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उत्तरकाशीः नंगे पांव तेज धार की कुल्हाड़ियों चलते हैं पश्वा, आप भी देखकर रह जाएंगे अंचभित

सोमेश्वर देवता को हिमाचल प्रदेश के किन्नौर से लेकर उत्तरकाशी के मोरी से गंगा घाटी के अंतिम गांव मुखबा तक पूजा जाता है. देवता का आसन तेज धार की डांगरियों के ऊपर लगता है. पश्वा इन डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलते हैं. देवता के पश्वा डांगरियों पर चलते-चलते ग्रामीणों को मनोकामना के अनुसार उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं.

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Published : Aug 13, 2019, 6:37 PM IST

Updated : Aug 13, 2019, 9:01 PM IST

someshwar devta

उत्तरकाशीः उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां कोने-कोने में देवी-देवताओं का वास है. यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र इस पावन धरा को अपनी अलग पहचान देते हैं. इसी वजह से आज भी देवताओं की आराधना पर उनके पश्वों पर देवता अवतरित होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गंगा-यमुना के मायका कहे जाने वाले खरसाली और मुखबा गांव में सोमेश्वर देवता, ग्रामीणों के आराध्य देव हैं. जो किसी विशेष अवसर अपने पश्वा पर अवतरित होते हैं. इतना ही नहीं ये पश्वा तेज धार की डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलते हैं. जो अपने आप में बेहद अंचभित और अनूठा होता है.

नंगे पांव तेज धार की कुल्हाड़ियों चलते हैं पश्वा.

उत्तरकाशी जिला गंगा-यमुना, देवी-देवताओं और अपने विशेष संस्कृति के पहचाना जाता है. यहां आज भी ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं जो कि आज के तकनीकी युग में भी देवभूमि शब्द को सार्थक करती है. आज भी देवताओं की आराधना पर उनके पश्वों पर देवता अवतरित होते हैं. यहां पर हर देवता को बुलाने की विधि भी अपने आप में अनोखी होती है. ऐसे ही एक देवता सोमेश्वर देवता हैं, जो हिमाचल के किन्नौर समेत उत्तरकाशी के सभी ब्लॉकों के सैकड़ों गांवों में पूजा जाता है. इनका आसन तेज धार की डांगरियों पर सीटियों के साथ लगता है.

ये भी पढ़ेंः खराब मौसम ने रोका 'महाराज' का रास्ता, वीडियो कॉल से लगाई मंदिर में हाजिरी

इसी कड़ी में खरसाली गांव में 12 गांव के गीठ पट्टी की ओर से सोमेश्वर देवता के नवनिर्मित मंदिर में सात दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा पाठ का आयोजन किया जा रहा है. इसके तहत पांचवें दिन भगवान सोमेश्वर देवता का आसन लगाया गया. इस दौरान मां यमुना का प्रवास खरसाली गांव सीटियों के साथ गूंज उठा. देखते ही देखते पश्वा पर सोमेश्वर देवता अवतरित हुए और उसके बाद गांव के युवा अपने हाथों में तेज धार की डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलने लगे. जो अपने आप में काफी अलग था. आस्था और श्रद्धा ही जो पश्वा के पैरों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है.

देवता के पश्वा डांगरियों पर चलते-चलते ग्रामीणों को मनोकामना के अनुसार उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं. पंडित मदन मोहन शास्त्री का कहना है कि भगवान सोमेश्वर एक बकरी वाले थे. वो कश्मीर से हिमाचल होते हुए उत्तरकाशी आए थे. शास्त्री के अनुसार सोमेश्वर भी पांडव कालीन के थे. इसलिए उनके पास काफी शक्तियां थी. वो आज भी पश्वों पर अवतरित होकर ग्रामीणों की दुःख दूर करते हैं. साथ ही सभी प्रकार की मुसीबतों से भी बचाते हैं.

उत्तरकाशीः उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता है, यहां कोने-कोने में देवी-देवताओं का वास है. यहां पर विराजमान आस्था के केंद्र इस पावन धरा को अपनी अलग पहचान देते हैं. इसी वजह से आज भी देवताओं की आराधना पर उनके पश्वों पर देवता अवतरित होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. गंगा-यमुना के मायका कहे जाने वाले खरसाली और मुखबा गांव में सोमेश्वर देवता, ग्रामीणों के आराध्य देव हैं. जो किसी विशेष अवसर अपने पश्वा पर अवतरित होते हैं. इतना ही नहीं ये पश्वा तेज धार की डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलते हैं. जो अपने आप में बेहद अंचभित और अनूठा होता है.

नंगे पांव तेज धार की कुल्हाड़ियों चलते हैं पश्वा.

उत्तरकाशी जिला गंगा-यमुना, देवी-देवताओं और अपने विशेष संस्कृति के पहचाना जाता है. यहां आज भी ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं जो कि आज के तकनीकी युग में भी देवभूमि शब्द को सार्थक करती है. आज भी देवताओं की आराधना पर उनके पश्वों पर देवता अवतरित होते हैं. यहां पर हर देवता को बुलाने की विधि भी अपने आप में अनोखी होती है. ऐसे ही एक देवता सोमेश्वर देवता हैं, जो हिमाचल के किन्नौर समेत उत्तरकाशी के सभी ब्लॉकों के सैकड़ों गांवों में पूजा जाता है. इनका आसन तेज धार की डांगरियों पर सीटियों के साथ लगता है.

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इसी कड़ी में खरसाली गांव में 12 गांव के गीठ पट्टी की ओर से सोमेश्वर देवता के नवनिर्मित मंदिर में सात दिवसीय प्राण प्रतिष्ठा पाठ का आयोजन किया जा रहा है. इसके तहत पांचवें दिन भगवान सोमेश्वर देवता का आसन लगाया गया. इस दौरान मां यमुना का प्रवास खरसाली गांव सीटियों के साथ गूंज उठा. देखते ही देखते पश्वा पर सोमेश्वर देवता अवतरित हुए और उसके बाद गांव के युवा अपने हाथों में तेज धार की डांगरियों (छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलने लगे. जो अपने आप में काफी अलग था. आस्था और श्रद्धा ही जो पश्वा के पैरों को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता है.

देवता के पश्वा डांगरियों पर चलते-चलते ग्रामीणों को मनोकामना के अनुसार उन्हें आशीर्वाद भी देते हैं. पंडित मदन मोहन शास्त्री का कहना है कि भगवान सोमेश्वर एक बकरी वाले थे. वो कश्मीर से हिमाचल होते हुए उत्तरकाशी आए थे. शास्त्री के अनुसार सोमेश्वर भी पांडव कालीन के थे. इसलिए उनके पास काफी शक्तियां थी. वो आज भी पश्वों पर अवतरित होकर ग्रामीणों की दुःख दूर करते हैं. साथ ही सभी प्रकार की मुसीबतों से भी बचाते हैं.

Intro:सोमेश्वर देवता को हिमांचल प्रदेश के किन्नौर से लेकर उत्तरकाशी के मोरी से गंगा घाटी के अंतिम गांव मुखबा तक पूजा जाता है। देवता का आशन तेज धार की डांगरियो के ऊपर लगता है।
उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जनपद अपनी देव और गंगा जमुना संस्कृति के विश्व विख्यात है। यहां आज भी ऐसे चमत्कार देखने को मिलते हैं। जो कि आज के तकनीकी युग मे भी देवभूमि शब्द को सार्थक करती है। आज भी देवताओं की आराधना पर उनके पश्वों पर देवता अवतरित होते हैं और भक्तों को मनोकामना पूर्ण करते हैं। हर देवता को बुलाने की विधि भी अपने आप में अनोखी होती है। ऐसे ही एक देवता सोमेश्वर देवता, जो कि हिमांचल के किन्नौर जनपद सहित उत्तरकाशी के सभी ब्लॉकों के सैकड़ो गांव में समेश्वर देवता को पूजा जाता है। गंगा यमुना के मायका कहा जाने वाले खरसाली और मुखबा गांव में भी भगवान समेश्वर जी ग्रामीणों के आराध्य देव हैं। इनका आशन तेज धार की डांगरियो पर सीटियों के साथ लगता है। Body: वीओ-1, इसी क्रम में 12 गांव गीड़ पट्टी की और से खरसाली गांव में सोमेश्वर देवता के नव निर्मित मन्दिर के अवसर पर सातदिवसीय प्राण प्रतिष्ठा पाठ का आयोजन किया जा रहा है। जिसके पांचवे दिन भगवान समेश्वर देवता का आसन लगाया गया। मां यमुना का प्रवास खरसाली गांव सीटियों के साथ गूंज उठा। देखते ही देखते पश्वा पर सोमेश्वर देवता अवतरित हुए और उसके बाद गांव के युवा अपने हाथों में तेज धार की डांगरियो(छोटी कुल्हाड़ियों) पर नंगे पांव चलते हैं और ग्रामीण अपनी मनोकामना मांगते हैं। Conclusion: वीओ-2, देवता का पश्वा डांगरियो पर चलते-चलते ग्रामीणों को मनोकामना के अनुसार उन्हें आशीर्वाद देते हैं। पण्डित मदन मोहन शास्त्री का कहना है कि भगवान समेश्वर एक बकरी वाले थे और यह कश्मीर से हिमांचल होते हुए उत्तरकाशी आये थे। शास्त्री के अनुसार समेश्वर भी पांडव कालीन थे। इसलिए उनके पास इतनी शक्तियां थी। कि वह आज भी पश्वों पर अवतरित होकर ग्रामीणों का दूख दूर करते हैं और सभी प्रकार की मुसीबतों से बचाते हैं । बाइट- पण्डित मदन मोहन शास्त्री।
Last Updated : Aug 13, 2019, 9:01 PM IST
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