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कारगिल दिवस: शहादत के बाद घर पहुंची थी शहीद गिरीश की आखिरी चिट्ठी

हवलदार गिरीश सिंह सामंत  की शहादत के बाद परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा. मगर परिस्थितियों से जूझते हुए शहीद की पत्नी शांति देवी ने परिवार को अपने पांव पर खड़ा कर दिया है. ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे.

शहादत के बाद घर पहुंची थी शहीद गिरीश की आखिरी चिट्ठी.
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Published : Jul 25, 2019, 11:04 AM IST

पिथौरागढ़: कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के जाबांज सैनिकों का अहम योगदान रहा है. जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न किए बगैर कारगिल हिल्स पर विजय पताका फहराया था. भारत के वीर सैनिकों के अदम्य साहस को देखकर आज भी दुश्मन देश की रूह कांप जाती है. इन्हीं में से एक पिथौरागढ़ जिले के उड़ई गांव के रहने शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामंत भी थे. जो दुश्मन की 9 गोलियां सीने पर खाकर वीरगति को प्राप्त हुए.

शहादत के बाद घर पहुंची थी शहीद गिरीश की आखिरी चिट्ठी.

गौर हो कि हवलदार गिरीश सिंह सामंत की शहादत के बाद परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा. मगर परिस्थितियों से जूझते हुए शहीद की पत्नी शांति देवी ने परिवार को अपने पांव पर खड़ा कर दिया है. ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे. लेकिन शांति ने कठिन हालातों में भी हार नहीं मानी और दोनों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की. शहीद की पुत्री मोनिका पंतनगर विश्वविद्यायल से बीटेक करने के बाद नौकरी कर रही हैं. जबकि, बेटा अमित देहरादून से बीटेक कर रहा है.

पढ़ें-दावों की पोल खोलती तस्वीर: 8KM पैदल डंडी-कंडी के सहारे बीमार महिला को पहुंचाया अस्पताल

वहीं, सरकारी मदद से शहीद परिवार ने पिथौरागढ़ मुख्यालय में मकान बना लिया है. शांति देवी शहीद के नाम पर मिली गैस एजेंसी का साल 2006 से कुशल संचालन कर रही है. शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9 पैरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर उन्हें नौकरी के दौरान ही विदेश सेवा मेडल, लोक सेवा मेडल और सैन्य सेवा मेडल से भी नवाजा गया था.

ऑपरेशन विजय के दौरान 25 जुलाई 1999 की शाम गिरीश पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए दुश्मन की गोली का शिकार हुए. ईटीवी से खास बातचीत में शहीद की शांति देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले वो अपने पति और बच्चों के साथ एनएसजी मानेसर में रहती थी. युद्ध में जाने से पूर्व पति परिवार को गांव में छोड़ कर गए थे. जबकि. उन्होंने कारगिल युद्ध में जाने की बात परिवार से छुपाई थी. शांति का कहना है कि उनके पति की आखिरी चिठ्ठी उनकी शहादत के बाद घर पहुंची थी.

पिथौरागढ़: कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के जाबांज सैनिकों का अहम योगदान रहा है. जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न किए बगैर कारगिल हिल्स पर विजय पताका फहराया था. भारत के वीर सैनिकों के अदम्य साहस को देखकर आज भी दुश्मन देश की रूह कांप जाती है. इन्हीं में से एक पिथौरागढ़ जिले के उड़ई गांव के रहने शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामंत भी थे. जो दुश्मन की 9 गोलियां सीने पर खाकर वीरगति को प्राप्त हुए.

शहादत के बाद घर पहुंची थी शहीद गिरीश की आखिरी चिट्ठी.

गौर हो कि हवलदार गिरीश सिंह सामंत की शहादत के बाद परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा. मगर परिस्थितियों से जूझते हुए शहीद की पत्नी शांति देवी ने परिवार को अपने पांव पर खड़ा कर दिया है. ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे. लेकिन शांति ने कठिन हालातों में भी हार नहीं मानी और दोनों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की. शहीद की पुत्री मोनिका पंतनगर विश्वविद्यायल से बीटेक करने के बाद नौकरी कर रही हैं. जबकि, बेटा अमित देहरादून से बीटेक कर रहा है.

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वहीं, सरकारी मदद से शहीद परिवार ने पिथौरागढ़ मुख्यालय में मकान बना लिया है. शांति देवी शहीद के नाम पर मिली गैस एजेंसी का साल 2006 से कुशल संचालन कर रही है. शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9 पैरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर उन्हें नौकरी के दौरान ही विदेश सेवा मेडल, लोक सेवा मेडल और सैन्य सेवा मेडल से भी नवाजा गया था.

ऑपरेशन विजय के दौरान 25 जुलाई 1999 की शाम गिरीश पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए दुश्मन की गोली का शिकार हुए. ईटीवी से खास बातचीत में शहीद की शांति देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले वो अपने पति और बच्चों के साथ एनएसजी मानेसर में रहती थी. युद्ध में जाने से पूर्व पति परिवार को गांव में छोड़ कर गए थे. जबकि. उन्होंने कारगिल युद्ध में जाने की बात परिवार से छुपाई थी. शांति का कहना है कि उनके पति की आखिरी चिठ्ठी उनकी शहादत के बाद घर पहुंची थी.

Intro:पिथौरागढ़: जिले के उड़ई गाँव के रहने शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त कारगिल युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वालों में से एक थे। दुश्मन की 9 गोलियां सीने पर खाकर भारत माँ का ये लाल वीरगति को प्राप्त हुआ। गिरीश की शहादत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मगर परिस्थितियों से जूझते हुए वीरांगना शांति देवी ने परिवार को अपने पाँव पर खड़ा कर दिया है।

ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे। वीरांगना शांति ने कठिन हालातों को मात देकर दोनों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की। शहीद की पुत्री मोनिका पंतनगर विश्वविद्यायल से बीटेक कर नॉकरी में लग गयी है। जबकि बेटा अमित देहरादून से बीटेक कर रहा है। सरकारी मदद से शहीद परिवार ने पिथौरागढ़ मुख्यालय में मकान बना लिया है। वीरांगना शांति देवी शहीद के नाम पर मिली गैस एजेंसी का साल 2006 से संचालन कर रही है।

शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9 पैरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर उन्हें नॉकरी के दौरान ही विदेश सेवा मैडल, लोक सेवा मैडल और सैन्य सेवा मैडल से भी नवाजा गया था। ऑपरेशन विजय के दौरान 25 जुलाई 1999 की शाम गिरीश पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए दुश्मन की गोली का शिकार हुए। ईटीवी से खास बातचीत में वीरांगना शांति देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले वो अपने पति और बच्चों के साथ एनएसजी मानेसर में रहती थी। युद्ध मे जाने से पूर्व पति परिवार को गाँव में छोड़ कर गए थे। जबकि युद्ध मे जाने की बात उन्होंने परिवार से छुपाई थी। शांति ने बताया कि उनके पति की आखिरी चिठ्ठी उनकी शहादत के बाद घर पहुँची थी।

Byte: शांति देवी, शहीद गिरीश की पत्नी




Body:पिथौरागढ़: जिले के उड़ई गाँव के रहने शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त कारगिल युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वालों में से एक थे। दुश्मन की 9 गोलियां सीने पर खाकर भारत माँ का ये लाल वीरगति को प्राप्त हुआ। गिरीश की शहादत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। मगर परिस्थितियों से जूझते हुए वीरांगना शांति देवी ने परिवार को अपने पाँव पर खड़ा कर दिया है।

ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे। वीरांगना शांति ने कठिन हालातों को मात देकर दोनों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की। शहीद की पुत्री मोनिका पंतनगर विश्वविद्यायल से बीटेक कर नॉकरी में लग गयी है। जबकि बेटा अमित देहरादून से बीटेक कर रहा है। सरकारी मदद से शहीद परिवार ने पिथौरागढ़ मुख्यालय में मकान बना लिया है। वीरांगना शांति देवी शहीद के नाम पर मिली गैस एजेंसी का साल 2006 से संचालन कर रही है।

शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9 पैरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर उन्हें नॉकरी के दौरान ही विदेश सेवा मैडल, लोक सेवा मैडल और सैन्य सेवा मैडल से भी नवाजा गया था। ऑपरेशन विजय के दौरान 25 जुलाई 1999 की शाम गिरीश पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए दुश्मन की गोली का शिकार हुए। ईटीवी से खास बातचीत में वीरांगना शांति देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले वो अपने पति और बच्चों के साथ एनएसजी मानेसर में रहती थी। युद्ध मे जाने से पूर्व पति परिवार को गाँव में छोड़ कर गए थे। जबकि युद्ध मे जाने की बात उन्होंने परिवार से छुपाई थी। शांति ने बताया कि उनके पति की आखिरी चिठ्ठी उनकी शहादत के बाद घर पहुँची थी।

Byte: शांति देवी, शहीद गिरीश की पत्नी




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