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'کئی بار مسجد کے سامنے جے شری رام کے نعرے لگائےگئے' - ashok nager

مشرقی دہلی کا ایک علاقہ ہے اشوک نگر جو نوئیڈا سے متصل ہے، لیکن یہ علاقہ آج بھی بنیادی سہولیات سے محروم ہے، علاقے میں ایک مسجد اور ایک مدرسہ ہے۔

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Published : May 11, 2019, 5:51 PM IST


مسجد کے ایک مصلی نے بتایا کہ یہ ہندو مسلم منافرت پیدا کرنے کی کوشش کی جاتی ہے کئی بار مسجد کے سامنے جے شری رام کے نعرے بھی لگائے گئے۔

متعلقہ ویڈیو

انہوں نے مزید کہا کہ ووٹ تو ہم دینا چاہتے ہیں کیونکہ ہم بھارتی ہیں اور ووٹ دیناہمارا حق ہے۔ انتخابات کے دوران تمام جماعتوں کے سیاسی رہنما ووٹ کے لیے آتے ہیں لیکن آج تک اس علاقے میں کوئی کام نہیں ہوا۔

پہلی بار ووٹ ڈالے جا رہے بدرالدین نے کہا کہ میں اسے ووٹ دونگا جو انسانیت اور ترقی کی بات کرے گا۔
مدرسے کے ایک طالب علم نے کہا کہ وہ بڑے ہو کر ایک اچھے حافظ قرآن بننا چاہتے ہیں۔


مسجد کے ایک مصلی نے بتایا کہ یہ ہندو مسلم منافرت پیدا کرنے کی کوشش کی جاتی ہے کئی بار مسجد کے سامنے جے شری رام کے نعرے بھی لگائے گئے۔

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انہوں نے مزید کہا کہ ووٹ تو ہم دینا چاہتے ہیں کیونکہ ہم بھارتی ہیں اور ووٹ دیناہمارا حق ہے۔ انتخابات کے دوران تمام جماعتوں کے سیاسی رہنما ووٹ کے لیے آتے ہیں لیکن آج تک اس علاقے میں کوئی کام نہیں ہوا۔

پہلی بار ووٹ ڈالے جا رہے بدرالدین نے کہا کہ میں اسے ووٹ دونگا جو انسانیت اور ترقی کی بات کرے گا۔
مدرسے کے ایک طالب علم نے کہا کہ وہ بڑے ہو کر ایک اچھے حافظ قرآن بننا چاہتے ہیں۔

Intro:चुनाव के समय में चर्चा का एक विषय यह भी होता है कि मुस्लिम मतदाता का रुख क्या रहेगा. आजादी के बाद से अब तक देश में मुस्लिमों की दशा और उनकी दिशा को लेकर चर्चा होती रही है. दिल्ली में करीब 13 फीसदी मुस्लिम आबादी है, वही सीटों की बात करें, तो पूर्वी दिल्ली, चांदनी चौक और उत्तर पूर्वी दिल्ली में इनकी आबादी चुनाव जिताने के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस लिहाज से ईटीवी भारत ने पूर्वी दिल्ली के कुछ मुस्लिम मतदाताओं से बात कर यह जानने की कोशिश की कि वे इस चुनाव को लेकर क्या सोचते हैं. हमने उनसे उनके हालात पर भी चर्चा की.


Body:पूर्वी दिल्ली: पूर्वी दिल्ली का एक इलाका है, अशोक नगर, जो नोएडा से सटा है. लेकिन विकास की बात करें तो आज भी यह बुनियादी सुविधाओं से महरूम है. इलाके में एक मस्जिद है, जहां लोग हमें नमाज पढ़ते दिखे, वहीं कुछ बच्चे मदरसे में क़ुरआन की आयतें रटते हुए. हमने बच्चों से भी उनकी पढ़ाई और उनके सपनों को लेकर बातचीत की.

इस देश के मुस्लिमों के एक बड़े तबके में अभी भी शिकायत है कि उन तक विकास की रौशनी उस तरह से नहीं पहुंची, जिस तरह से समाज की दूसरे वर्गों के पास पहुंची है. कई बार उनकी शिकायतें सार्वजनिक रूप से सामने भी आ पातीं. हमारी इस बातचित में जब उन्होंने ईटीवी भारत का माइक देखा, तो यूं लगा जैसे अब तक जमा हुआ उनके अंदर का भड़ास बाहर आ गया.

इस मस्जिद में हमें मोहम्मद जमीर मिले, जिन्होंने खुलकर अपनी शिकायतें सामने रखीं. उन्होंने यहां तक बताया कि कई बार मस्जिद के सामने से लोग जय श्रीराम के नारे लगाते हुए जाते हैं. उनका साफ संकेत इस तरफ था कि ऐसा उन्हें चिढ़ाने के लिए किया जाता है. उन्होंने यह भी कहा कि वोट तो हमें देना ही है क्योंकि हम हिंदुस्तानी हैं, चुनावों के समय सभी दलों के लोग भी आते हैं, लेकिन किसी ने हमारी कौम के लिए कुछ नहीं किया. उन्होंने साफ कहा कि चाहे कांग्रेस हो या आम आदमी आम पार्टी, किसी ने भी मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया और भाजपा तो हमेशा हिन्दू मुस्लिम ही करती रहती है.

यहां हमें पहली बार वोट देने जा रहे बदरूद्दीन भी मिले, जिन्होंने कहा कि मैं जसे वोट दूंगा जो इंसानियत की बात करते हैं. इस सवाल पर कि इस समय ऐसा कौन है, उनका जवाब था, आम आदमी पार्टी या कांग्रेस. वोट देने की बात पर इनमें से कई लोगों ने खुलकर कहा कि आम आदमी पार्टी को वोट देना पसंद करेंगे. एक बुजुर्ग ने तो केजरीवाल के प्रति अपनी दीवानगी ही जाहिर कर दी. अरविंद केजरीवाल को थप्पड़ लगने की घटना को भी उन्होंने विरोधियों की साजिश बताया और इसके लिए उनके शब्दों में सहानुभूति भी झलक रही थी.

यहां हमें कुछ बच्चे भी मिले, जो मस्जिद के मदरसे में पढ़ाई कर रहे थे. उन्हीं में से एक, मोहम्मद इब्राहिम से जब हमने बातचीत की तो उन्होंने बड़े होकर हाफिज बनने की ख्वाहिश जताई. इब्राहिम ने कहा कि जब भी मैं किसी हाफिज-ए-कुरान को देखता हूं तो मुझे भी मन करता है कि मैं भी हाफिज बनूं. अभी जबकि सभी अभिभावक अपने बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, आईएएस बनाना चाहते हैं, ऐसे में ये बच्चे अपने सपने को एक धार्मिक ग्रंथ के इर्द गिर्द ही क्यों रखना चाहते हैं, इस सवाल को लेकर हमने वहां खड़े कुछ बुजुर्गों से भी बातचीत की. इन्हीं में से एक मोहम्मद शाहबुद्दीन ने कहा कि यहां पर कुरान की तालीम दी जाती है, लेकिन उसके साथ साथ अंग्रेजी भी पढ़ाई जाती है और ऐसा नहीं है कि जो लोग हाफिज ए कुरान बनते हैं, वे इंजीनियर डॉक्टर नहीं बनते.




Conclusion:कुल मिलाकर, इन लोगों से बातचीत में जो सामने आया वह यही था कि आजादी के साथ दशक बाद भी देश की राजधानी यानी सत्ता के केंद्र में मुस्लिमों की हालत वैसी नहीं है, जैसी स्थिति का 1947 में सपना देखा गया था. देश 17वीं लोकसभा के गठन की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन आज भी एक बच्चा हाफिज ए कुरान बनने का सपना देखता है और आज भी एक मुसलमान वोट देने को हर 5 साल बाद की एक औपचारिकता समझता है. उसके लिए नागरिकता सिर्फ ईवीएम का बटन दबाना भर है.
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