शिमला: देशभर में आज से दिवाली पर्व की शुरुआत हो चुकी है. 31 अक्टूबर को हर्षोल्लास के साथ दिवाली का पर्व मनाया जाएगा. दिवाली को देखते हुए प्रदेश भर में बाजार चमचमाती लाइटों और लड़ियों से सज गए हैं. पटाखे जलाना दिवाली के त्योहार का अहम हिस्सा है. ज्यादातर लोग दिवाली पर पटाखे जलाकर खुशी मनाते हैं. खासकर युवाओं में पटाखे फोड़ने और आतिशबाजी को लेकर काफी अधिक उत्साह रहता हैं, लेकिन जिस तरह प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है, उससे सरकारें अब काफी अधिक अलर्ट हैं.
दिवाली के अगले दिन प्रदूषण उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है. यहां तक कि दिल्ली जैसे शहरों में तो सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है.ऐसे में प्रदूषण के खतरे को देखते हुए हिमाचल समेत देशभर के कई राज्यों में ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति दी गई है. प्रदेश की राजधानी शिमला सहित अन्य सभी जिलों में दिवाली पर प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों के बेचने पर बैन लगाया गया है. हिमाचल में सिर्फ ग्रीन पटाखे फोड़ने की अनुमति दी गई है. ये इसलिए कि ग्रीन क्रैकर्स या हरे पटाखे कम प्रदूषण फैलाते हैं. इन पटाखों में ऐसे कच्चे माल का उपयोग होता है जो प्रदूषण कम फैलाते हैं.
क्या होते है ग्रीन पटाखे?
ग्रीन पटाखों में फ्लावर पॉट्स, पेंसिल, स्पार्कल्स और चक्कर आदि आते हैं. ग्रीन पटाखे कम एयर पॉल्यूशन करते हैं. ग्रीन पटाखों में रॉ मटेरियल का कम इस्तेमाल होता है इसलिए ये आकार में भी छोटे होते हैं. इन पटाखों में पार्टिकुलेट मैटर (PM) को कम रखा जाता है, ताकि इनके फटने के बाद कम वायु प्रदूषण हो. ग्रीन क्रैकर्स 20 फीसदी पार्टिकुलेट मैटर निकलता है, वहीं 10 फीसदी गैसें ही निकलती हैं. ये दूसरे पटाखों के मुकाबले कम प्रदूषण फैलाते हैं और पर्यावरण के साथ सेहत के लिए भी कम हानिकारक होते हैं, लेकिन बाजार में कई तरह के ग्रीन पटाखे उपलब्ध हैं. ग्रीन पटाखों की आड़ में नकली कैक्रर्स भी बेचे जाते हैं. नकली ग्रीन पटाखे सिंथेटिक पदार्थों से बने होते हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं.
ग्रीन पटाखों के असली और नकली की पहचान करने के लिए (NEERI) नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूड ने कुछ मानक तैयार किए हैं. इन मानकों को पूरा करने वाली पटाखा निर्माता कंपनियों को सर्टिफिकेट जारी किया जाता है. ऐसे में कंपनियां पटाखे के बॉक्स पर क्यूआर कोड लगा सकती हैं.
ग्रीन पटाखे अलग कैसे
नॉर्मल पटाखों में बारूद और अन्य ज्वलनशील कैमिकल होते हैं, ये जलाने पर फटते हैं और भारी मात्रा में काला धुंआ, गैसें और अन्य प्रदूषक तत्व पर्यावरण में छोड़कर हवा को जहरीला बना देते हैं. वहीं, ग्रीन पटाखों में हानिकारक कैमिकल नहीं होते हैं. इससे वायु प्रदूषण भी कम होता है. ग्रीन पटाखों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले प्रदूषणकारी कैमिकल जैसे एल्यूमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन को या तो क्रैकर्स में से निकाल दिया जाता है. ग्रीन पटाखों में हानिकारक प्रदूषक गैसों के उत्सर्जन को 15 से 30 फीसदी तक कम किया गया होता है. इससे ध्वनि प्रदूषण भी कम होता है. भारत में इस तरह के तीन कैटेगरी में मिलते हैं जिनके नाम हैं स्वास, स्टार और सफल.
- SWAS पटाखे धूल के कणों को सोख लेते हैं और उसे भाप में बदल देते हैं, ये कम एयर पॉल्यूशन करते हैं.
- SAFAL पटाखों में एल्युमिनियम की कम मात्रा होती है इसलिए ये कम आवाज करते हैं.
- STAR श्रेणी के पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर मौजूद नहीं होता. इसके कारण जहरीला धुएं सहित वायु प्रदूषण करने वाले दूसरे हानिकारक कण निकलने की संभावना बहुत कम होती है.
कैसे करें पहचान