देहरादून (उत्तराखंड): 22 जनवरी को अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का भव्य आयोजन किया गया है. प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देशभर में उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है. पूरा देश इस वक्त राम के रंग में रंगा है, मगर क्या आपने कभी सोचा है आज जिस जगह मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है सबसे पहले उसके गेट किस अधिकारी ने खुलवाये थे? उस दौर में वहां कैसा माहौल था? तब वहां कौन सा अधिकारी तैनात था? आपके इन सभी सवालों के जवाब ईटीवी भारत आपको देगा. आज हम आपको राम मंदिर के शुरुआती दिनों से जुड़े किस्से उसी अधिकारी से सुनाने जा रहे हैं.
इंदु कुमार पांडेय ने अपनी मौजूदगी में खुलवाया था ताला: तब का फैजाबाद, आज के अयोध्या में राम मंदिर का गेट पहली बार कब किसने और किसके आदेश पर खोले इसको लेकर अलग-अलग बातें सामने आती रहती हैं. विपक्षी दल कांग्रेस लगातार इस बात को कहता है कि अयोध्या में रामलला के मंदिर के कपाट पहली बार राजीव गांधी के आदेश पर खोले गए थे. बीजेपी इस बात को हमेशा से नकारती आई है. भगवान राम के गेट खोलने में किसकी भूमिका रही? कैसे यह प्रक्रिया पूरी हुई? इन सभी मुद्दों को बारीकी से जानने के लिए हमने तब के फैजाबाद जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय से बातचीत की. इंदु कुमार पांडेय ने उस दौर में बिना किसी रुकावट के इस पूरे काम को अंजाम तक पहुंचाया.
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1949 में सुरक्षा कारणों के हवाले से लगाया गया ताला: बता दें 23 दिसंबर 1949 को पहली बार बाबरी मस्जिद राम जन्म स्थान पर ताला लगाया गया था. उस वक्त केंद्र में पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे. तब उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार थी. उस समय पंडित गोविंद बल्लभ पंत मुख्यमंत्री थे. उस वक्त के माहौल को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार सुनील दत्त पांडे से बातचीत की गई. सुनील दत्त पांडे ने बताया 1949 में बाबरी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर बहुत कुछ हुआ.
यह वो साल था जब पहली बार तथाकथित बाबरी मस्जिद में ताला लगाया गया था. उस वक्त फैजाबाद में जिलाधिकारी केके नायर थे. उस वक्त भी उन्हें किसी बड़े नेता ने मंदिर की मूर्ति को लेकर एक आदेश दिया था, लेकिन उन्होंने सुरक्षा कारणों को देखते हुए उनकी बात मानने से साफ इनकार कर दिया था. फैजाबाद में उस वक्त माहौल ठीक नहीं था. राजनेता चाहते थे की मूर्ति को चबूतरे में रख दिया जाये. तब केके नायर ने उस सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए ताला लगा दिया था.
उसके बाद 29 दिसंबर साल 1949 को फैजाबाद कोर्ट ने एक आदेश जारी किया. जिसमें वहां एक म्युनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति की. यानी वहां पर एक रिसीवर बैठा दिया गया. जिसके बाद बाबरी मस्जिद के किसी भी तरह के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई थी. इसके बाद ही देशभर में राम मंदिर को लेकर लगातार आंदोलन तेज होते गए. अलग-अलग हिंदू संगठनों ने राम मंदिर को लेकर आवाज उठानी शुरू की.
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राजीव गांधी के सलाहकारों ने दी ताला खुलवाने की सलाह: इसके कई साल बाद ये नवंबर 1985 में साउथ में एक बड़ी धर्म संसद हुई, जिसमें संतों ने बड़ा निर्णय लिया. संतों ने कहा अगर 9 मार्च 1986 तक ताला नहीं खुला तो वह अनशन शुरू करेंगे. इतना ही नहीं तब महंत परमहंस रामचंद्र दास ने आत्मदाह की चेतावनी भी दे डाली थी. उसी वक्त अचानक सायरा बानो केस ने भी तूल पकड़ा. सायरा बानो केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर उस फैसले को पलटा. जिसके बाद राजीव गांधी के खिलाफ हिंदुओं का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब राजीव गांधी को उनके सलाहकार और उनके करीबियों ने इस बात से अवगत कराया के हिंदू कांग्रेस से बेहद नाराज हैं. यह पार्टी के लिए सही नहीं है. तब उनके सलाहकारों ने उन्हें अयोध्या राम मंदिर को खुलवाने की पहल की बात कही.
फैजाबाद के तत्तकालीन डीएम इंदु कुमार पांडेय से मांगी रिपोर्ट: उसके बाद पहली बार फैजाबाद में जनवरी महीने में ही एक वकील ने निचली अदालत में ताला खोलने के लिए अपील की. उससे जुड़े कुछ कागज कोर्ट में उपलब्ध न होने की वजह से कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी. इसके बाद उसी वकील ने जिला जज फैजाबाद के यहां एक और याचिका दाखिल की. उस वक्त वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. तब जिला जज ने उस याचिका पर जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी.
कोर्ट ने जिला प्रशासन से पूछा अगर ताला खुलता है तो कानून व्यवस्था का क्या होगा? इसके साथ ही माहौल को लेकर भी जानकारी मांगी गई. तब इंदु कुमार पांडेय फैजाबाद के जिलाधिकारी थे. इंदु कुमार पांडेय बाद में उत्तराखंड के मुख्य सचिव भी बने. खैर, जब जिला जज फैजाबाद ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी तब इंदु कुमार पांडेय ने क्या किया? उन्होंने कैसे हालातों को संभाला? इस पर हमने इंदु कुमार पांडेय से बात की.
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डीएम इंदु कुमार पांडे ने शाम के वक्त खुलवाया ताला: ईटीवी भारत बात करते हुए तत्कालीन फैजाबाद जिलाधिकारी और अब रिटायर हो चुके पूर्व आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पांडेय ने बताया वो किसी भी राजनीति में नहीं पड़ना चाहते. उन्होंने कहा उस वक्त उनके पास कोर्ट का एक आदेश आया था. जिसमें ताला खुलने पर लॉ एंड आर्डर की स्थिति को लेकर सवाल पूछा गया था. जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन एसपी कर्मवीर सिंह के साथ बातचीत की. तब दोनों ने मिलकर किसी भी परिस्थिति से निपटने का फैसला लिया. दोनों ही अधिकारियों ने कहा स्थिति कोई भी हो वो हालात नहीं बिगड़ने देंगे. उससे पहले के अधिकारियों ने ताला खुलने के बाद तनाव बढ़ने के इनपुट दिये थे. पूर्व आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पांडेय ने कहा, हमें विश्वास था कि हम सफलतापूर्वक कोर्ट के आदेश का अनुपालन करवा लेंगे. ऐसा ही हुआ. उन्होंने कहा आज भी उन्हें वो दिन याद है. उन्होंने शाम के वक्त ताला खुलवाया था.
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कोर्ट के आदेश पर खुलवाया ताला: पूर्व आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पांडे ने बताया, वो इस बात को लेकर पूरा कॉन्फिडेंट थे कि ताला खुलने के बाद हालात खराब नहीं होंगे. इसके लिए उन्होंने पूरे शहर में अच्छी खासी व्यवस्था की थी. ताला खुलने के बाद किसी बड़े नेता, दिल्ली या लखनऊ से कोई कॉल आया? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा ताला खुलवाने के बाद वो एक साल फैजाबाद में रहे. इस दौरान वो अक्सर समय-समय पर मंदिर में व्यवस्थाओं को देखने के लिए जाते थे. उन्होंने बताया कि इस साल के बीच उनके पास किसी का भी फोन नहीं आया. उन्होंने कहा वो ताला खुलवाने का श्रेय नहीं लेना चाहते. उन्होंने कोर्ट के आदेश का पालन करवाया. उन्होंने बताया कि उनकी व्यक्तिगत भावनाएं उनके काम के बीच में ना आएं वो हमेशा ही ऐसी कोशिश करते हैं. पूर्व आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पांडे ने बताया कि जब मंदिर का ताला खुला तब भगवान राम अंदर ही विराजमान थे. हालांकि, राम मंदिर निर्माण के सवाल पर उन्होंने ज्यादा कुछ कहने से इंकार कर दिया.
देहरादून में परिवार के साथ रहते हैं इंदु कुमार पांडे: बता दें कि, पूर्व आईएएस अधिकारी इंदु कुमार पांडे इसके बाद उत्तराखंड के मुख्य सचिव भी रहे. इतना ही नहीं, वो पांचवें वित्त आयोग के अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं. उनकी पहचान तेज तर्रार अधिकारियों में की जाती है. वो विदेश में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं. आजकल वो अपने परिवार के साथ देहरादून में रहते हैं. इंदु कुमार पांडे आजकल कविताएं लिख रहे हैं. वो उर्दू और हिंदी में कविताएं लिखते हैं.