किसी नेता का नामकरण करने को प्रदेश वासी सहजता से नहीं लेंगे. ऐसे में पार्टी विशेष या प्रत्याशी विशेष को नुकसान उठाना पड़ सकता है. चुनावों में कई बार आपत्तिजनक नारे भी लगते हैं, लेकिन जनता उन नारों को पसंद नहीं करती. पीएम नरेंद्र मोदी के लिए मौत का सौदागर जैसे बयानों का हश्र चुनावों में सभी ने देखा है. ऐसे में कंगना को भी सोच-समझकर बयान देना चाहिए."

कवि-संपादक नवनीत शर्मा का कहना है कि "कभी शालीन नारे चुनाव प्रचार की पहचान होते थे, लेकिन अब भाषा की मर्यादाएं टूटना आम हो गया है. वैसे देश ने एक शेरनी, सौ लंगूर चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर जैसे नारे भी देश ने सुने हैं. तिलक-तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार जैसे नारों ने भी देश में भाषा के संस्कारों और शालीन नारों को लेकर बहस होती आई है. फिलहाल, कंगना के बयानों के कारण मंडी सीट देश में लोकसभा चुनाव के दौरान सभी के लिए चर्चा का केंद्र बनी है. यदि ऐसे ही बयान आने वाले समय में भी दिए जाते रहे तो हिमाचल के वोटर्स कड़ा प्रतिरोध करेंगे."

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Last Updated : Apr 13, 2024, 8:04 PM IST

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