नई दिल्ली:संसद के बजट सत्र के पहले दिन केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया. सर्वेक्षण के अनुसार भारत की वित्त वर्ष 2026 की जीडीपी वृद्धि 6.3-6.8 फीसदी के बीच रहने की उम्मीद है.
2024-25 का आर्थिक सर्वेक्षण पिछले सर्वेक्षण से छह महीने की छोटी अवधि में आया है, जिसे आम चुनाव के बाद जुलाई 2024 में पेश किया गया था. इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 22 जुलाई 2024 को संसद में 2023-2024 के लिए आर्थिक सर्वेक्षण दस्तावेज पेश किया था.
आर्थिक सर्वेक्षण 2025 की मुख्य बातें
भारतीय अर्थव्यवस्था स्थिर रहेगी- सर्वेक्षण में बताया गया है कि वैश्विक अनिश्चितता के बावजूद वित्त वर्ष 2025 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत (राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार) दशकीय औसत के करीब बनी हुई है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुल आपूर्ति के नजरिए से, वास्तविक सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में भी वित्त वर्ष 2025 में 6.4 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है.
सभी क्षेत्र विकास में योगदान दे रहे हैं-सर्वेक्षण दस्तावेज के अनुसार सभी क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र मजबूत बना हुआ है, जो लगातार रुझान के स्तर से ऊपर चल रहा है. इंडस्ट्रियल क्षेत्र ने भी महामारी से पहले की स्थिति से ऊपर अपनी स्थिति बना ली है. हाल के वर्षों में मजबूत विकास दर ने सेवा क्षेत्र को उसके रुझान के स्तर पर ला दिया है.
महंगाई धीरे-धीरे नियंत्रण में आ रही है-सर्वेक्षण में बताया गया है कि खुदरा महंगाई वित्त वर्ष 2024 में 5.4 फीसदी से घटकर अप्रैल-दिसंबर 2024 में 4.9 प्रतिशत हो गई है. इसमें कहा गया है कि चुनौतियों के बावजूद भारत में महंगाई प्रबंधन के लिए सकारात्मक संकेत हैं. भारतीय रिजर्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि भारत की उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2026 में धीरे-धीरे लगभग 4 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप हो जाएगी.
स्थिर वित्तीय क्षेत्र-सर्वेक्षण में वाणिज्यिक बैंकों की सकल गैर-निष्पादित आस्तियों (जीएनपीए) अनुपात में लगातार गिरावट पर प्रकाश डाला गया. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल गैर-निष्पादित आस्तियों का अनुपात वित्त वर्ष 18 में अपने चरम से लगातार गिरकर सितंबर 2024 के अंत में 2.6 फीसदी के निचले स्तर पर आ गया है.
वित्त वर्ष 2025 में एफडीआई में सुधार-सर्वेक्षण के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में भारत का सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह फिर से बढ़ गया, जो वित्त वर्ष 2024 के पहले आठ महीनों में 47.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 की समान अवधि में 55.6 बिलियन डॉलर हो गया, जो कि पिछले साल की तुलना में 17.9 फीसदी की वृद्धि है.
कृषि और खाद्य प्रबंधन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें- कृषि और संबद्ध गतिविधियों के क्षेत्र को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बताते हुए सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि यह क्षेत्र मौजूदा कीमतों पर वित्त वर्ष 24 (पीई) के लिए देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 16 फीसदी का योगदान देता है. आर्थिक सर्वेक्षण 2025 ने निर्यात क्षेत्र की लचीलापन पर प्रकाश डाला, जो वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के बावजूद हाल के वर्षों में लगातार ऊपर की ओर बढ़ रहा है.
भारत की आर्थिक बुनियाद मजबूत है, इसे संतुलित राजकोषीय सशक्तीकरण और स्थिर उपभोग का समर्थन प्राप्त है.
वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीतिक, विवेकपूर्ण नीति प्रबंधन और घरेलू बुनियादी सिद्धांतों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता होगी.
वैश्विक राजनीतिक, आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण मुद्रास्फीति का जोखिम बना हुआ है।
उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय और बेहतर होती कारोबारी अपेक्षाओं से निवेश गतिविधि में तेजी आने की उम्मीद.
भारत को जमीनी स्तर पर संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार करने की जरूरत है.
विदेशी मुद्रा भंडार 640.3 अरब डॉलर पर, जो 10.9 महीने के आयात और 90 प्रतिशत बाह्य ऋण को कवर करने के लिए पर्याप्त है.
कारोबारी सुगमता (ईओडीबी) 2.0 राज्य सरकार की अगुवाई वाली पहल होनी चाहिए, जो व्यवसाय करने में असुविधा की मूल समस्या को दूर करने पर केंद्रित हो.
भारत को निर्यात बढ़ाने और निवेश आकर्षित करने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करना चाहिए. ऐसा करने का एक तरीका यह है कि हम अपना पैमाना अपने अतीत के बजाय बाकी दुनिया के हिसाब से बनाएं.
भारत को उच्च वृद्धि के लिए अगले दो दशक में बुनियादी ढांचे में निवेश को निरंतर बढ़ाने की जरूरत है.
गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ ही राज्य अपने लोगों के लिए उचित स्तर की आय उत्पन्न करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र पर अपनी उच्च निर्भरता का लाभ उठाने में सक्षम हैं.
सेवा-उन्मुख भारतीय अर्थव्यवस्था स्वचालन के प्रति संवेदनशील है, भारत के आकार और अपेक्षाकृत कम प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए कृत्रिम मेधा (एआई) का प्रभाव अधिक है.
कॉरपोरेट क्षेत्र को उच्च स्तर की सामाजिक जिम्मेदारी दिखानी होगी.
जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों को विकसित करने, उपज बढ़ाने और फसल क्षति को कम करने के लिए दलहन, तिलहन, टमाटर, प्याज उत्पादन बढ़ाने के लिए शोध की जरूरत है.
भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए लगभग एक या दो दशक तक औसतन 8 फीसदी की दर से वृद्धि करनी होगी.
अपेक्षित वृद्धि हासिल करने के लिए निवेश को 31 फीसदी से बढ़ाकर 35 फीसदी करने की जरूरत है.
सुधारों और आर्थिक नीति का ध्यान अब व्यवस्थित विनियमन पर होना चाहिए.
विनिर्माण क्षेत्र को और विकसित करने तथा एआई, रोबोटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की जरूरत है.
आर्थिक सर्वेक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रदर्शन, सरकारी नीतियों और आगामी वित्तीय वर्ष के लिए दृष्टिकोण का संकलन है. इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) की अध्यक्षता वाले आर्थिक मामलों के विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार किया जाता है. वी. अनंथा नागेश्वरन भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं.