नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा:ग्रेटर नोएडा के दादरी पुलिस ने फर्जी क्रेडिट कार्ड और लोन कराने वाले गैंग के दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने उनके कब्जे से भारी संख्या में डेबिट-क्रेडिट कार्ड, बैंक पासबुक, आधार कार्ड, पैन कार्ड और चेक बुक सहित अन्य सामान और एक टाटा हैरियर कार बरामद की है. इन आरोपियों ने पिछले 2 साल में 15 करोड़ से ज्यादा का फर्जीवाड़ा किया है. इसके चलते इस गिरोह में बंटवारे को लेकर आपस में विवाद हुआ. बंटवारे के विवाद में साथियों ने मिलकर गिरोह के सरगना की हत्या कर दी. इस मामले में पुलिस ने अब तक पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है. वहीं, दो आरोपी अभी फरार हैं.
दरअसल, दादरी थाना क्षेत्र स्थित हायर कंपनी के पास 7 अक्टूबर को एक शव मिला. जब पुलिस ने इस मामले में शव की जांच शुरू की तो उसकी पहचान अमित कुमार सिंह के रूप में हुई. अमित ग्रेटर नोएडा वेस्ट में रहता था. उसने मैंफर्श फैशन प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई. इस कंपनी में उसने अपने कई दोस्तों को जोड़ा और फिर फर्जी तरीके से लोन दिलाकर फर्जीवाड़ा शुरू किया. आपस में काम करने वाले सभी दोस्तों में डेढ़ करोड़ रुपए के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ. इसके बाद उसके चार दोस्तों ने मिलकर अमित कुमार सिंह की हत्या कर दी.
पुलिस ने इस हत्या का खुलासा करते हुए उसके तीन दोस्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. एक हत्या का आरोपी फरार है. हत्या की साजिश में शामिल और फर्जी लोन कराने वाले दो आरोपियों को दादरी पुलिस ने मंगलवार को आरवी नॉर्थलैंड चौराहे के नजदीक सीएनजी पम्प के पास से गिरफ्तार किया है.
हत्या की साजिश और उसके साथ फर्जी लोन के मामले में दो गिरफ्तार:ग्रेटर नोएडा डीसीपी साद मियां खान ने बताया कि अमित कुमार सिंह की हत्या की साजिश और उसके साथ फर्जी लोन दिलाने के मामले में दादरी पुलिस ने दो शातिर आरोपियों को गिरफ्तार किया है. उनकी पहचान हरियाणा के फरीदाबाद निवासी गोविंद सिंह और बिसरख थाना क्षेत्र के अंतर्गत इको विलेज वन सोसायटी निवासी विशाल चंद्र सुमन के रूप में हुई है.
आरोपियों ने पुलिस पूछताछ में बताया कि अमित कुमार सिंह और उनका यह गिरोह आधार कार्ड और रेंट एग्रीमेंट के आधार पर फर्जी तरीके से नाम, पता और मोबाइल नंबर बदलकर फर्जी दस्तावेज बनाते थे. इसके बाद मैंफर्स प्राइवेट लिमिटेड में लोन लेने वाले व्यक्ति को पहले नौकरी देते थे. उसके बाद कंपनी की पे स्लिप के आधार पर बैंक में उसका खाता खुलवाते थे और फिर 6 से 9 महीने तक सैलरी के नाम पर एक मोटी रकम उसके बैंक खाते में ट्रांसफर करते थे. जिससे उसका सिविल स्कोर बढ़ जाए. हालांकि, उसके खाते में भेजी गई सैलरी के नाम पर रकम को यह आरोपी वापस नकद ले लेते थे.