क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार, सुनिए... उदयपुर.देश में लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है. पिछले दो कार्यकाल से राजस्थान की 25 से 25 सीट जीतने वाली भाजपा तीसरी बार 25 सीट जीतने का दावा कर रही है. ऐसे में इस बार सबकी निगाहें दक्षिणी राजस्थान पर टिकी हुईं हैं, क्योंकि भाजपा-कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ने के लिए नई क्षेत्रीय पार्टियां सर दर्द बनकर उभरी हैं. इतना ही नहीं, आदिवासियों के बीच पकड़ बनाने के लिए पार्टियों को गहरी कसरत करनी पड़ रही है.
मेवाड़-वागड़ सबकी निगाहें :दरअसल, राजस्थान की राजनीति में मेवाड़-वागड़ पर सदैव सियासी निगाहें टिकी रहीं हैं. राजस्थान में विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो 200 में से 25 सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है. इसमें अकेले उदयपुर संभाग में 16 सीट एसटी के लिए आरक्षित है. इसी तरह से लोकसभा सीटों के लिहाज से देखें तो प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 3 सीट एसटी के लिए आरक्षित हैं, जिसमें से 2 सीट अकेले उदयपुर संभाग में हैं. यानी प्रदेश में उदयपुर संभाग को आदिवासियों के लिहाज से बड़ा वोट बैंक माना जा सकता है.
इसमें भी उदयपुर और डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभ सीट खास महत्व रखती है, जो एसटी वर्ग के लिए आरक्षित भी है. आदिवासी समाज के दम पर विधानसभा चुनाव में BAP (भारत आदिवासी पार्टी) ने न केवल 3 सीटों जीत दर्ज की, बल्कि सभी 16 सीटों पर वोट का बड़ा मार्जिन भी हासिल किया. विधानसभा 2023 के लिहाज से देखें तो उदयपुर संभाग में बीजेपी को करीब 6 लाख 46 हजार वोट मिले, जबकि कांग्रेस को करीब 5 लाख 15 हजार और BAP ने 3 लाख 60 हजार से ज्यादा वोट पर कब्जा जमाया. इसी तरह से डूंगरपुर-बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर बीजेपी को करीब 5 लाख 30 हजार, कांग्रेस को करीब 5 लाख 97 हजार वोट मिले, जबकि BAP को 4 लाख 81 हजार से ज्यादा वोट मिले. BAP के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए ही बीजेपी इस बार आदिवासियों पर फोकस कर रही है.
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जानिए मेवाड़ के इन पांच लोकसभा सीटों के बारे में :उदयपुर लोकसभा से अलग होकर 2009 में राजसमंद लोकसभा सीट बनाया गया. इस बार राजसमंद सीट पर चौथा लोकसभा चुनाव होगा. पहला चुनाव कांग्रेस ने जीता, जबकि दूसरा और तीसरा चुनाव भाजपा ने जीता. इस बार के लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने कसरत तेज कर दी है. भाजपा में मुख्य रूप से पूर्व मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, करणवीर सिंह, लोकेन्द्र सिंह कालवी के पुत्र भवानी सिंह कालवी सहित कई नाम चर्चा में हैं. वहीं, कांग्रेस से चुनावी मैदान में उतरने के लिए 16 दावेदारों की लंबी सूची तैयार हो चुकी है. हालांकि, भाजपा व कांग्रेस हाईकमान ने जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का फीडबैक लेने के साथ जीताऊ दावेदारों के बारे में सर्वे शुरू कर दिया है.
उदयपुर लोकसभा सीट :दक्षिणी राजस्थान की उदयपुर लोकसभा सीट रिजर्व सीट है. यहां पिछले दो चुनाव से अर्जुन लाल मीणा जीतते आ रहे हैं. इस बार भाजपा और कांग्रेस ने अपने पुराने उम्मीदवारों की टिकट काटते हुए नए चेहरों पर दांव लगाया है. उदयपुर से पहली बार दो अधिकारी चुनाव में आमने-सामने हैं. कांग्रेस ने पूर्व कलेक्टर रहे ताराचंद मीणा को मैदान में उतारा है तो वहीं भाजपा ने मन्ना रावत को मैदान में उतारा है. उदयपुर लोकसभा सीट पर पिछले 3 दशक में भाजपा का दबदबा रहा है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. आदिवासी अंचल में भाजपा ने अपनी पकड़ बनाई है. उदयपुर लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या की बात की जाए तो इस सीट पर एसटी, एससी, ओबीसी मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन लाल मीणा ने कांग्रेस के रघुवीर सिंह मीणा को हराया था.
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बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर दिलचस्प मुकाबला :दक्षिणी राजस्थान की बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है. भाजपा और कांग्रेस के साथ ही एक नई क्षेत्रीय पार्टी 'बाप' उभरी है, जिसने अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा है. कुछ दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं कांग्रेस ने अभी तक अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. वहीं, इस सीट से बाप ने राजकुमार रोत को मैदान में उतारा है. भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बाद नई बनी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) भी आदिवासियों के नाम पर ही राजनीति कर रही है.
बीटीपी से अलग होने के बाद बीएपी इस लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने प्रत्याशी उतार रही है. बांसवाड़ा-डूंगरपुर के साथ ही उदयपुर लोकसभा सीट से भी बीएपी अपने प्रत्याशी उतार सकती है. हालांकि, कांग्रेस के सीनियर नेता रहे महेंद्रजीत सिंह मालवीय के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस और बीएपी में समझौते की खबरे आ रहीं थीं, लेकिन बीएपी और कांग्रेस के स्थानीय नेता इन खबरों को सिरे से खारिज कर चुके हैं. अब भाजपा के साथ ही कांग्रेस की मुश्किलें भी बढ़ने वाली हैं और त्रिकोणीय मुकाबला भी देखने को मिलेगा.
चित्तौड़ लोकसभा सीट के सियासी समीकरण :भाजपा ने सीपी जोशी को फिर से चित्तौड़गढ़ सीट से मैदान में उतारा है. वहीं, कांग्रेस ने गत सप्ताह पूर्व मंत्री उदय लाल आंजना को टिकट देकर बता दिया कि इस बार जोशी की राह आसान नहीं रहेगी. पिछले तीन चुनाव में कांग्रेस ने बाहरी प्रत्याशी गिरिजा व्यास और गोपाल सिंह को मैदान में उतारा था, जिसे सीपी जोशी और स्थानीय भाजपा ने बाहरी प्रत्याशी बताकर खूब भुनाया थे. इस बार भाजपा के पास यह मुद्दा भी नहीं होगा.
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बिखरी हुई थी, लेकिन आंजना के टिकट पर पूरी पार्टी में एक नई जान आ गई. सबसे बड़ी बात यह है कि आंजना ने 90 के दशक में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के खास माने जाने वाले जसवंत सिंह को हराया था. इसके साथ ही वो देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे थे. आंजना की यह जीत देश भर में चर्चा का विषय रही. कुल मिलाकर आंजना पहचान के मोहताज नहीं हैं. ऐसे में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है.