कुरुक्षेत्र: सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्योहार को बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. इनमें एकादशी के व्रत को सबसे ज्यादा फल देने वाला माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा या फिर अचला एकादशी मनाई जाएगी. इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना करने का महत्व है.
अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त: पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि सनातन धर्म में एकादशी का व्रत रखने का सबसे ज्यादा बड़ा महत्व होता है. 1 साल में 24 एकादशी होती हैं. वहीं जिस हिंदू वर्ष में अधिक मास होता है. उसमें 26 एकादशी आती हैं. अपरा एकादशी को बहुत ही ज्यादा फल देने वाले एकादशी माना गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है. कहीं-कहीं इसको अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
अपरा एकादशी का आरंभ 2 जून को सुबह 5:04 से होगा, जबकि इसका समापन 3 जून को रात के 2:41 पर हो जाएगा. सनातन धर्म में प्रत्येक व्रत व त्योहार को उदया तिथि के साथ बनाया जाता है. इसलिए अपरा एकादशी का व्रत 2 जून के दिन रखा जाएगा.
बना रहा आयुष्मान योग: पंडित ने बताया कि अपरा एकादशी के दिन अगर शुभ मुहूर्त के समय पूजा अर्चना की जाए, तो उसका ज्यादा फल मिलता है. इसलिए 2 जून को अपरा एकादशी के दिन पूजा करने का शुभ मुहूर्त का समय सुबह 5:23 से लेकर दोपहर 12:12 तक रहेगा. अपरा एकादशी के दिन हिंदू पंचांग के अनुसार आयुष्मान योग भी बन रहा है, जिसकी शुरुआत भी सुबह करीब 5 बजे हो रही है, शास्त्रों में बताया गया है कि आयुष्मान योग में एकादशी की पूजा करने से कई गुना फल की प्राप्ति होती है.
2 जून को है अपरा एकादशी: पंडित रामराज कौशिक ने बताया कि अपरा एकादशी का व्रत एक ऐसा व्रत है. जिसका पारण व्रत से अगले दिन किया जाता है, इसलिए हिंदू पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत का पारण 3 जून को सुबह 8:05 से लेकर 8:10 तक किया जाएगा. वहीं कुछ लोगों में इस बार असमंजस की स्थिति भी बनी हुई है कि अपरा एकादशी का व्रत 2 जून को रखे या 3 जून को रखें, आपको बता दें कि गृहस्थी वाले अपरा एकादशी का व्रत 2 जून को रखेंगे, जबकि वैष्णव अपरा एकादशी का व्रत 3 जून को रखेंगे.
अपरा एकादशी का महत्व: पंडित रामराज ने बताया कि सनातन धर्म में एकादशी के व्रत को सबसे कठिन व्रत में से एक माना जाता है. इसलिए इस व्रत का महत्व बहुत ही ज्यादा होता है, इस दिन विधिवत रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है. जिससे माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद जातक के परिवार पर बना रहता है.
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की होती है पूजा: माना जाता है कि जो भी इंसान एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके सभी दुख दर्द और दोष दूर हो जाते हैं और परिवार में सुख समृद्धि आती है. अचला एकादशी के दिन भगवान विष्णु के त्रिविक्रम स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है. त्रिविक्रम स्वरूप भगवान विष्णु के वामन अवतार को कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत जो भी इंसान रखता है. उसके घर में अपार धन की प्राप्ति होती है, और मृत्यु के बाद उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है. उसको प्रेत योनि से भी मुक्ति मिलती है.
अपरा एकादशी के व्रत का विधि विधान: पंडित ने बताया कि अपरा एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, हो सके तो पवित्र नदी में स्नान करें, उसके उपरांत सूर्य देव को जल अर्पित करें. फिर घर के मंदिर में साफ सफाई करके गंगाजल का छिड़काव करें. भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें, और उनके आगे पीले रंग के फल, फूल, वस्त्र मिठाई, अक्षत और तुलसी दल आदि अर्पित करें. इसके अलावा 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें. उनको प्रसाद का भोग लगाने के बाद उनकी आरती करें.
इन बातों का ध्यान रखें: जो भी इंसान अपरा एकादशी का व्रत करना चाहता है. वो व्रत रखने का प्रण लें, दिन में एकादशी की कथा और विष्णु पुराण पढ़ें, हो सके तो भगवान विष्णु के लिए दिन में अपने घर पर कीर्तन का आयोजन भी करें. शाम के समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने के बाद उनकी आरती करें और प्रसाद का भोग लगाएं, उसके उपरांत गरीब जरूरतमंद ब्राह्मण और गाय को भोजन कराएं और अपनी इच्छा अनुसार उनका दक्षिणा दें, और अगले दिन पारण के समय अपने व्रत का पारण कर लें और भोजन ग्रहण करने से पहले ब्राह्मण को भोजन कराएं.
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