पिथौरागढ़: कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के जाबांज सैनिकों का अहम योगदान रहा है. जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न किए बगैर कारगिल हिल्स पर विजय पताका फहराया था. भारत के वीर सैनिकों के अदम्य साहस को देखकर आज भी दुश्मन देश की रूह कांप जाती है. इन्हीं में से एक पिथौरागढ़ जिले के उड़ई गांव के रहने शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामंत भी थे. जो दुश्मन की 9 गोलियां सीने पर खाकर वीरगति को प्राप्त हुए.
गौर हो कि हवलदार गिरीश सिंह सामंत की शहादत के बाद परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा. मगर परिस्थितियों से जूझते हुए शहीद की पत्नी शांति देवी ने परिवार को अपने पांव पर खड़ा कर दिया है. ऑपरेशन विजय में शहीद हवलदार गिरीश अपने पीछे पत्नी और दो छोटे बच्चों को छोड़कर गए थे. लेकिन शांति ने कठिन हालातों में भी हार नहीं मानी और दोनों बच्चों की बेहतरीन परवरिश की. शहीद की पुत्री मोनिका पंतनगर विश्वविद्यायल से बीटेक करने के बाद नौकरी कर रही हैं. जबकि, बेटा अमित देहरादून से बीटेक कर रहा है.
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वहीं, सरकारी मदद से शहीद परिवार ने पिथौरागढ़ मुख्यालय में मकान बना लिया है. शांति देवी शहीद के नाम पर मिली गैस एजेंसी का साल 2006 से कुशल संचालन कर रही है. शहीद हवलदार गिरीश सिंह सामन्त मात्र 19 साल की उम्र में भारतीय सेना की 9 पैरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे. सेना में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने पर उन्हें नौकरी के दौरान ही विदेश सेवा मेडल, लोक सेवा मेडल और सैन्य सेवा मेडल से भी नवाजा गया था.
ऑपरेशन विजय के दौरान 25 जुलाई 1999 की शाम गिरीश पाकिस्तानी घुसपैठियों से लोहा लेते हुए दुश्मन की गोली का शिकार हुए. ईटीवी से खास बातचीत में शहीद की शांति देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध से पहले वो अपने पति और बच्चों के साथ एनएसजी मानेसर में रहती थी. युद्ध में जाने से पूर्व पति परिवार को गांव में छोड़ कर गए थे. जबकि. उन्होंने कारगिल युद्ध में जाने की बात परिवार से छुपाई थी. शांति का कहना है कि उनके पति की आखिरी चिठ्ठी उनकी शहादत के बाद घर पहुंची थी.