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जाने केदारनाथ की महिमा, कैसे होती है पूजा और क्या है रहस्य

बुधवार को केदारनाथ धाम के कपाट खोलने की तैयारियों को लगभग पूरा कर लिया गया है. बाबा केदारनाथ की डोली केदारधाम पहुंच चुकी है. आज सुबह पूरे विधि-विधान और मंत्रोच्चार के साथ केदारनाथ के कपाट खोले गए.

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कपाट खुलने से पहले यहां जाने केदारनाथ की महिमा
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Published : Apr 29, 2020, 7:02 AM IST

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड प्राचीनकाल से ही ऋषि-मुनियों और देवताओं की तपस्थली रहा है. महान विभूतियों ने यहां तपस्या करके आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया है. उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में चारधाम के नाम से बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम हैं. ये तीर्थ देश के सिर-मुकुट पर चमकते हुए बहुमूल्य रत्न हैं. इनमें से बदरीनाथ और केदारनाथ तीर्थों के दर्शन का विशेष महत्व है.

करोड़ों हिंदुओं के आस्था का प्रतीक और भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारनाथ को जाना जाता है. जिसकी यात्रा अप्रैल-मई के महीने में शुरू होती है.

जानें केदारनाथ की महिमा.

कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मजेय ने करवाया था. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है. आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. केदारनाथ की बड़ी महिमा है.

पढ़ें- क्वॉरेंटाइन पूरा होने के बाद 14 लोगों की घर वापसी, टिहरी पहुंची बस

इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं. राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है. एक मान्यतानुसार वर्तमान का केदारनाथ मंदिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बनवाया था, जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले मंदिर के ठीक बगल में है. मंदिर की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्म लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है. फिर भी इतिहासकारों के मुताबिक शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं.

पढ़ें- कांग्रेस को दूसरे राज्यों में फंसे 25 हजार लोगों का दर्द, सरकार पर साधा निशाना

1882 के इतिहास के अनुसार अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था, जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियां हैं, पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टावर है. इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है. यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर पदक्षिणा पथ है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है.

पढ़ें- वर्चुअल कॉन्फ्रेंस में बोले CM त्रिवेंद्र, CII सरकार के साथ मिलकर करे काम

किस तरह की जाती है केदारनाथ में पूजा

यहां प्रातः काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है. उसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती-उतारी जाती है. इस दौरान यात्री गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं. शाम के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है. भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं.

केदारनाथ की पूजा के बारे में कुछ जानकारियां

  • दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है.
  • उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है.
  • फिर शाम पांच बजे भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खोला जाता है.
  • शाम को पंचमुखी भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक नियमित आरती होती है.
  • रात साढ़े आठ बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है.

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड प्राचीनकाल से ही ऋषि-मुनियों और देवताओं की तपस्थली रहा है. महान विभूतियों ने यहां तपस्या करके आध्यात्मिक शक्ति अर्जित कर विश्व में भारत का गौरव बढ़ाया है. उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में चारधाम के नाम से बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम हैं. ये तीर्थ देश के सिर-मुकुट पर चमकते हुए बहुमूल्य रत्न हैं. इनमें से बदरीनाथ और केदारनाथ तीर्थों के दर्शन का विशेष महत्व है.

करोड़ों हिंदुओं के आस्था का प्रतीक और भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारनाथ को जाना जाता है. जिसकी यात्रा अप्रैल-मई के महीने में शुरू होती है.

जानें केदारनाथ की महिमा.

कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मजेय ने करवाया था. यहां स्थित स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है. आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. केदारनाथ की बड़ी महिमा है.

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इस मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं. राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है. एक मान्यतानुसार वर्तमान का केदारनाथ मंदिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बनवाया था, जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले मंदिर के ठीक बगल में है. मंदिर की सीढ़ियों पर पाली या ब्राह्म लिपि में कुछ खुदा है, जिसे स्पष्ट जानना मुश्किल है. फिर भी इतिहासकारों के मुताबिक शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं.

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1882 के इतिहास के अनुसार अग्रभाग के साथ मंदिर एक भव्य भवन था, जिसके दोनों ओर पूजन मुद्रा में मूर्तियां हैं, पीछे भूरे पत्थर से निर्मित एक टावर है. इसके गर्भगृह की अटारी पर सोने का मुलम्मा चढ़ा है. यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है. मंदिर में मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर पदक्षिणा पथ है. बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं. मंदिर का निर्माण किसने करवाया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है.

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किस तरह की जाती है केदारनाथ में पूजा

यहां प्रातः काल में शिव-पिंड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है. उसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती-उतारी जाती है. इस दौरान यात्री गण मंदिर में प्रवेश कर पूजन कर सकते हैं. शाम के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है. उन्हें विविध प्रकार के चित्ताकर्षक ढंग से सजाया जाता है. भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं.

केदारनाथ की पूजा के बारे में कुछ जानकारियां

  • दोपहर एक से दो बजे तक विशेष पूजा होती है.
  • उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है.
  • फिर शाम पांच बजे भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर खोला जाता है.
  • शाम को पंचमुखी भगवान शिव की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक नियमित आरती होती है.
  • रात साढ़े आठ बजे केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग का मंदिर बंद कर दिया जाता है.
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