हैदराबाद:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. कैबिनेट की बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही 'वन नेशन वन इलेक्शन' नियम लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है. 2029 के आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जा सकते हैं.
'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब इसे संसद में पारित कराया जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में इस संबंध में विधेयक ला सकती है. इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पास कराना होगा. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा. 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लागू होने के बाद भारत निर्वाचन आयोग इसके आधार पर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया और तैयारी शुरू करेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद पहली बार 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की बात कही थी. सरकार का कहना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर खर्च का बोझ कम होगा. पीएम मोदी ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की वकालत करते हुए कहा था कि बार-बार चुनाव से देश के विकास में रुकावट आती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रसाय से एक बार फिर भारत 'एक राष्ट्र एक चुनाव' की दिशा में आगे बढ़ रहा है. जहां इसके कई फायदे गिनाए जा रहे हैं वहीं कई नकारात्मक पहलू भी हैं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीच-बीच में राज्यों में विधानसभा चुनाव होने से केंद्र सरकार पर दबाव पड़ता था, लेकिन पांच साल में एक बार चुनाव होने से सरकारों की जवाबदेही कम हो जाएगी. जनता की राजनीतिक भागीदारी भी कम होगी, क्योंकि उसे सरकारें चुनने का पांच साल में सिर्फ एक बार मौका मिलेगा.
एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं...
ईटीवी भारत से बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार श्रीनंद झा कहते हैं कि एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है. देश के आजाद होने के बाद भी एक साथ चुनाव होते थे. लेकिन 1967 में कुछ विधानसभाओं के समयपूर्व भंग किए जाने से यह परंपरा टूट गई. वो कहते हैं कि चुनाव आयोग ने 1983 में इसका प्रस्ताव दिया था. बीच-बीच में भी इसकी चर्चा होती रही है. लेकिन मोदी सरकार में इस दिशा में प्रयास तेज किए गए और समिति बनाई गई.
'एक राष्ट्र एक चुनाव' के सकारात्मक पहलुओं पर बात करते हुए श्रीनंद झा कहते हैं कि एक बार चुनाव हो जाने से सरकारों को पांच साल तक सुशासन पर जोर देने का मौका मिलेगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से सरकारें इलेक्शन मूड में रहती हैं और इस कारण सुशासन का मुद्दा पीछा छूट जाता है. उनका कहना है कि इससे चुनाव की लागत भी कम हो जाएगी. साथ ही वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिलेंगे. इसके अलावा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' होने से राजनीतिक भ्रष्टाचार भी कम होने की उम्मीद है.
हालांकि, श्रीनंद झा का मानना है कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू करना काफी कठिन है, क्योंकि इसके लिए कई विधानसभाओं को समय से पहले खत्म करना होगा, जबकि संविधान कहता है कि किसी भी चुनी हुई सरकार को पांच साल तक बने रहना चाहिए. उनका कहना है कि इससे संवैधानिक टकराव भी पैदा होंगे और राज्य सरकारें कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती हैं.
श्रीनंद झा कहते हैं कि 'एक राष्ट्र एक चुनाव' से देश के संघीय ढांचे को नुकसान पहुंच सकता है. देश में किसी एक पार्टी का डॉमिनेंस हो जाएगा. उन्होंने ओडिशा का उदाहरण दिया, जहां हाल ही में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी कराए गए और भाजपा ने लोकसभा के साथ विधानसभा में भी जीत दर्ज की. उन्होंने कहा कि अलग-अलग समय पर चुनाव न होने से सरकारों की जवाबदेही कम होगी और लोगों के राजनीतिक अधिकार भी कम हो जाएंगे. उनका कहना है कि सरकार के सामने इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा के इंतजाम करने जैसी चुनौतियां भी हो सकती हैं.