रुद्रपुर: कोरोना महामारी के बीच उत्तराखंड लौटे प्रवासियों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए अब पन्तनगर कृषि विश्विद्यालय ने कमर कस ली है. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम प्रवासियों को कृषि से जोड़ने के लिए एक रूप रेखा तैयार की है. जिसमें युवा वर्ग को कमर्शियल खेती से जोड़कर रोजगार देने की कोशिश है. कमर्शियल खेती जिसमें मशरूम, शहद, औषधीय पौधों के उत्पादन के साथ ही दुग्ध व्यवसाय का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा. वहीं, उत्पादों को बेहतर बाजार मुहैया कराने के लिए कैनिंग और पोस्ट हार्वेस्टिंग की भी जानकारी दी जाएगी. ताकि, उत्पादन किया गया सामान खराब ना हो.
कोरोना महामारी के बीच प्रदेश में प्रवासियों के लौटने का सिलसिला जारी है. ऐसे में प्रदेश सरकार के साथ अब पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रवासियों के रोजगार देने की कवायद में जुटी हुई है. प्रवासियों को कृषि के साथ जोड़ने के लिए शिक्षा प्रसार निदेशालय द्वारा रूप रेखा तैयार की गई है. जिसमे प्रवासियों को किस तरह से कृषि के साथ जोड़ा जाए, इसकी रूप रेखा तैयार की गई है. इसके लिए निदेशालय द्वारा प्रदेश के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों के अधिकारियों से अपने अपने जिलों में लौटे प्रवासियों की लिस्ट तैयार करने को कहा गया है और उन्हें उनके हिसाब से कैटेगिरी बनाने के निर्देश दिए गए है.
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जिसके बाद प्रवासियों को उसी फील्ड की ट्रेनिंग केवीके के माध्यम से दी जाएगी. जिसमें वह रुचि रखते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र प्रभारी अनिल शर्मा ने बताया कि पहाड़ी ओर मैदानी क्षेत्रों में लौटे प्रवासियों को रोजगार उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती है. ऐसे में पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय की टीम कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से युवाओं को रोजगार मुहैया कराएगी. उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों की टीम द्वारा प्रवासियों की कैटेगिरी बनाई जा रही है. जिसके बाद उन्हें उसी क्षेत्र की ट्रेनिंग दी जाएगी, जिस क्षेत्र में वह काम करना चाहते हैं.
शर्मा ने बताया कि उत्तराखंड के पहाड़ी जिलो में कमर्शियल खेती को बढ़ावा देने के लिए युवाओं को कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से मशरूम, मौन पालन, औषधीय पौधों का उत्पादन, दुग्ध व्यवसाय और मछली पालन की जानकारी और ट्रेनिंग दी जाएगी. कई ऐसे व्यवसाय हैं, जिसमें थोड़ा लागत लगाकर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. मशरूम उत्पादन के बाद कैनिंग कर उसे बाजार में उतारा जा सकता है. यही नहीं मछली का उत्पादन कर उसे अचार या अन्य प्रोडक्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. ट्रेनिंग के दौरान तमाम प्रोडक्ट के पोस्ट हार्वेस्टिंग के ऊपर ध्यान दिया जाएगा. ताकि, जो लोग इस फील्ड में आते है. उन्हें बाजारों में अच्छा दाम मिल सके. जिससे पलायन को रोकने में मदद मिलेगी.