शिमला: देश के लाल और जय-जवान, जय किसान का युगांतर प्रभावी नारा देने वाले महान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को हीरों की परख खूब थी. युवा वीरभद्र सिंह को देख-समझ कर शास्त्री जी ने कहा-राजनीति में आ जाइये. वीरभद्र सिंह इतिहास के अध्येता थे और प्रोफेसर बन इतिहास का अध्यापन करना चाहते थे, लेकिन घटनाक्रम कुछ ऐसा हुआ कि लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से वो राजनीति में आ गए और इस तरह हिमाचल को छह बार का मुख्यमंत्री मिला.
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश को यदि डॉ. वाईएस परमार के रूप में निर्माता मिला तो वीरभद्र सिंह के रूप में यहां विकास का अध्याय लिखने वाला नेता हासिल हुआ. हिमाचल की राजनीति का वर्णन वीरभद्र सिंह के बिना अधूरा माना जाएगा. करीब छह दशक तक हिमाचल को राजनीति को प्रभावित करने वाले वीरभद्र सिंह को बिना किसी झिझक के देवभूमि के सियासी साम्राज्य का राजा कहा जा सकता है. 23 जून को वीरभद्र सिंह की 91वीं जयंती पर प्रदेश में उन्हें याद किया गया. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू सहित अन्य नेताओं ने प्रदेश के विकास में वीरभद्र सिंह के योगदान को स्मरण किया.
तस्वीर में बुशहरी टोपी में दिख रहे दिवंगत वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) (सोशल मीडिया) स्वतंत्र और मौलिक सोच के नेता रहे वीरभद्र
छह बार हिमाचल की कमान संभालने वाले और कांग्रेस की लीडरशिप में टॉप के नामों में शामिल वीरभद्र सिंह ने देवभूमि की जनता का खूब स्नेह कमाया था. इसे वीरभद्र सिंह का जिगर ही कहा जाएगा कि कांग्रेस में रहते हुए भी उन्होंने कई बार पार्टी लाइन से अलग हटकर भी विचार रखे. इससे पता चलता है कि वीरभद्र सिंह स्वतंत्र और मौलिक सोच रखते थे. बड़ी बात ये थी कि वीरभद्र सिंह राम मंदिर निर्माण के प्रबल पक्षधर थे. इतिहास के गहन अध्येता रहे वीरभद्र सिंह हिमाचल में धर्मांतरण विरोधी विधेयक लाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री थे. वीरभद्र सिंह के देहावसान पर विश्व हिंदू परिषद ने भी बाकायदा अपने लेटर हैड पर शोक संदेश जारी किया था. विपक्ष व सत्तापक्ष में वीरभद्र सिंह समान रूप से लोकप्रिय थे.
पूर्व पीएम राजीव गांधी के साथ वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) (सोशल मीडिया) वीरभद्र पर फिट था सिंह इज किंग का संबोधन
वीरभद्र सिंह के लिए अकसर सिंह इज किंग का संबोधन दिया जाता था. जिस तरह से सियासत में वे जुझारूपन दिखाते रहे, उसी प्रकार वीरभद्र सिंह ने दो बार कोविड संक्रमण को भी मात दी थी. वर्ष 2021 में अप्रैल महीने से वे आईजीएमसी अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष करते रहे. दो बार कोविड से उबरना उनके जीवट की निशानी थी, किंतु उम्र के उस पड़ाव में अन्य गंभीर बीमारियों से वे पार नहीं पा सके थे. आठ जुलाई 2021 को उनका निधन हो गया था.
दिवंगत पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) (सोशल मीडिया) इस तरह राजनीति में आए वीरभद्र सिंह
वीरभद्र सिंह ने कुल छह बार हिमाचल के सीएम पद की कमान संभाली. हिमाचल में ये स्वीकार किया जाता है कि इस पहाड़ी राज्य की नींव हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने रखी और वीरभद्र सिंह ने उस नींव पर विकास का मजबूत ढांचा खड़ा किया. देश के महान सपूत और कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली राजनेता लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से वीरभद्र सिंह राजनीति में आए थे. राजनीति में रहकर उन्होंने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ काम किया. अटल बिहारी वाजपेयी से भी उनके अच्छे संबंध रहे. अटल बिहारी वाजपेयी के देहावसान पर शिमला में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वीरभद्र सिंह प्रमुखता के साथ शामिल हुए थे.
राज्य की साधनहीन जनता के प्रति उनके मन में करुणा थी. एक राजनेता का प्रमुख गुण अफसरशाही पर पकड़ का होता है. वीरभद्र सिंह की अफसरशाही पर गजब की पकड़ थी. इसके अलावा जनता के साथ वे लोकल बोली में कनेक्ट करते थे. छोटे और बड़े लोगों में समान रूप से लोकप्रिय वीरभद्र सिंह के निजी आवास होलीलॉज के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले रहते थे. सीएम रहते हुए वीरभद्र सिंह सरकारी आवास ओक ओवर में न के बराबर रहते थे. तब सरकार होली लॉज से ही चलती थी.
छोटे राज्य में बड़ा विकास
वीरभद्र सिंह एक कुशल प्रशासक थे और उनका विकास को लेकर उनका क्रिस्टल क्लियर विजन था. राज्य में इस समय स्वास्थ्य व अन्य क्षेत्रों में जो आधारभूत ढांचा है, उसके पीछे वीरभद्र सिंह का ही विजन रहा है. आईजीएमसी अस्पताल में सुपर स्पेशिएलिटी डिपार्टमेंट्स शुरू करवाने में उनका योगदान है. यहां ओपन हार्ट सर्जरी की सुविधा इनके ही कार्यकाल में आरंभ हुई थी. तब वीरभद्र सिंह के प्रयासों से ही एम्स की टीम ने वर्ष 2005 में यहां आकर शुरुआती ऑपरेशन किए थे. प्रदेश के दूर-दराज इलाकों में स्वास्थ्य संस्थान, सडक़ों व स्कूलों का निर्माण उनके कार्यकाल में खूब हुआ.
उनके आखिरी कार्यकाल की बात करें तो वर्ष 2012 से 2017 तक वे सीएम रहे. वर्ष 2012 के चुनाव से पूर्व हिमाचल में भाजपा को मिशन रिपीट का भरोसा था. तब वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापिस हिमाचल आए और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में ले आए. ये सीएम के रूप में उनका आखिरी कार्यकाल था. अलबत्ता 2017 के चुनाव में वे अर्की से जीत कर आए, लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गई.
पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य सिंह के साथ दिवंगत वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) (सोशल मीडिया) 13 साल की उम्र में संभाली गद्दी
तेरह साल की आयु में बुशहर रियासत की गद्दी संभालने वाले वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून वर्ष 1934 में हुआ था. वीरभद्र सिंह ने कई मर्तबा ये बात साझा की थी कि वो लाल बहादुर शास्त्री की प्रेरणा से राजनीति में आए थे. वीरभद्र सिंह इतिहास विषय के अध्यापन का शौक रखते थे, लेकिन किस्मत उन्हें सियासत में ले आई. पहली बार वर्ष 1983 में वे हिमाचल के मुख्यमंत्री बने थे. उन्होंने पहली बार 1983 से 1985, फिर 1985 से 1990 तक दूसरी बार, वर्ष 1993 से 1998 की अवधि में तीसरी बार तथा 1998 में रोचक सियासी परिस्थितियों में भी चौथी बार सीएम पद की शपथ ली थी, लेकिन बाद में सरकार भाजपा की बनी. तकनीकी रूप से चौथी बार वे सीएम माने गए. फिर 2003 से 2007 पांचवीं बार और 2012 से 2017 छठी बार मुख्यमंत्री बने.
ऑटो में बैठे दिवंगत वीरभद्र सिंह (फाइल फोटो) (सोशल मीडिया) सियासत में शुरुआत वीरभद्र सिंह ने लोकसभा से की थी. सबसे पहले महासू सीट से 1962 में सांसद चुने गए थे. फिर 1967, 1971, 1980 और 2009 में लोकसभा सांसद चुने गए. वे केंद्र में कैबिनेट मंत्री भी रहे और राज्यमंत्री भी. इंदिरा गांधी सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक पर्यटन व नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री रहे. मनमोहन सिंह सरकार में वे इस्पात मंत्री रहे. साथ ही एमएसएमई विभाग भी संभाला. बाद में वे 2012 में फिर से हिमाचल की राजनीति में आ गए थे.
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