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Kashmir Politics: क्या उमर सरकार सीमित शक्तियों के साथ जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाएगी?

Kashmir Politics: कश्मीरियों ने अपने विवादास्पद अतीत को नजरअंदाज करते हुए स्पष्ट रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपना सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना है, लेकिन क्या उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार सीमित शक्तियों के साथ कुछ कर सकती है?

Kashmir Politics Can Omar Abdullah-led government deliver for Kashmiris with limited powers
25 अक्टूबर, 2024 को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करते हुए. (ANI)

By Bilal Bhat

Published : 5 hours ago

हैदराबाद: कश्मीर में राजनीति बहुत ही दिलचस्प हो गई है, खासकर विधानसभा चुनाव और उसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व में सरकार के गठन के बाद. चुनाव में, जम्मू शहर के आसपास के जिलों ने भाजपा का साथ दिया, स्पष्ट रूप से क्षेत्र के लिए भाजपा के एजेंडे का समर्थन किया है, हालांकि कभी-कभी इसको लेकर टालमटोल भी दिखता है.

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पांचवें स्थापना दिवस पर उपराज्यपाल ने भाजपा विधायकों की मौजूदगी की बात की, लेकिन उनकी अनुपस्थिति पर असमंजस, घबराहट और उलझन साफ दिखाई दिया. जम्मू में लोगों ने भाजपा को एकतरफा वोट दिया, उसके एजेंडे के लिए नारे लगाए, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन किया.

इसके उलट, कश्मीर के लोगों ने अपने विवादास्पद अतीत को नजरअंदाज करते हुए, सबसे पुरानी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस को अपना सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुना. साथ ही, पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार करते हुए, उसे विधानसभा में नाममात्र प्रतिनिधित्व दिया, क्योंकि पीडीपी ने 2014 के राज्य विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और उसे सत्ता में रहने का मौका दिया. जम्मू क्षेत्र की चिनाब घाटी और पीर पंजाल में लोगों का मत विभिन्न दलों के बीच विभाजित रहा.

20 अक्टूबर, 2024 को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला श्रीनगर में कश्मीर मैराथन के दौरान अन्य प्रतिभागियों के साथ दौड़ते हुए. (AP)

अब राज्य पर पहले शासन करने वाले राजनेता वापस सत्ता में आ गए हैं, और उनके पास वही पद और जिम्मेदारियां हैं, लेकिन उनके अधिकार और शक्तियां पहले की तुलना में सीमित हैं. चूंकि पिछली राज्य विधानसभा के विपरीत इस बार विधानसभा भी कमजोर है, इसलिए सदस्यों के पास कम शक्तियां होंगी. अधिकांश मामलों पर सीधे केंद्र का नियंत्रण होगा और केंद्र शासित प्रदेश में कैबिनेट के पास सीमित अधिकार होंगे.

मुख्यमंत्री और उनकी कैबिनेट अधिकांश मामलों में केंद्र की दया पर होगी और कांग्रेस के सहयोगी होने के कारण उनके लिए बातचीत करना हमेशा मुश्किल होगा. नेशनल कॉन्फ्रेंस, जो कभी एनडीए का हिस्सा थी, ने भाजपा नेतृत्व के साथ 'नजदीकी' बढ़ाना शुरू कर दिया है, और उन्होंने बदले में उमर अब्दुल्ला के प्रति नरम रुख दिखाया है.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला वार्षिक उर्स के अवसर पर बडगाम में चरार-ए-शरीफ दरगाह पहुंचे. (PTI)

इसी तरह, कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया, यह मानते हुए कि इससे फंड जारी करने की प्रक्रिया में देरी हो सकती है. ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने किसी भी संभावित स्थिति के लिए मन बना लिया है, क्योंकि उमर की पीएम मोदी और अमित शाह के साथ अच्छी मुलाकात कांग्रेस-एनसी गठबंधन के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं दिखाती है.

इसके अलावा, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच कोई अच्छी यादें नहीं हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला को उस समय जेल में डाल दिया गया था, जब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. जब इंदिरा गांधी सत्ता में थीं, तब फारूक अब्दुल्ला को सत्ता से हटा दिया गया था. उमर अब्दुल्ला और राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के पास एक-दूसरे को आगे बढ़ते देखने के अलावा कोई अच्छी यादें नहीं हैं.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला वार्षिक उर्स के अवसर पर चरार-ए-शरीफ दरगाह में दुआ मांगते हुए. (PTI)

इसके विपरीत, मुफ्ती परिवार फिलहाल लोगों की नजरों से ओझल हो गया है, जब तक कि लोग भूल न जाएं कि उन्होंने क्या किया है. पीडीपी सरकार के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ्ती ने प्रदर्शनों के दौरान युवा लड़कों की हत्या का बचाव किया, लेकिन अब वे आंसू बहा रही हैं और शोकगीत गा रही हैं, जो उनके लिए कारगर साबित नहीं हुआ. उनकी बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने चुनावी राजनीति में कदम रखा, लेकिन अपने नाना (मुफ्ती मोहम्मद सईद) के गढ़ बिजबेहरा से उन्हें अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा.

घाटी में पीडीपी के प्रति नाराजगी एनसी के लिए फायदेमंद साबित हुई. कोई भरोसेमंद विकल्प न होने के कारण, कश्मीरी मतदाता कुछ राहत की उम्मीद में अपनी पहली पसंद के रूप में नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर रुख किया. राहत के अलावा, बहुत अधिक उम्मीदें नहीं होनी चाहिए क्योंकि अतीत में जो कुछ भी हुआ उसके लिए इसी पार्टी को जिम्मेदार ठहराया गया था.

पदभार ग्रहण करने के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला उपमुख्यमंत्री सुरेंद्र चौधरी के साथ. (PTI)

जमीयत ए इस्लामी ने उन पर 1987 में चुनाव में धांधली का आरोप लगाया, जिसे कश्मीर में संघर्ष का मूल कारण माना जाता है. जमीयत इस बार एनसी के खिलाफ भाजपा का साथ देती दिखी. इंजीनियर रशीद के नेतृत्व में एआईपी पार्टी के सदस्यों ने भाजपा के साथ मेल-मिलाप किया, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ. रशीद उस समय जेल में थे, जब उन्होंने उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन जैसे दिग्गजों को हराकर बारामूला लोकसभा सीट से जीत हासिल की.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के उपलक्ष्य में 29 अक्टूबर, 2024 को श्रीनगर में आयोजित 'रन फॉर यूनिटी' कार्यक्रम में गुब्बारे छोड़ते हुए. (PTI)

जैसा कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है, जब कांग्रेस ने शेख अब्दुल्ला को जेल में डाला, तो उन्होंने बाद में उनसे दोस्ती कर ली और भाजपा ने अन्य कश्मीरी नेताओं को कैद कर लिया, जो भविष्य में उनके साथ काम करने की उम्मीद रखते हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने पहले ही अफवाहों को हवा दे दी है कि दिल्ली खुश है और राज्य का दर्जा देने का वादा करने वाले संदेश तेजी से दिल्ली से श्रीनगर पहुंच रहे हैं.

नेशनल कॉन्फ्रेंस अनुच्छेद 370 की बहाली पर चर्चा कर सकती है, ताकि भाजपा को नाराज न किया जा सके, ठीक उसी तरह जैसे उसने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में अपने मुख्य पार्टी एजेंडे 'स्वायत्तता' को संभाला था. कश्मीर की राजनीति में दिखावटीपन हावी रहेगा और असली मुद्दे पीछे छूट जाएंगे.

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