नई दिल्ली:राजधानी के इलाके अपने आप में किसी न किसी विशेषता या कहानी को समेटे हुए हैं. इनमें से कुछ भले ही भूली बिसरी याद बनकर रह गई हो, लेकिन समय आने पर वह भी ताजा हो ही जाया करती हैं. कुछ ऐसा ही किस्सा है तितारपुर गांव के रावण वाले बाबा का. फिलहाल वे इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन वे अपने हुनर के माध्यम से आज भी जिंदा हैं.
दरअसल दिल्ली का यह इलाका रावण के पुतलों के लिए मशहूर है. यहां रहने वाले लोग आजादी के पहले से रावण के पुतले बना रहे हैं. इसमें केवल पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां वर्षों पहले एक बाबा रहा करते थे, जिन्हें लोग रावण वाले बाबा के नाम से जानते थे. उन्हीं ने लोगों को रावण के पुतले बनाने की कला सिखाई.
धोती कुर्ता पहनते थे बाबा:सालों से रावण के पुतले बना रहे अजय ने बताया कि उनके पिता ने रावण वाले बाबा से पुतले बनाने के गुण सीखे थे. तितारपुर गांव में सबसे पहला पुतला बाबा ने ही बनाया था. इसके बाद धीरे-धीरे सभी ने उनसे रावण का पुतला बनाना सीखा और आज यहां हजारों परिवार रावण बनाने का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि बाबा कुर्ता और धोती पहना करते थे उनके कुर्ते पर जय श्री राम लिखा होता था. अब जहां पर टैगोर गार्डन मेट्रो स्टेशन है वहां बाबा की एक छोटी सी कुटिया हुआ करती थी.
घर के बाहर लगाई तस्वीर: उन्होंने आगे बताया कि, लोग रावण का पुतला बेचने के लिए यही बताते हैं कि उन्होंने यह काम रावण वाले बाबा से ही सीखा है, भले ही यह सच हो या नहीं. ऐसा इसलिए है कि दिल्ली के कई पुराने इलाकों में यहां से रावण के पुतले जाते हैं. वह लोग रावण वाले बाबा के शिष्यों से ही पुतला खरीदना पसंद करते हैं. इसलिए मैंने घर के बाहर पिता जी और बाबा की साथ ही तस्वीर लगा रखी है, ताकि ग्राहक को इश बात की संतुष्टी रहे की हम 'बाबा' के चेले हैं.
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गांव के लोग मानते हैं भगवान:उनके अलावा सुल्तान सिंह ने बताया, तितारपुर गांव में रावण वाले बाबा जाना माना नाम हैं. इससे पहले अर्थी का भी काम किया करते थे. उनसे पुतला बनाना सीखकर आज हजारो लोग अपनी आजीविका चला रहे हैं. वह तितारपुर गांव के लोगों के लिए भगवान थे. अब समय ऐसा आ गया है कि जो इस साल कारीगर के तौर पर काम कर रहा है, वो अगले साल खुद रावण के पुतले बनाने लगता है. बाबा हिंदू थे और उत्तर प्रदेश के सिकंदराबाद से आकर दिल्ली में बसे थे. वह केवल रावण ही नहीं बांस से बनने वाले कई आकर्षक सामान भी बनाया करते थे. उनकी शादी नहीं हुई थी और वह साधुओं की तरह जीवन जिया करते थे.
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