ETV Bharat / state

गंगोत्री नेशनल पार्क में बढ़ी हिम तेंदुओं की संख्या, 'लंका' में दिखा स्नो लेपर्ड

हिम तेंदुआ एक विडाल प्रजाति है जो मध्य एशिया में रहती है. गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों का कहना कि ट्रैप कैमरों के अनुसार पार्क में हिमालय के राजा दुर्लभ प्रजाति के स्नो लेपर्ड की संख्या बढ़ी है.

Snow leporad
हिम तेंदुआ
author img

By

Published : Aug 19, 2021, 9:28 PM IST

Updated : Aug 19, 2021, 10:05 PM IST

उत्तरकाशी: वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से उत्तराखंड के लिए अच्छी खबर है. उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं (snow leopard) की संख्या है. गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों का कहना कि उनके ट्रैप कैमरों के अनुसार पार्क में हिमालय के राजा दुर्लभ प्रजाति के स्नो लेपर्ड की संख्या बढ़ी है.

इसके अलावा एक और अच्छी खबर है. इस साल जुलाई माह में करीब 3000 मीटर की ऊंचाई स्थित लंका में दिन के समय भी snow leopard घूमता हुआ कैमरे में कैद हुआ है, जो अच्छा सकेत है. लंका में ही स्नो लेपर्ड कंजर्वेशन सेंटर का निर्माण होना है.

गंगोत्री नेशनल पार्क में बढ़ी हिम तेंदुओं की संख्या.

पढ़ें- गुलदारों की बढ़ती संख्या इंसानी जिंदगी पर पड़ रही भारी, 236 लोगों को बना चुके शिकार

पार्क प्रशासन हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या से गदगद है. पार्क प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि पिछले साल गंगोत्री नेशनल पार्क में स्नो लेपर्ड की संख्या 30 से 35 के बीच मानी जा रही थी, लेकिन इस बार 40 से 50 के बीच में है, जो स्नो लेपर्ड के संरक्षण में काफी अच्छा संकेत है.

पढ़ें- उत्तराखंड में लॉकडाउन का असर, जलवायु से लेकर वन्यजीवों के व्यवहार में आया बदलाव

गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार में ईटीवी भारत को फोन पर इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया है कि सर्दियों में स्नो लेपर्ड कैमरों में ज्यादा कैद हुए है. इस साल लंका में भी स्नो लेपर्ड स्पॉट किया गया. इन सब गतिविधियों के अनुसार वर्तमान में गंगोत्री नेशनल पार्क के अंर्तगत 40 से 50 स्नो लेपर्ड मौजूद हैं.

पढ़ें- International Tiger Day: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं देश के सबसे ज्यादा बाघ

पंवार ने बताया कि अभी स्नो लेपर्ड की प्रथम चरण की गणना भी पूरी हो चुकी है. उसमें भी स्नो लेपर्ड के पग मार्क सहित किल (शिकार) की भी अच्छी संख्या मिली है, जो संकेत है कि पार्क के अंतर्गत स्नो लेपर्ड की संख्या अच्छी है. हालांकि अभी तक स्नो लेपर्ड की गणना के कोई सटीक आंकड़े अभी भी वन विभाग के पास नहीं हैं. अभी स्नो लेपर्ड की संख्या को लेकर जो भी अनुमान लगाया जा रहा है. वो सब स्नो लेपर्ड की ट्रैप कैमरों में फोटो सहित पग मार्क और शिकार के आधार पर हैं.

पार्क के वन दरोगा राजवीर रावत का कहना है कि शीतकाल में गंगोत्री और गौमुख ट्रैक में लगाए गए ट्रैप कैमरों में स्नो लेपर्ड की तस्वीरें अच्छी संख्या में कैप्चर हुई हैं. पंवार ने कहा कि लंका (भैरो घाटी) में ही स्नो लेपर्ड कन्जर्वेशन सेंटर बनना है और जिस प्रकार से लंका में स्नो लेपर्ड दिखा है, वह एक अच्छा संकेत है.

पढ़ें- राजाजी नेशनल पार्क लाए जा रहे बाघों को बचाने का पायलट प्रोजेक्ट, NCTA ने जारी किए निर्देश

बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में दुर्लभ हिम तेंदुओं की मौजूदगी हमेशा से हर किसी की उत्सुकता के केंद्र में रही है. उत्तराखंड के परिपेक्ष में देखें तो यहां भी अच्छी-खासी तादाद में हिम तेंदुओं की मौजूदगी का अनुमान है. गंगोत्री नेशनल पार्क एवं गोविंद वन्यजीव विहार से लेकर अस्कोट अभयारण्य तक के क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर लगे कैमरा ट्रैप में कैद होने वाली हिम तेंदुओं की तस्वीरें इसकी तस्दीक करती हैं. बावजूद इसके अभी इस रहस्य से पर्दा उठना बाकी है कि आखिर यहां हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या कितनी है.

क्या है हिम तेंदुआ: बता दें कि स्नो लेपर्ड दुनिया की दुर्लभ प्रजातियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह 10 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर पाया जाता है. क्या है हिम तेंदुआ हिम तेन्दुआ एक विडाल प्रजाति है जो मध्य एशिया में रहती है. हिम तेन्दुए के नाम में 'तेन्दुआ' है, लेकिन यह एक छोटे तेंदुए के समान दिखता है और इनमें आपसी संबंध नहीं है.

पढ़ें- गोविन्द वन्य जीव विहार में दूसरी बार मिले स्नो लेपर्ड के साक्ष्य

रंगरूप और आकार: हिम तेंदुए करीब 1.4 मीटर लम्बे होते हैं और इनकी पूंछ करीब 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है. इनका भार 75 किलो तक हो सकता है. इनकी खाल पर सलेटी और सफेद फर होता है और गहरे धब्बे होते हैं. इनकी पूंछ में धारियां बनीं होती हैं. इनका फर बहुत लम्बा और मोटा होता है, जो इन्हे ऊंचे और ठंडे स्थानों पर भीषण सर्दी से बचा कर रखता है. इन तेंदुओं के पैर भी बड़े और ऊनी होते हैं. ताकि बर्फ चलना-फिरना सहज हो सके.

15 मीटर की ऊंचाई तक उछलने में सक्षम: ये बिल्ली-परिवार की एकमात्र प्रजाति है जो दहाड़ नहीं सकती है, लेकिन गुर्राना (बिल्ली के जैसी आवाज) निकालना सकती है.

हिम तेंदुओं का जीवन: हिम तेंदुए अधिकांशत रात्रि में सक्रिय होते हैं. ये अकेले रहने वाले जीव हैं. लगभग 90 से 100 दिनों के गर्भाधान के बाद मादा 2 से 3 शावकों को जन्म देती है. यह बड़ी आकार की बिल्लियां है और लोग इनका शिकार इनके फर के लिए करते हैं.

उत्तरकाशी: वन्यजीव संरक्षण के लिहाज से उत्तराखंड के लिए अच्छी खबर है. उत्तरकाशी के गंगोत्री नेशनल पार्क में हिम तेंदुओं (snow leopard) की संख्या है. गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों का कहना कि उनके ट्रैप कैमरों के अनुसार पार्क में हिमालय के राजा दुर्लभ प्रजाति के स्नो लेपर्ड की संख्या बढ़ी है.

इसके अलावा एक और अच्छी खबर है. इस साल जुलाई माह में करीब 3000 मीटर की ऊंचाई स्थित लंका में दिन के समय भी snow leopard घूमता हुआ कैमरे में कैद हुआ है, जो अच्छा सकेत है. लंका में ही स्नो लेपर्ड कंजर्वेशन सेंटर का निर्माण होना है.

गंगोत्री नेशनल पार्क में बढ़ी हिम तेंदुओं की संख्या.

पढ़ें- गुलदारों की बढ़ती संख्या इंसानी जिंदगी पर पड़ रही भारी, 236 लोगों को बना चुके शिकार

पार्क प्रशासन हिम तेंदुओं की बढ़ती संख्या से गदगद है. पार्क प्रशासन के अधिकारियों ने बताया कि पिछले साल गंगोत्री नेशनल पार्क में स्नो लेपर्ड की संख्या 30 से 35 के बीच मानी जा रही थी, लेकिन इस बार 40 से 50 के बीच में है, जो स्नो लेपर्ड के संरक्षण में काफी अच्छा संकेत है.

पढ़ें- उत्तराखंड में लॉकडाउन का असर, जलवायु से लेकर वन्यजीवों के व्यवहार में आया बदलाव

गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार में ईटीवी भारत को फोन पर इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया है कि सर्दियों में स्नो लेपर्ड कैमरों में ज्यादा कैद हुए है. इस साल लंका में भी स्नो लेपर्ड स्पॉट किया गया. इन सब गतिविधियों के अनुसार वर्तमान में गंगोत्री नेशनल पार्क के अंर्तगत 40 से 50 स्नो लेपर्ड मौजूद हैं.

पढ़ें- International Tiger Day: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हैं देश के सबसे ज्यादा बाघ

पंवार ने बताया कि अभी स्नो लेपर्ड की प्रथम चरण की गणना भी पूरी हो चुकी है. उसमें भी स्नो लेपर्ड के पग मार्क सहित किल (शिकार) की भी अच्छी संख्या मिली है, जो संकेत है कि पार्क के अंतर्गत स्नो लेपर्ड की संख्या अच्छी है. हालांकि अभी तक स्नो लेपर्ड की गणना के कोई सटीक आंकड़े अभी भी वन विभाग के पास नहीं हैं. अभी स्नो लेपर्ड की संख्या को लेकर जो भी अनुमान लगाया जा रहा है. वो सब स्नो लेपर्ड की ट्रैप कैमरों में फोटो सहित पग मार्क और शिकार के आधार पर हैं.

पार्क के वन दरोगा राजवीर रावत का कहना है कि शीतकाल में गंगोत्री और गौमुख ट्रैक में लगाए गए ट्रैप कैमरों में स्नो लेपर्ड की तस्वीरें अच्छी संख्या में कैप्चर हुई हैं. पंवार ने कहा कि लंका (भैरो घाटी) में ही स्नो लेपर्ड कन्जर्वेशन सेंटर बनना है और जिस प्रकार से लंका में स्नो लेपर्ड दिखा है, वह एक अच्छा संकेत है.

पढ़ें- राजाजी नेशनल पार्क लाए जा रहे बाघों को बचाने का पायलट प्रोजेक्ट, NCTA ने जारी किए निर्देश

बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में दुर्लभ हिम तेंदुओं की मौजूदगी हमेशा से हर किसी की उत्सुकता के केंद्र में रही है. उत्तराखंड के परिपेक्ष में देखें तो यहां भी अच्छी-खासी तादाद में हिम तेंदुओं की मौजूदगी का अनुमान है. गंगोत्री नेशनल पार्क एवं गोविंद वन्यजीव विहार से लेकर अस्कोट अभयारण्य तक के क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर लगे कैमरा ट्रैप में कैद होने वाली हिम तेंदुओं की तस्वीरें इसकी तस्दीक करती हैं. बावजूद इसके अभी इस रहस्य से पर्दा उठना बाकी है कि आखिर यहां हिम तेंदुओं की वास्तविक संख्या कितनी है.

क्या है हिम तेंदुआ: बता दें कि स्नो लेपर्ड दुनिया की दुर्लभ प्रजातियों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह 10 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर पाया जाता है. क्या है हिम तेंदुआ हिम तेन्दुआ एक विडाल प्रजाति है जो मध्य एशिया में रहती है. हिम तेन्दुए के नाम में 'तेन्दुआ' है, लेकिन यह एक छोटे तेंदुए के समान दिखता है और इनमें आपसी संबंध नहीं है.

पढ़ें- गोविन्द वन्य जीव विहार में दूसरी बार मिले स्नो लेपर्ड के साक्ष्य

रंगरूप और आकार: हिम तेंदुए करीब 1.4 मीटर लम्बे होते हैं और इनकी पूंछ करीब 90 से 100 सेंटीमीटर तक होती है. इनका भार 75 किलो तक हो सकता है. इनकी खाल पर सलेटी और सफेद फर होता है और गहरे धब्बे होते हैं. इनकी पूंछ में धारियां बनीं होती हैं. इनका फर बहुत लम्बा और मोटा होता है, जो इन्हे ऊंचे और ठंडे स्थानों पर भीषण सर्दी से बचा कर रखता है. इन तेंदुओं के पैर भी बड़े और ऊनी होते हैं. ताकि बर्फ चलना-फिरना सहज हो सके.

15 मीटर की ऊंचाई तक उछलने में सक्षम: ये बिल्ली-परिवार की एकमात्र प्रजाति है जो दहाड़ नहीं सकती है, लेकिन गुर्राना (बिल्ली के जैसी आवाज) निकालना सकती है.

हिम तेंदुओं का जीवन: हिम तेंदुए अधिकांशत रात्रि में सक्रिय होते हैं. ये अकेले रहने वाले जीव हैं. लगभग 90 से 100 दिनों के गर्भाधान के बाद मादा 2 से 3 शावकों को जन्म देती है. यह बड़ी आकार की बिल्लियां है और लोग इनका शिकार इनके फर के लिए करते हैं.

Last Updated : Aug 19, 2021, 10:05 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.