नई दिल्लीः केंद्र ने दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की याचिका का सर्वोच्च न्यायालय में विरोध करते हुए कहा कि आजीवन प्रतिबंध उचित होगा या नहीं, यह मुद्दा संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत प्रावधान संवैधानिक रूप से सुदृढ़ हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि उनकी अयोग्यता को छह साल तक सीमित करने में कुछ भी असंवैधानिक नहीं है.
केंद्र की ओर से यह हलफनामा अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर आई है. अश्विनी कुमार ने याचिका में देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के अलावा दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता की प्रार्थना कानून को फिर से लिखने या संसद को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के बराबर है, जो न्यायिक समीक्षा की शक्तियों से पूरी तरह परे है. हलफनामे में कहा गया है,"यह एक सामान्य कानून है कि अदालतें संसद को कानून बनाने या किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकतीं."
केंद्र ने कहा कि आजीवन प्रतिबंध उचित होगा या नहीं. यह सवाल पूरी तरह संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. उसने कहा कि दंड की अवधि को उचित समय तक सीमित रखने से रोकथाम सुनिश्चित हुई और अनावश्यक कठोरता से बचा गया.
केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ता, मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को समझने में विफल रहा है. हलफनामे में कहा गया है कि उस मामले में न्यायालय ने राजनीति में अपराधिता के बारे में सही आशंका व्यक्त की थी. यह भी माना था कि न्यायिक संयम का प्रयोग किया जाना चाहिए और न्यायालय चुनाव के लिए योग्यता या अयोग्यता निर्धारित नहीं कर सकता है.