सोलन: वित्त आयोग के दल ने मंगलवार को सोलन जिला का दौरा किया. दल ने सबसे पहले औद्योगिक क्षेत्र वाकनाघाट स्थित बैकयार्ड गार्डन प्राइवेट लिमिटेड के फूड प्रोसेसिंग यूनिट का दौरा किया. हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री स्टार्टअप योजना के तहत वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सी.एस.आई.आर.) के हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएचबीटी) पालमपुर में यह इकाई इनक्यूबेट की गई थी.
कंपनी के मुख्य प्रमोटर शिमला से युवा उद्यमी साहिल दत्ता ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की. परियोजना की क्षमता और प्रासंगिकता को देखते हुए इसे कृषि व्यवसाय संवर्द्धन सुविधा मिलान अनुदान योजना (एबीपीएफ-एमजीएस) के तहत कुल 26.82 लाख रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ.
सोलन में लोगों से मुलाकात करती वित्त आयोग की टीम (ETV Bharat) छोटे किसानों, कृषि उद्यमियों को सहायता प्रदान करने और बागवानी वस्तुओं की उत्पादकता, गुणवत्ता, मूल्य संवर्द्धन श्रृंखला और बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए विश्व बैंक से वित्त पोषित 1060 करोड़ रुपये की महत्वकांक्षी बागवानी विकास परियोजना का यह एक घटक है.
उद्योग विभाग से 95 साल के लिए भूमि पट्टे पर ली गई है. संयंत्र में प्रतिदिन 2500 लीटर जूस बनाने की क्षमता है और अन्य पीपी खाद्य क्षमता 500 किलोग्राम प्रतिदिन है. इस इकाई में सभी आवश्यक घटक और ताजा फलों जैसे सेब, आम, लीची, रोडोडेंड्रोन, आंवला, चुकंदर और पपीता इत्यादि को स्वच्छ और प्राकृतिक तरीके से संसाधित करने के लिए विशेष मशीनें स्थापित की गई हैं.
वर्तमान में इस इकाई ने संयंत्र में 13 लोगों को रोजगार प्रदान किया है और 10 लोगों को आसपास के राज्यों में बिक्री के लिए लगाया है. वित्त आयोग के सदस्यों ने इकाई संचालक से विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की. इसके उपरांत आयोग का दल सपरून की उपजाऊ घाटी के मध्य स्थित ग्राम पंचायत डांगरी के राहों गांव में पहुंचा. इस आदर्श कृषि गांव में सात कृषक परिवारों के समुदाय ने अपनी करीब 70 बीघा भूमि पर कृषि पद्धतियों में क्रांतिकारी बदलाव लाते हुए कृषि अर्थव्यवस्था को निर्वाह खेती से विविध खेती में बदला है.
यहां के किसान टमाटर, फूलगोभी, मटर और उच्च मूल्य वाली सब्जियों, सेब और कीवी जैसे फलों तथा फूलों में कार्नेशन की खेती कर कृषि में विविधता लाकर अपनी जमीन से प्रति बीघा लाखों रुपये की आय प्राप्त कर रहे हैं.
सोलन के एक उद्योग में वित्त आयोग की टीम (ETV Bharat) एकीकृत कृषि पद्धति के माध्यम से फल और फूल की फसलों को अपनाकर किसान परिवारों के जीवन में बदलाव आया है, जिससे सब्जी की खेती के लिए एकल कृषि उद्यम पर निर्भरता समाप्त हो गई है. भूपेंद्र, हरदयाल व अन्य किसानों ने बताया कि नर्सरी बढ़ाने के लिए पॉलीटनल और उत्पादन के लिए पॉलीहाउस स्थापित किए गए हैं. अधिक पैदावार के लिए महत्वपूर्ण भूजल स्रोत से कूहल के माध्यम से सिंचाई के बारहमासी स्रोत के साथ-साथ वर्षा जल संचयन से भी पानी टैंकों में डाला है.
किसानों ने विभाग की सौर बाड़ योजना का लाभ उठाकर जंगली जानवरों और आवारा मवेशियों के खतरे से अपने कृषि भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण करके अपनी खेती को भी मजबूत किया है. ड्रिप सिंचाई तकनीक के अलावा एंटी हेल नेट भी लगाए हैं. उन्होंने बताया कि गांव के किसान परिवारों को सब्जियों, फल और फूलों की मार्केटिंग के तहत बिग-बास्केट, महिंद्रा आउटलेट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अमेजन जैसे मार्केट आउटलेट्स पर बेचने के लिए सोलन स्थित कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) से भी निरंतर मदद प्राप्त हो रही है.
आयोग के सदस्य अजय नारायण झा ने किसानों के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा गत दिवस शिमला में मुख्यमंत्री के साथ आयोजित बैठक में हिमाचल प्रदेश में कृषि एवं बागवानी क्षेत्रों में लाए जा रहे बदलावों पर विस्तार से चर्चा की गई है. हिमाचल कृषि-बागवानी में अग्रणी राज्य रहा है.
प्रदेश सरकार की ओर से ऑर्गेनिक खेती को नई दिशा प्रदान करने के लिए किए जा रहे प्रयासों से भी अवगत करवाया गया है. उन्होंने कहा यहां के प्रगतिशील किसान अन्य राज्यों में भी किसानों को कृषि में विविधता के लिए प्रोत्साहित करने में आगे आएं. उन्होंने आश्वस्त किया कि आयोग उचित मंच पर उर्वरक एवं कीटनाशकों से संबंधित उनकी कठिनाइयों इत्यादि के बारे में अपनी राय प्रस्तुत करेगा. इस अवसर पर प्रदेश सरकार और ज़िला प्रशासन के उच्चाधिकारी, विभिन्न विभागीय अधिकारी भी उपस्थित थे.
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