गणेश चतुर्थी विशेष (वीडियो ईटीवी भारत जयपुर) जयपुर: धार्मिक नगरी जयपुर की बसावट ही प्रथम पूज्य गणेश जी महाराज को विराजमान कराकर की गई थी. नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर बिना सूंड वाले गणेश जी तभी से जयपुर की निगरानी कर रहे हैं. इसी तरह जयपुर के परकोटे का निर्माण करते समय प्रकट हुए परकोटे वाले गणेश जी, सूरज की पहली किरण जिनके चरणों में पड़ती है ऐसे सर्प बंधेज वाले सिद्धिविनायक, भस्म से तैयार हुए नहर के गणेश जी और मोती डूंगरी (शंकरगढ़ी) की तलहटी में विराजमान मोती डूंगरी गणेश जी जयपुर के प्रमुख गणेश मंदिर हैं. यहां हर बुधवार और गणेश चतुर्थी पर भक्तों का तांता लगता है और दर्शन करने वालों की मनोकामना पूर्ण होती है.
मोती डूंगरी गणेश मंदिर : देश भर में ऐसे तो हजारों गणेश मंदिर हैं, लेकिन जब बात सबसे प्रसिद्ध मंदिरों की होती है तो इसमें मोती डूंगरी गणेश मंदिर का नाम भी लिया जाता है. मोती डूंगरी (शंकरगढ़ी) की तलहटी में स्थित प्रथम पूज्य का ये मंदिर जयपुर में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है. इसकी स्थापना जयपुर के बसने के कुछ समय बाद 1761 में की गई थी. यहां मावली (गुजरात) से प्रतिमा लाई गई. मावली तत्कालीन महाराजा माधो सिंह प्रथम की पटरानी का पीहर था.
मोती डूंगरी गणेश मंदिर (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) इस प्रतिमा को जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल लेकर आए थे और उनकी देखरेख में इस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई. बताया जाता है कि ये प्रतिमा 500 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. मान्यता के अनुसार भगवानी गणेश की यह प्रतिमा बैलगाड़ी में लाई जा रही थी और शंकरगढ़ी के नीचे ये बैलगाड़ी स्वत: रुक गई. जहां बैलगाड़ी रूकी वहीं मंदिर का निर्माण करने का फैसला लिया गया.
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गढ़ गणेश मंदिर : जयपुर में नाहरगढ़ की पहाड़ी पर एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान गणेश के बाल स्वरूप की प्रतिमा स्थापित है. यानि यहां बिना सूंड वाले गणेश जी की पूजा-अर्चना होती है. जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह ने अश्वमेघ यज्ञ करवा कर गणेश जी के बाल्य स्वरूप वाली इस प्रतिमा को गढ़ गणेश जी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठित करवाई थी. इसके बाद ही जयपुर की नींव रखी गई थी. गढ़ गणेश मंदिर के पास खड़े होकर देखने से लगभग पूरे जयपुर का विहंगम दृश्य दिखाई देता है.
गढ़ गणेश मंदिर (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) मंदिर के महंत प्रदीप औदिच्य ने बताया कि सिटी पैलेस के इन्द्र महल से महाराजा दूरबीन से भगवान के दर्शन करके अपने दिन की शुरुआत करते थे. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए हर रोज एक सीढ़ी का निर्माण किया गया था. इस तरह पूरे साल तक निर्माण चलता रहा और 365 सीढ़ियां बनीं. इस मंदिर के निर्माण के समय सवाई जयसिंह ने वास्तु का भी ध्यान रखा था, शहर की बसावट भी इसी वास्तु के आधार पर की गई.
परकोटे वाले गणेश जी : विश्व विरासत में शामिल जयपुर परकोटे के निर्माण के दौरान चांदपोल गेट के बाहर परकोटे में गणेशजी प्रकट हुए. उसी समय यहां भगवान गणेशजी का मंदिर बनवाकर जयपुर के विकास की प्रार्थना की गई. जयपुर स्थापना से लेकर आज भी ये गणपति लोगों के बीच आस्था का केन्द्र बना हुआ है. मंदिर युवाचार्य पं. अमित शर्मा ने बताया कि जयपुर की बसावट के समय का ये मंदिर है. करीब 300 साल पुरानी ये मूर्ति परकोटे के निर्माण के दौरान प्रकट हुई थी. ये मूर्ति प्राकृतिक और चमत्कारिक मूर्ति हैं. इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है. जयपुर के विकास के लिए इनकी पूजा शुरू हुई और धीरे-धीरे गणेशजी की आस्था बढ़ती चली गई.
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नहर के गणेश जी : नाहरगढ़ की तलहटी में करीब 150 साल पुराना नहर के गणेश मंदिर मौजूद है. तंत्र साधना करने वाले ब्रह्मचारी बाबा की ओर से किए गए यज्ञ की भस्म से भगवान गणेश का ये विग्रह व्यास राम चंद्र ऋग्वेदी ने प्राण प्रतिष्ठित किया था. उन्हीं की पांचवी पीढ़ी आज भी यहां पूजा-आराधना कर रही है. खास बात ये है कि यहां दाहिनी तरफ सूंड और दक्षिण विमुख भगवान गणेश पूजे जाते हैं. इस संबंध में मंदिर महंत जय कुमार शर्मा ने बताया कि दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी को सिद्धिविनायक माना जाता है, क्योंकि ये प्रतिमा भस्म से तैयार हुई है इसलिए यहां भगवान का अभिषेक दूर्वा से किया जाता है. यहां मंदिर के नीचे वर्षाकाल के अंदर पहाड़ी क्षेत्र से वृहद पानी आया करता था, जिसकी नहर महीनों तक चलती थी. इसी नहर के चलते भगवान गणेश के इस धाम को नहर के गणेश जी कहा गया.
नहर के गणेश जी (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) श्वेत सिद्धिविनायक मंदिर : जयपुर में सूर्य की पहली किरण श्वेत सिद्धि विनायक मंदिर में भगवान गणेश के चरणों में मंगल अभिषेक करती है. यहां गणेश प्रतिमा की स्थापना तांत्रिक विधि-विधान की गई थी. गणपति के पांच सर्पों का बंधेज है. गणेश जी के चारों भुजाओं में सर्पाकार मणिबंध और पैरों में पैजनी है. यही नहीं, गणेश जी ने सर्प की ही जनेऊ धारण की हुई है.
श्वेत सिद्धिविनायक मंदिर (फोटो ईटीवी भारत जयपुर) मंदिर प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार यहां भगवान गणेश और रिद्धि-सिद्धि के हाथों में सोने के कलश हैं. ये गणेश प्रतिमा तांत्रिक प्रतिमा है. यहां तंत्र का मतलब है, तत्काल फल देने वाली प्रतिमा से है. प्रदेश का ये एकमात्र मंदिर है जहां भक्त अपने हाथों से भगवान गणेश का दुग्ध अभिषेक करते हैं. करीब 27 साल पहले तांत्रिक चंद्रास्वामी के आह्वान पर यहां भी भगवान गणेश को दूध पिलाने के लिए लोगों की भीड़ लग गई थी. लोग गिलास में दूध लिए देर रात तक अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए थे.