नई दिल्ली: "अभी तो इन नन्हीं निगाहों ने मां का चेहरा ठीक से देखा तक नहीं था. अभी तो इन मासूमों ने पलकें उठाकर पापा को पहचाना तक नहीं था. अभी तो इनकी किलकारियों का शोर अंगने में सुनाई भी नहीं पड़ा. अभी तो इनकी नन्हीं उगंलियों का स्पर्श से दादा-दादी झूम भी नहीं पाए थे. उससे पहले ही सिस्टम की लापरवाही और हॉस्पिटल मैनेजमेंट की मनमानी ने इनकी जान ले ली..." हॉस्पिटल में जलने से बच्चों की मौत की खबर जिसने में भी वो रह-रहकर इसी तरह की बात कर रहा था.
बेबी केयर में अपने कलेजे के टुकड़े को खो चुके परिवारों का दर्द सुनिए (SOURCE: ANI) "क्या किसी ने सोचा है कि वो 7 मासूम जो दुनिया से चले गए. आग लगने के वक्त क्या वो सिसके नहीं होंगे. क्या उनकी चीख नहीं निकली होगी. कोमल नन्हें शरीर जब झुलस रहे थे तब बाहर शोर था और हॉस्पिटल के अंदर अफरा तफरी. ऑक्सीजन कम हुई तो बच्चों की रोने की आवाज धीमी पड़ी होगी वो खामोश हुए होंगे और हमेशा के लिए सो गए."
ये दिल को झकझोर देने वाला वाकया दिल्ली के विवेक विहार के बेबी केयर अस्पताल का है. कभी न भूल पाने वाली यह हकीकत उस घटना की है जिसमें 7 नवजात बच्चों की जलकर मौत हो गई. रोते-बिलखते मां-बाप के सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है. बच्चे को याद करके पेरेंट्स ने व्यथा बयां की.
'रोजाना 15 हजार रुपये अस्पताल में भरता था'
दिल्ली के सरताज मोहल्ला के रहने वाले नाजिम चौधरी ने अस्पताल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं. नाजिम के भाई की बेटी को यहां भर्ती कराया गया था. नाजिम के मुताबिक 'अस्पताल प्रशासन रोजाना 15000 रुपये भरवाता था, ब्लड बैंक से खून लेकर जाता था. बच्ची से मिलने भी नहीं दिया जाता था. यहां ऑक्सीजन सिलेंडर के ट्रक के ट्रक उतरते थे. 10 बच्चों के अस्पताल में इतनी ऑक्सीजन का क्या काम. हो सकता है प्रशासन को भी इसकी जानकारी हो. मोदी जी, केजरीवाल जी हमें इंसाफ दो.
'आज बच्ची डिस्चार्ज होने वाली थी, सुबह खबर मिली अस्पताल में ब्लास्ट हो गया, बच्ची खत्म हो गई'
दिल्ली के रहने वाले योगेश ने बताया'उनके भाई की बच्ची को इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 19 मई को बच्ची पैदा हुई थी. क्योंकि बच्चे को वेंटिलेटर की जरूरत थी तो नजदीक में ये ही अस्पताल था. इसलिए उसी दिन यहां लाए थे. कल बच्ची को देखा था अस्पताल के सभी बिल चुकता कर दिए थे. बच्ची को मैंने देखा है बच्ची एक दम ठीक थी, वेंटिलेटर हट चुका था. बच्ची को फीड करने के लिए घर से मां का दूध भी लाया था. मैंने कहा था कि आज मैं किसी को घर से भेज देता हूं या खुद रुक जाता हूं लेकिन उन्होंने रुकने नहीं दिया कहा कोई भी दिक्कत होगी हम फोन करेंगे लेकिन, अभी तक भी अस्पताल प्रशासन ने नहीं बताया. सुबह 9 बजे न्यूज में देखा तो मालूम चला कि अस्पताल में आग लग गई है. इसके बाद मैं भागा तो मालूम चला कि मृत बच्चों को जीटीबी अस्पताल लाया गया है तब देखा बच्ची खत्म हो चुकी थी'
माता-पिता को नहीं रहने दिया जाता था-परिवार
दिल्ली के रहने वाले सुमित ने बताया कि उनके भाई के बेटे को यहां भर्ती कराया गया था. 17 मई को पैदा हुआ था और 20 मई को इस अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उन्होंने बताया कि 'इस आग की घटना के बाद बच्चे का कुछ पता नहीं चल पा रहा. पुलिस वालों ने कहा है कि ईस्ट दिल्ली के एक अस्पताल में बच्चों को भेजा गया है. वहां जाकर देखो. पेरेंट्स को अस्पताल में रुकने नहीं दिया जाता था बस बच्चे को ही एडमिट करते थे और कहते थे आप घर जाओ. बैठने भी नहीं देते थे. हम रोजाना बच्चे को देखने आते थे लेकिन यहां किसी को रुकने नहीं देते थे. हॉस्पिटल की कम सुविधाओं की वजह से ये हादसा हुआ इन पर कार्रवाई होनी चाहिए. छोटे बच्चे हैं उनके मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी'.विवेक विहार के बेबी केयर अस्पताल में किसी भी मां-बाप को बच्चे के साथ रहने की इजाजत नहीं थी. मां बाप सिर्फ बच्चे से रोजाना मिलने आया करते थे. बताया जा रहा है कि अस्पताल प्रशासन परिवार वालों को बैठने तक नहीं देते थे.
माता पिता को चाहिए इंसाफ
जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया है नम आंखों से उन्होंने इंसाफ की मांग की है. इनमें गुस्सा भी है और सरकार के प्रति नाराजगी भी. अस्पताल प्रशासन के लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है. कुछ परिवारों का ये भी कहना है कि ना सरकार,ना विधायक कोई हमने मिलने नहीं आया.
जो बच्चे बच गए, उन्हें ढूंढना भी हुआ मुश्किल
अस्पताल के भीतर आग लगने के बाद सभी 12 बच्चों को निकाला गया, उनमें से 7 की मौत हो गई जिन्हें जीटीबी अस्पताल ले जाया गया. बाकी के बच्चों को ईस्ट दिल्ली एडवांस एनआईसीयू सेंटर में भर्ती कराया गया है. यहां परिवारजन अपने बच्चों को तलाश रहे हैं. कोई भटक रहा है तो किसी को जांच के बाद बच्चों सौंपने का आश्वासन दिया गया है. ऐसे ही साहिबाबाद की विनीता अपने भतीजे को लेकर विवेक विहार के बेबी केयर अस्पताल आई थी. आग की घटना के बाद से उनके भतीजे का कुछ पता नहीं है. वो NICU भी गए लेकिन उन्हें ये कहा गया कि जब तक बच्चे के खून का मिलान मैच नहीं होगा तब तब बच्चा आपको नहीं देंगे.
घटना के लिए कौन जिम्मेदार?
बेबी केयर सेंटर में आग लगने से 7 बच्चों की मौत पर बड़ा खुलासा हुआ है. दरअसल बेबी केयर सेंटर की बिल्डिंग में नीचे अवैध ऑक्सीजन सिलेंडर की रिफिलिंग का काम किया जाता था, अस्पताल में 5 बच्चों की क्षमता थी, लेकिन 12 बच्चे भर्ती किये गये थे. माता पिता ने शिकायत की है कि बच्चों को कब तक रखा जाएगा उनकी सेहत पर कोई अपडेट अस्पताल प्रशासन नहीं देता था. ना ही किसी को साथ रहने दिया जाता , यानि अस्पताल अपनी दिल खोलकर मनमानी कर रहा था. कुछ परिवारों ने इस आग के घटना के बाद बताया कि उन्हें मालूम तक नहीं था कि अस्पताल में आग लगी है और उनका बच्चा अब नहीं रहा. दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कड़ी कार्रवाई का दावा किया है, दिल्ली पुलिस ने अस्पताल के मालिक नवीन कीची और ड्यूटी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया है. पर हर घटना के बाद जांच तेज होती है. दावे पुरजोर होते हैं. लेकिन फिर हालात वैसे ही हो जाते हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही और अनदेखी हर बार की कहानी है सवाल फिर से वहीं कि देश की राजधानी दिल्ली की ये बदसूरत कहानी कब बदलेगी.
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