देहरादून: 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था. उस वक्त देश का 40 फीसदी हिस्सा ऐसा था, जो कि रियासतों के अंतर्गत आता था और पूरे देश में तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिसमें उत्तराखंड की टिहरी रियासत भी शामिल थी. टिहरी रियासत की स्थापना 1816 में हुई थी. महाराज सुदर्शन शाह ने टिहरी शहर को बसाया था. आज के टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी को मिलाकर बनने वाली टिहरी रियासत में कई प्रतापी राजा हुए. 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ था.
हिमालय क्षेत्र की सभी रियासतों में सबसे बड़ी थी टिहरी रियासत:वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने बताया कि देश की आजादी के वक्त और उससे पहले भारत में 1935 का गवर्नर ऑफ इंडिया एक्ट से सभी रियासतें गबन होती थी. यह 26 जनवरी 1950 तक चला और उसके बाद स्वतंत्र भारत का नया संविधान बना. पूरे देश में उस समय तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिनकी संप्रभुता यानी पैरामाउंटसी अंग्रेजों के हाथ में थी. देश की आजादी के वक्त सबसे बड़ी रियासत निजाम की हैदराबाद रियासत थी, जिसका 41 तोपों की सलामी का स्टेटस था. उन्होंने कहा कि ग्वालियर सहित कई अन्य बड़ी प्रिंसली स्टेट को 21 तोपों के इस्लामी का स्टेटस था, जबकि टिहरी के राजा को सात तोपों की सलामी का स्टेटस प्राप्त था. यही नहीं टिहरी रियासत के राजा केवल अपनी रियासत के नहीं, बल्कि हिमालय बेल्ट में पड़ने वाले 35 स्टेट, जिसमें हिमाचल सहित कई अन्य रियासतें थी. उनका नेतृत्व टिहरी के राजा करते थे, इसलिए टिहरी के राजा को महाराज का दर्जा दिया जाता था.
शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में नहीं दिखाई रूचि:15 अगस्त 1947 का जो इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 आया, तो उसमें सभी प्रिंसली स्टेट के लिए प्रावधान किया गया कि वह स्वतंत्र हैं और अपनी इच्छा के अनुसार वह भारत विलय का फैसला ले सकतें हैं. आजादी के वक्त केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सेक्रेटरी पीपी मेनन ने सभी रियासतों और राज्यों के एकीकरण की जिम्मेदारी उठाई. बताया जाता है कि शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन टिहरी रियासत के लोगों ने देश को मिली आजादी को एक बेहतर मौका समझते हुए राजशाही के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया.इस आंदोलन में परिपूर्णानंद पैनोली महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तमाम आंदोलन चले और जनता ने एक जवाबदेय सरकार की मांग की.