टिहरी: अमर शहीद श्रीदेव सुमन की आज 77वीं पुण्यतिथि है. 25 जुलाई यानी आज ही के दिन श्रीदेव सुमन ने अपने प्राणों की आहूति दी थी, जिनका बलिदान दिवस भुलाया नहीं जा सकता. जिन्हें टिहरी राजशाह से आजादी के लिए 84 दिनों तक तिल तिल करके मरना पड़ा. जिनकी रोटियों में कांच कूट कर डाला गया और उन्हें वो कांच की रोटियां खाने को मजबूर किया गया. बेतहां अत्याचार के आगे भी श्रीदेव की आवाज को टिहरी रियासत दबा न सका, आप भी देवभूमि की फिजा में इस आंदोलनकारी की गाथा सुनने के लिए मिल जाती है.
25 मई, 1915 को श्रीदेव सुमन ने टिहरी के ही जौल गांव में जन्म हुआ. 30 दिसंबर, 1943 से 25 जुलाई, 1944 तक 209 दिन श्रीदेव सुमन ने टिहरी की नारकीय जेल में बिताए. इस दौरान इन पर कई प्रकार से अत्याचार होते रहे, झूठे गवाहों के आधार पर जब इन पर मुकदमा दायर किया गया था. हालांकि, टिहरी रियासत को अंग्रेज कभी भी अपना गुलाम नहीं बना पाए थे. जेल में रहकर श्रीदेव सुमन कमजोर नहीं पड़े. अगस्त 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो टिहरी आते समय श्रीदेव सुमन को 23 अगस्त 1942 को देवप्रयाग में ही गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिन मुनि की रेती जेल में रखने के बाद 6 सितंबर को देहरादून जेल भेज दिया गया. ढ़ाई महीने देहरादून जेल में रखने के बाद इन्हें आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया. जहां ये 15 महीने नजरबंद रखे गये.84 दिन की ऐतिहासिक अनशन के बाद 25 जुलाई 1944 में 29 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.
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इस बीच टिहरी रियासत की जनता लगातार लामबंद होती रही और रियासत उनका उत्पीड़न करती रही. टिहरी रियासत के जुल्मों के संबंध में इस दौरान जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि टिहरी राज्य के कैदखाने दुनिया भर में मशहूर रहेंगे. लेकिन इससे दुनिया में रियासत की कोई इज्जत नहीं बढ़ सकती. इन्हीं परिस्थितियों में यह 19 नवंबर 1943 को आगरा जेल से रिहा हुये. यह फिर टिहरी की जनता के अधिकारों को लेकर अपनी आवाज बुलंद करने लगे. इनके शब्द थे कि मैं अपने शरीर के कण-कण को नष्ट हो जाने दूंगा, लेकिन टिहरी के नागरिक अधिकारों को कुचलने नहीं दूंगा. इस बीच उन्होंने दरबार और प्रजामंडल के बीच सम्मान जनक समझौता कराने का प्रस्ताव भी भेजा. लेकिन दरबारियों ने उसे खारिज कर इनके पीछे पुलिस और गुप्तचर लगवा दिये. 27 दिसंबर 1943 को उन्हें चम्बाखाल में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और 30 दिसंबर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया, जहां से इनका शव ही बाहर आ सका.
जनक्रांति के नायक अमर शहीद श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पर उन्हें हर साल श्रद्धासुमन अर्पित कर उनके बलिदान को याद किया जाता है. श्रीदेव सुमन ने समाज को सिर उठाकर जीने की प्रेरणा दी है. इस जनक्रांति के नायक ने टिहरी राजशाही के खिलाफ 84 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल करके 25 जुलाई के दिन अपने प्राणों की आहूति दी थी. उनके इस बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता है. वहीं इसी के इतर श्रीदेव सुमन के परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है, जिस कारण श्री देव सुमन के परिजन नाराज हैं. उन्होंने जनप्रतिनिधियों के प्रति नाराजगी जताते हुए कहा आज तक किसी भी जनप्रतिनिधियों ने श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादों को संजोकर रखने के लिए कोई कार्य नहीं किया, सिर्फ आश्वासन मिलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि सियासतदान श्रीदेव सुमन के नाम पर राजनीति करते हैं,जिसके बाद भूल जाते हैं.
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श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें: महान क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन के परिजनों ने आज भी उनकी जुड़ी वस्तुओं को संजोकर रखा है. राजशाही की पुलिस का डंडा श्रीदेव सुमन के परिजनों ने अभी तक संजोकर रखा है. बता दें कि, श्रीदेव सुमन सबसे बड़े आंदोलनकारी रहे हैं. टिहरी राजशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले श्रीदेव सुमन के घर पर उनका सामान आज भी सुरक्षित है. श्रीदेव सुमन को देखते ही पुलिस के एक जवान ने उनके ऊपर जोर से डंडा फेंका था. श्रीदेव सुमन तो भाग गये डंडा एक झाड़ी में उलझ गया. जो डंडा झाड़ी में अटक गया था, उसे श्रीदेव सुमन की मां ने अपने पास छुपा दिया था.
राजशाही की पुलिस ने सुमन की मां से डंडा वापस मांगा और धमकी भी दी. लेकिन श्रीदेव सुमन की मां ने डंडा वापस नहीं दिया. इसके बाद राजशाही की पुलिस टिहरी वापस चली गई. वहीं, श्रीदेव सुमन के भाई के पुत्र मस्तराम बडोनी ने बताया कि श्रीदेव सुमन से जुड़ी यादें पलंग, डेस्क और पुलिस का डंडा आज भी उनके पास सुरक्षित है. जिन्हें वे अपने पितरों की निशानी समझते हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर श्रीदेव सुमन की जयंती और बलिदान दिवस पर कई नेता मुख्यमंत्री आए और इन वस्तुओं को संजोकर रखने के वादे किए. आज तक किसी ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया. वहीं झूठे आश्ववासनों से परिजन आजिज आ चुके हैं और उनमें रोष भी है.