उत्तरकाशी: पहाडों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंड दस्तक दे चुकी है. ग्रामीण अपने और मवेशियों के लिए शीतकाल के दौरान इस्तेमाल होने वाली चीजों को अभी से जुटाने में जुटे हुए हैं. जिले के सीमांत गांव शीतकाल के दौरान तीन महीने तक बर्फ से ढके रहते हैं. जिसको देखते हुए ग्रामीण चारापत्ती आदि बर्फबारी से पहले ही जुटा लेते हैं. साथ ही ग्रामीणों को बर्फबारी के समय मवेशियों के लिए चारापत्ती के लिए भटकना नहीं पड़ता है.
ठंड के मौसम में 6 महीने के लिए पहाड़ के ऊंचाई वाले इलाकों में एक अलग ही जीवनशैली देखने को मिलती है, जिसकी तैयारियां ग्रामीणों ने अभी से शुरू कर दी है. ग्रामीण अपने मवेशियों के लिए 6 माह का घास एकत्रित करने में लगे हैं और इसे विशेष देखरेख के साथ रखा जाता है, जिससे कि यह घास 6 माह खराब नहीं होती है.
मॉनसून सीजन के बाद पहाड़ों के 3000 हजार मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हल्की बर्फबारी शुरू हो जाती है. इसी क्रम में यमुनोत्री धाम के ऊंचाई वाली चोटियों बंदरपूंछ और सप्तऋषि की पहाड़ियों में बर्फ दिखाई दी है. वहीं, ऊंचे बुग्यालों से अब बकरी-भेड़ पालक भी अपने भेड़-बकरियों को लेकर निचले इलाकों में आने लगे हैं.
वहीं, उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी के हर्षिल सहित ऊंचाई वाले गांव सहित बड़कोट-पुरोला तहसील के ऊंचाई वाले गांव सहित मोरी के पर्वत और बंगाण क्षेत्र के कई गांव अभी से ठंड से निपटने की तैयारियां शुरू हो गई है. यह तैयारियां ग्रामीणों की एक विशेष जीवनशैली का हिस्सा होता है.
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उत्तरकाशी जनपद के आधे से अधिक क्षेत्र के ऊंचाई वाले इलाकों के गांव में बर्फबारी होने के कारण जंगल और बुग्याल बर्फ से पट जाते हैं, जिस कारण सबसे ज्यादा दिक्कतें मवेशियों की चारापत्ती और घास पत्ती की होती है. इसलिए ग्रामीण अभी से मवेशियों के लिए 6 माह का घास एकत्रित करना शुरू कर दिया है. जिसे सुखाकर सुरक्षित स्थान पर रखा जाता है, ताकि 6 माह बर्फबारी के दौरान मवेशियों के लिए चारापत्ती की आपूर्ति बनी रहे.