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मनीष सिसोदिया की जमानत पर सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने ईडी से पूछा यह महत्वपूर्ण सवाल - Manish Sisodia Bail Hearing

By Sumit Saxena

Published : Aug 5, 2024, 7:55 PM IST

Manish Sisodia Bail Hearing: सुप्रीम कोर्ट में कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धन शोधन मामलों में गिरफ्तार दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिकाओं पर सुनवाई हुई. अदालत ने ईडी से पूछा कि लाभ मार्जिन को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना, क्या यह कैबिनेट के निर्णय पर निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है?

Manish Sisodia Bail Hearing in Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट (ANI)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से पूछा कि वह नीतिगत निर्णय और अपराध के बीच की रेखा कैसे खींचेगा, और क्या लाभ मार्जिन में वृद्धि निर्वाचित सरकार के मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय पर निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है, अगर हां, तो मंत्रिमंडल कैसे काम करेगा? शीर्ष अदालत दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की ओर से कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और धन शोधन मामलों में दायर जमानत याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी.

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने ईडी के वकील से पूछा कि लाभ मार्जिन को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना, क्या यह कैबिनेट के निर्णय पर निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है? क्या यह जनहित के विपरीत है या जनहित के विपरीत कार्रवाई दूसरों को असंगत लाभ पहुंचा रही है?

ईडी की पैरवी कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता एसवी राजू ने कहा कि लाभ में वृद्धि केंद्रीय एजेंसी का मामला नहीं है, इस वृद्धि से पहले कई तथ्यात्मक चीजें हुई थीं: बैठकें हुई थीं. इस पर जस्टिस विश्वनाथन ने पूछा कि इन सबसे बढ़कर कुछ और, अन्यथा मंत्रिमंडल काम नहीं कर सकता... जमानत के इस चरण में, सख्ती से पुनर्न्यायिकता (Res-judicata) हम पर लागू नहीं होगी. आप नीति और अपराध के बीच की रेखा कहां खींचते हैं?...आप खुद कैसे निष्कर्ष निकालते हैं.

राजू ने कहा कि सिसोदिया कोई निर्दोष व्यक्ति नहीं है, और वह तथा अन्य आरोपी इस तरीके से पैसा कमाना चाहते थे और पहला कदम पूरी आबकारी नीति को बदलना था. ईडी के वकील ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति (धवन समिति) गठित की थी और पहले वितरकों को 5 प्रतिशत मार्जिन मिल रहा था और "यह रवि धवन समिति कहती है कि निजी वितरकों को हटाओ और सरकारी कंपनी के वितरक नियुक्त करो और 5 प्रतिशत अपने पास रखो."

एसवी राजू ने कहा कि दिल्ली सरकार रवि धवन समिति की रिपोर्ट को खत्म करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने जनता से आपत्तियां आमंत्रित कीं, जो सिर्फ दिखावा था. इस बात के सबूत हैं कि सिसोदिया ने इसे दिखाने के लिए ईमेल तैयार किए. राजू ने आगे कहा कि उन्होंने धवन समिति की रिपोर्ट को स्वीकार न करने का मामला बनाया.

विजय नायर से बातचीत कर रहे थे सिसोदिया...
राजू ने कहा कि सिसोदिया मंत्रियों के उस समूह का नेतृत्व कर रहे थे जो इस आबकारी नीति के लिए जिम्मेदार थी और वो आम आदमी पार्टी (AAP) के मीडिया सलाहकार विजय नायर से भी बातचीत कर रहे थे, जबकि नायर का आबकारी नीति से कोई लेना-देना नहीं था और न ही सरकार से. ईडी के वकील ने कहा कि नायर को उन व्यापारियों का पता लगाने का काम सौंपा गया था जो रिश्वत देने को तैयार थे और इसके लिए आरोपी आबकारी नीति में उचित बदलाव कर सकते थे.

हमारे पास डिजिटल सबूत हैं...
एसवी राजू ने कहा, "हमारे पास इस बात के डिजिटल सबूत हैं...गोवा चुनाव के लिए 100 करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी गई थी. जिसमें से हम 45 करोड़ रुपये का पता लगाने में सक्षम हैं, यह कहां गया और किसने भुगतान किया." उन्होंने आगे कहा कि सिसोदिया आबकारी नीति घोटाले में पूरी तरह संलिप्त हैं. राजू ने तर्क दिया कि बिना किसी कारण के लाभ मार्जिन को मनमाने ढंग से नहीं बढ़ाया जा सकता है. कोई टेंडर नहीं, लेकिन 5 करोड़ रुपये का भुगतान करने वाले को लाइसेंस दे दिया जाता है.

वहीं, सिसोदिया की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने पूछा कि उनके मुवक्किल की स्वतंत्रता पर 17 महीने तक प्रतिबंध क्यों लगाया जाना चाहिए, यह बड़ा सवाल है? सिंघवी ने कहा कि सिसोदिया के भागने का खतरा नहीं है, वे इस स्तर पर गवाहों को प्रभावित नहीं कर सकते या सबूतों से छेड़छाड़ नहीं कर सकते.

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