नई दिल्ली: उत्तराखंड में हर साल वनाग्नि के मामले बढ़ते जा रहे हैं. बावजूद इसके उत्तराखंड के पास वनाग्नि पर काबू पाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है. दूसरे शब्दों में कहें तो जंगलों में लगी पर काबू पाने के लिए उत्तराखंड से पास बुनियादी ढांचे की कमी है. दरअसल, ये सब बातें ऋषिकेश-देहरादून रोड के किनारे बड़कोट वन क्षेत्र में पत्तियों को जलाने के मामले में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में कही गई है. इससे पहले अप्रैल में एनजीटी ने मामले में मदद के लिए वकील गौरव बंसल को एमिकस क्यूरी (न्यायालय का मित्र) नियुक्त किया था. जिन्होंने अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी.
ये रिपोर्ट पिछले हफ्ते एनजीटी को सौंपी गई है. रिपोर्ट पर 14 अक्टूबर की तारीख अंकित है. एमिकस क्यूरी ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में उत्तराखंड में जंगलों की आग पर काबू पाने में सबसे बड़ी बाधा और अन्य समस्याओं का जिक्र किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में वनाग्नि प्रबंधन के लिए जरूरी बुनियादी ढांचे की कमी है. इसमें अग्निशमन उपकरण (जैसे- प्रोटेक्टिव चश्मे, प्रोटेक्टिव गियर, हथियार आदि) के अलावा दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए वाहनों तक का कमी है. इतना ही नहीं, इमरजेंसी में काम आने वाला वायरलेस सेट और सैटेलाइट फोन तक वन कर्मियों के पास नहीं है.
वन विभाग की चुनौतियां:एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में विस्तार के बताया गया है कि वनाग्नि के दौरान वन विभाग के कर्मचारियों को किस-किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा वन विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है. वनाग्नि जैसी घटनाओं को रोकने के लिए अग्नि प्रबंधन को मजबूत करना होगा. वहीं फायर लाइन और उनका रखरखाव भी जरूरी है.