रायपुर: राजस्थान मेवाड़ के राजा उदय सिंह के यहां वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था. ऐसी मान्यता है महाराणा प्रताप का जन्म 1540 में हुआ. महाराणा प्रताप की माता का नाम महारानी जयवंता बाई था. महाराणा प्रताप उदय सिंह के ज्येष्ठ संतान थे. महाराणा प्रताप वीरता, शौर्य, पराक्रम, धैर्य, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रवादी और एक महान बहादुर देश प्रेमी होने की अवधारणा को रखते हैं.महाराणा प्रताप ने अकबर की गुलामी को सीधे ही ठुकरा दिया था.
9 जून को मनाई जाएगी महाराणा प्रताप जयंती:महाराणा प्रताप ने राष्ट्रभक्ति राष्ट्र स्वाभिमान से ओतप्रोत होकर अकबर जैसे बड़े वीर राजा से हल्दीघाटी जैसा महायुद्ध लड़ा. हल्दीघाटी का युद्ध एक ऐतिहासिक युद्ध था. हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीत हासिल की थी. इस युद्ध में उनके देश प्रेम की भावना की जीत हुई थी. उन्होंने कभी भी अकबर की गुलामी को स्वीकार नहीं किया. रविवार 9 जून को महाराणा प्रताप की जयंती है. इस दिन कई जगहों पर उनकी जयंती को धूमधाम से मनाया जाएगा.
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष 9 जून रविवार रवि पुष्य नक्षत्र सर्वार्थ सिद्धि योग पुनर्वसु नक्षत्र और गर और ववकरण के सुंदर संयोग में महाराणा प्रताप की जयंती मनाई जाएगी. इस दिन पुष्य नक्षत्र जैसा अमृत नक्षत्र सुंदर संयोग बन रहा है. इसके साथ ही मिथुन और कर्क राशि का चंद्रमा प्रभावशील रहेगा. ध्वज नामक आनंद योग बन रहा है. यह दिन अपने आप में विशिष्ट दिन है. सभी 27 नक्षत्र में पुष्य नक्षत्र सबसे विशिष्ट नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में सभी कार्य शुभ एवं सिद्ध होते हैं.-पंडित विनीत शर्मा
अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिए थे महाराणा:जानकारों की मानें तो मुगल सम्राट अकबर ने बार-बार महाराणा प्रताप के पास अपने दूत भेजकर उन्हें अपने पक्ष में करना चाहा. सम्राट अकबर ने अलग-अलग समय में चार विशिष्ट अलग-अलग दूत को भेजकर महाराणा प्रताप को अपने खेमे में मिलाने की चेष्टा की. हालांकि देश प्रेम के प्रतीक वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप ने अकबर के निमंत्रण को ठुकरा दिया. महाराणा प्रताप ने पूरी ताकत से हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा.
अंतिम वक्त तक नहीं मानी हार: युद्ध के समय हल्दीघाटी में खून की नदियां बहने लगी. दोनों तरफ से बहुत सारे सैनिक मारे गए और हल्दीघाटी में सैद्धांतिक नैतिक और मूल्य के आधार पर महाराणा प्रताप की विजय होती है. महाराणा प्रताप सूखी रोटी खाकर जीवन गुजारा करते थे. वन वन भटकते रहे और अपने स्वाभिमान को और देश प्रेम की भावना को कभी भी गिरवी नहीं रखा. बहुत सारे राजा मुगल सम्राट के अधीन अपनी दासता स्वीकार कर रहे थे, लेकिन शौर्य और स्वाभिमान के रक्षक महाराणा प्रताप ने अपना मस्तक ऊंचा रखकर लड़ाई लड़े.