चंडीगढ़: इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव में एससी वोट बैंक की लड़ाई अहम होने वाली है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हरियाणा में अगर बड़े वोट बैंक की बात की जाए, तो उसमें ओबीसी वोट बैंक 30 फीसदी से ज्यादा है. जबकि जाट वोट बैंक भी करीब 24 फीसदी है. वहीं एससी वोट बैंक की बात की जाए, तो ये करीब 21 फीसदी है. वहीं कांग्रेस इसमें सभी दलों से मजबूत दिख रही है.
क्यों हुई बीजेपी एससी वोट बैंक पर मंथन को मजबूर? बात सत्ताधारी बीजेपी की हो या फिर क्षेत्रीय दल इनेलो और जेजेपी की. इनसे कहीं ना कहीं एससी वोट बैंक दूर होता दिखाई देता है. लोकसभा चुनाव की बात करें तो हरियाणा की 17 एससी रिजर्व विधानसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ 4 पर बढ़त बना पायी. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पांच विधानसभा पर जीत दर्ज की थी. जिसके बाद लगातार बीजेपी इस वोट बैंक को साधने में जुट गई. लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी इस वोट बैंक को साधने के लिए रणनीति बदलने पर मजबूर हो गई.
क्षेत्रीय दल भी पड़े एससी वोट बैंक साधने में कमजोर: वहीं जेजेपी और इनेलो ने भी इसके लिए गठबंधन के सहारे सियासी समीकरण बैठाने की कोशिश की है. क्योंकि इन क्षेत्रीय दलों से भी एससी वोट बैंक दूर हुआ है. जेजेपी उसके विधायकों के जाने से कमजोर पड़ी है. बड़ी बात ये है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जेजेपी ने चार एससी सीटें जीती थीं, लेकिन इनमें तीन एससी आरक्षित सीट के विधायक पार्टी से किनारा कर चुके हैं. जो ये बताने के लिए काफी है कि जेजेपी एससी वोट बैंक को साधने में नाकाम हुई है. लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी देखने को मिला है कि एससी वर्ग का क्षेत्रीय दलों जेजेपी और इनेलो में लगातार विश्वास कम हुआ है.
बीएसपी और इनेलो पार्टी का साथ बदल पाएगा हालत? क्षेत्रीय दल इनेलो और जेजेपी इस बात को जानती है कि एससी वोट बैंक उनकी विधानसभा चुनाव में बेहतर परफॉर्मेंस के लिए कितना अहम है. इसी की वजह से दोनों दलों ने रणनीति बदलते हुए विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन की रणनीति अपनाई है. इनेलो ने जहां बीएसपी के साथ गठबंधन किया है. वहीं ने जेजेपी चंद्रशेखर रावण की पार्टी एएसपी के साथ गठबंधन किया है. हालांकि इससे एससी वोट बैंक में ये दल सेंध लगा पाएंगे, इसका पता तो चुनावी नतीजों से सामने आएगा.