ETV Bharat / state

अंतरराष्ट्रीय बाजार में 'हिमालयी वियाग्रा' की भारी मांग, पर्यावरण पर मंडरा रहा खतरा

कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है. जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है.  इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है. स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में 'हिमालयी वायाग्रा' की भारी मांग
author img

By

Published : Apr 27, 2019, 11:38 AM IST

Updated : Apr 27, 2019, 3:50 PM IST

पिथौरागढ़: हिमालयी वियाग्रा के नाम से जाने जानी वाली कीड़ा-जड़ी के दोहन की तैयारियां तेज हो गई हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी को यारसागंबू के नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस जड़ी को चुनने के लिए धारचूला और मुनस्यारी के हजारों लोग ऊंचाई वाले इलाकों का रुख करेंगे. तो वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय दखल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में 'हिमालयी वायाग्रा' की भारी मांग
बता दें कि इस साल हुई भारी बर्फबारी के चलते उच्च हिमालयी इलाकों में अधिकतर मार्ग बंद पड़े हुए है. जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने लोगों को बर्फ पिघलने के बाद ही इन इलाकों में जाने के निर्देश दिए हैं.

ये है इस जड़ी की खासियत

गौर हो कि 3500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली यारसागंबू स्टेमिना और ताकत बढ़ाने के काम आती है. इस जड़ी की सबसे ज्यादा डिमांड यौन शक्तिवर्धक दवाइयां बनाने के लिए होती है. वहीं, स्थानीय लोग इस डिमांड को पूरी करने के लिए इस कीड़ाजड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन करते हैं. जो कई लोगों के रोजगार का साधन भी है.
अंतराष्ट्रीय बाजार में इस कीड़ा-जड़ी की मुंह मांगी कीमत मिलती है. विश्व चैम्पियनशिप में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद ये कीड़ा-जड़ी पहली बार सुर्खियों में आई थी. चीन की एथलीटों को यारसागंबू का नियमित सेवन कराया जाता है. क्योंकि डोपिंग टेस्ट में ये स्टिरॉयड पकड़ में नहीं आता. पूर्व में इस कीड़ा-जड़ी की कीमत 4 से 5 लाख रुपए प्रति किलोग्राम थी. जो अब 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. हिमालयी इलाकों में पहले ये जड़ी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी, मगर पिछले कुछ सालों से यारसागंबू के अत्यधिक दोहन के कारण अब ये जड़ी काफी कम मात्रा में पाई जाती है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है यारसागंबू

सामान्य तौर पर कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है. जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है. इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है. स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है, क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी नुमा होता है. चीन और तिब्बत में इसे यारसागुंबा के नाम से जाना जाता है. हिमालय में करीब 11,000 फीट में ये पाया जाता है. मई से जून के बीच बर्फ पिघलने के दौरान इसके पनपने का चक्र शुरू होता है. धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग के बाद स्थानीय लोग इन इलाकों तक पहुंचते हैं, जहां करीब एक से दो महीने तक डेरा डालकर यारसागंबू का दोहन किया जाता है.

यौन शक्ति वर्धक दवाइयां बनाने में होता है उपयोग

भारत मे यारसागंबू का उपयोग फिलहाल ना के बराबर है. मगर चीन में इसे प्राकृतिक स्टिरॉयड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस फंगस में प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2, बी -12 और पेपटाइड्स जैसे पोषक तत्व होते है, जो तत्काल रूप से शरीर को ताकत देते है. चीनी-तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग फेफड़ों और किडनी के इलाज और जीवन रक्षक दवा के तौर पर होता है. साथ ही इसका इस्तेमाल गठिया, वात और अन्य रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है. यौन शक्ति बढ़ाने दवाइयों और टॉनिक बनाने के लिए चीन में इस जड़ी की भारी मांग है.

ठोस नीति बनाने की जरूरत

राज्य बनने के 18 साल बाद भी सरकार यारसागंबू के विदोहन की ठोस नीति नहीं बना पाई है. कुछ इलाकों में वन पंचायतों को यारसागंबू दोहन की अनुमति है तो कई इलाकों में नहीं है. तिब्बत की तकलाकोट मंडी, ल्हासा के साथ ही चीन के बीजिंग समेत तमाम शहरों में यारसागंबू की खुली बिक्री होती है.

भारत में सही कीमत ना मिलने के कारण इस कीड़ा-जड़ी की बड़े पैमाने में अंतराष्ट्रीय बाजारों में तस्करी होती है. नेपाल के रास्ते तस्कर इस जड़ी को चीन के बाजारों तक पहुंचाते है. जहां मुंह मांगे दामों पर इसकी खरीद-फरोख्त होती है. जिसके चलते इस जड़ी का बेहिसाब दोहन हो रहा है. वहीं, हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय दखल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

पिथौरागढ़: हिमालयी वियाग्रा के नाम से जाने जानी वाली कीड़ा-जड़ी के दोहन की तैयारियां तेज हो गई हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाने वाली दुर्लभ जड़ी को यारसागंबू के नाम से भी जाना जाता है. हर साल की तरह इस जड़ी को चुनने के लिए धारचूला और मुनस्यारी के हजारों लोग ऊंचाई वाले इलाकों का रुख करेंगे. तो वहीं, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय दखल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में 'हिमालयी वायाग्रा' की भारी मांग
बता दें कि इस साल हुई भारी बर्फबारी के चलते उच्च हिमालयी इलाकों में अधिकतर मार्ग बंद पड़े हुए है. जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने लोगों को बर्फ पिघलने के बाद ही इन इलाकों में जाने के निर्देश दिए हैं.

ये है इस जड़ी की खासियत

गौर हो कि 3500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली यारसागंबू स्टेमिना और ताकत बढ़ाने के काम आती है. इस जड़ी की सबसे ज्यादा डिमांड यौन शक्तिवर्धक दवाइयां बनाने के लिए होती है. वहीं, स्थानीय लोग इस डिमांड को पूरी करने के लिए इस कीड़ाजड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन करते हैं. जो कई लोगों के रोजगार का साधन भी है.
अंतराष्ट्रीय बाजार में इस कीड़ा-जड़ी की मुंह मांगी कीमत मिलती है. विश्व चैम्पियनशिप में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद ये कीड़ा-जड़ी पहली बार सुर्खियों में आई थी. चीन की एथलीटों को यारसागंबू का नियमित सेवन कराया जाता है. क्योंकि डोपिंग टेस्ट में ये स्टिरॉयड पकड़ में नहीं आता. पूर्व में इस कीड़ा-जड़ी की कीमत 4 से 5 लाख रुपए प्रति किलोग्राम थी. जो अब 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. हिमालयी इलाकों में पहले ये जड़ी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी, मगर पिछले कुछ सालों से यारसागंबू के अत्यधिक दोहन के कारण अब ये जड़ी काफी कम मात्रा में पाई जाती है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है यारसागंबू

सामान्य तौर पर कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है. जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है. इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है. स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है, क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी नुमा होता है. चीन और तिब्बत में इसे यारसागुंबा के नाम से जाना जाता है. हिमालय में करीब 11,000 फीट में ये पाया जाता है. मई से जून के बीच बर्फ पिघलने के दौरान इसके पनपने का चक्र शुरू होता है. धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग के बाद स्थानीय लोग इन इलाकों तक पहुंचते हैं, जहां करीब एक से दो महीने तक डेरा डालकर यारसागंबू का दोहन किया जाता है.

यौन शक्ति वर्धक दवाइयां बनाने में होता है उपयोग

भारत मे यारसागंबू का उपयोग फिलहाल ना के बराबर है. मगर चीन में इसे प्राकृतिक स्टिरॉयड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस फंगस में प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2, बी -12 और पेपटाइड्स जैसे पोषक तत्व होते है, जो तत्काल रूप से शरीर को ताकत देते है. चीनी-तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग फेफड़ों और किडनी के इलाज और जीवन रक्षक दवा के तौर पर होता है. साथ ही इसका इस्तेमाल गठिया, वात और अन्य रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है. यौन शक्ति बढ़ाने दवाइयों और टॉनिक बनाने के लिए चीन में इस जड़ी की भारी मांग है.

ठोस नीति बनाने की जरूरत

राज्य बनने के 18 साल बाद भी सरकार यारसागंबू के विदोहन की ठोस नीति नहीं बना पाई है. कुछ इलाकों में वन पंचायतों को यारसागंबू दोहन की अनुमति है तो कई इलाकों में नहीं है. तिब्बत की तकलाकोट मंडी, ल्हासा के साथ ही चीन के बीजिंग समेत तमाम शहरों में यारसागंबू की खुली बिक्री होती है.

भारत में सही कीमत ना मिलने के कारण इस कीड़ा-जड़ी की बड़े पैमाने में अंतराष्ट्रीय बाजारों में तस्करी होती है. नेपाल के रास्ते तस्कर इस जड़ी को चीन के बाजारों तक पहुंचाते है. जहां मुंह मांगे दामों पर इसकी खरीद-फरोख्त होती है. जिसके चलते इस जड़ी का बेहिसाब दोहन हो रहा है. वहीं, हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती मानवीय दखल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है.

Intro:नोट- सर इस खबर के विसुअल्स मेल किये है।

पिथौरागढ़: उच्च हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती कीड़ाजड़ी 'यारसागंबू' के दोहन की तैयारियां तेज हो गयी है। हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों के सीजन में धारचूला और मुनस्यारी के हज़ारों लोग ऊंचाई वाले इलाकों में इस दुर्लभ जड़ी को खोज में जाएंगे। इस साल हुई भारी बर्फबारी के चलते उच्च हिमालयी इलाकों में मार्ग बंद पड़े हुए है। जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने निर्देश दिए है कि बर्फ पिघलने के बाद ही लोग हिमालयी इलाकों की ओर जाएं।

3500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली यारसागंबू स्टेमिना और ताकत बढ़ाने के काम आती है। धारचूला और मुनस्यारी के ऊंचाई वाले इलाकों स्थानीय लोग इस जड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन और तस्करी करते है। अंतराष्ट्रीय बाजार में इस कीड़ाजड़ी की मुँह मांगी कीमत मिलती है। स्टुअटगार्ड विश्व चैम्पियनशिप में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन के बाद ये कीड़ाजड़ी पहली बार सुर्खियों में आई। चीन की एथलीटों को यारसागंबू का नियमित सेवन कराया जाता है क्योंकि डोपिंग टेस्ट में ये स्टिरॉयड पकड़ में नही आता। पूर्व में इस कीड़ाजड़ी की कीमत 4 से 5 लाख रुपये प्रति किलोग्राम थी। जो अब 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। हिमालयी इलाकों में पहले ये जड़ी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी मगर पिछले कुछ सालों से यारसागंबू के अतिदोहन के कारण अब ये जड़ी काफी कम मात्रा में पाई जाती है।

सामान्य तौर पर कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है। जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है। स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी है। चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा के नाम से जाना जाता है। हिमालय में 11,000 फ़ीट से अधिक ऊंचाई पर पेड़रहित इलाकों में ये पाया जाता है। मई से जून के बीच बर्फ पिघलने के दौरान इसके पनपने का चक्र शुरू होता है। धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग के बाद स्थानीय लोग इन इलाकों तक पहुंचते है। जहां करीब एक से दो महीने तक डेरा डालकर यारसागंबू का दोहन किया जाता है।

भारत मे यारसागंबू का उपयोग फिलहाल ना के बराबर है। मगर चीन में इसे प्राकृतिक स्टीरॉयड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस फंगस में प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2, बी -12 और पेपटाइड्स जैसे पोषक तत्व होते है। जो तत्काल रूप से शरीर को ताकत देते है। चीनी-तिब्बती परम्परागत चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग फेफड़ों और किडनी के इलाज में जीवन रक्षक दवा के तौर पर होता है। साथ ही इसका इस्तेमाल गठिया, वात और अन्य रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है। यौन उत्तेजना बढ़ाने वाले टॉनिक को तैयार करने के लिए चीन में इस जड़ी की भारी मांग है।

राज्य बनने के 18 साल बाद भी सरकार यारसागंबू के विदोहन की ठोस नीति नही बना पाई है। कुछ इलाकों में वन पंचायतों को यारसागंबू दोहन की अनुमति है तो कई इलाकों में नही है। तिब्बत की तकलाकोट मंडी, ल्हासा के साथ ही चीन के बीजिंग समेत तमाम शहरों में यारसागंबू की खुली बिक्री होती है। भारत मे सही कीमत ना मिलने के कारण इस कीड़ाजड़ी की बड़े पैमाने में अंतराष्ट्रीय बाजारों में तस्करी होती है। नेपाल के रास्ते तस्कर इस जड़ी को चीन के बाजारों तक पहुंचाते है। जहाँ मुँह मांगे दामों पर इसकी खरीद फरोख्त होती है। यारसागंबू की तस्करी के सिलसिले में कई स्थानीय लोग जेल भी जा चुके है। जबकि कई स्थानीय लोग इसे बेचकर करोड़पति भी बन चुके है।

धारचूला और मुनस्यारी के हिमालयी इलाकों में यारसागंबू के अन्धाधुन्ध दोहन के कारण अब ये काफी कम मात्रा में पाई जाती है। हर साल हजारों की तादात में स्थानीय लोग हिमालयी इलाकों में यारसागंबू के विदोहन के लिए जाते है। जिससे हिमालय की जैव विविधता और पारिस्थितिकी को भारी नुकसान होता है।

Byte: जगदीश देवली, स्थानीय
Byte: विजय कुमार जोगदंडे, जिलाधिकारी, पिथौरागढ़




Body:पिथौरागढ़: उच्च हिमालयी इलाकों में पाई जाने वाली बेशकीमती कीड़ाजड़ी 'यारसागंबू' के दोहन की तैयारियां तेज हो गयी है। हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों के सीजन में धारचूला और मुनस्यारी के हज़ारों लोग ऊंचाई वाले इलाकों में इस दुर्लभ जड़ी को खोज में जाएंगे। इस साल हुई भारी बर्फबारी के चलते उच्च हिमालयी इलाकों में मार्ग बंद पड़े हुए है। जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने निर्देश दिए है कि बर्फ पिघलने के बाद ही लोग हिमालयी इलाकों की ओर जाएं।

3500 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाने वाली यारसागंबू स्टेमिना और ताकत बढ़ाने के काम आती है। धारचूला और मुनस्यारी के ऊंचाई वाले इलाकों स्थानीय लोग इस जड़ी का बड़े पैमाने पर दोहन और तस्करी करते है। अंतराष्ट्रीय बाजार में इस कीड़ाजड़ी की मुँह मांगी कीमत मिलती है। स्टुअटगार्ड विश्व चैम्पियनशिप में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन के बाद ये कीड़ाजड़ी पहली बार सुर्खियों में आई। चीन की एथलीटों को यारसागंबू का नियमित सेवन कराया जाता है क्योंकि डोपिंग टेस्ट में ये स्टिरॉयड पकड़ में नही आता। पूर्व में इस कीड़ाजड़ी की कीमत 4 से 5 लाख रुपये प्रति किलोग्राम थी। जो अब 8 से 10 लाख रुपये प्रति किलोग्राम हो गयी है। हिमालयी इलाकों में पहले ये जड़ी प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी मगर पिछले कुछ सालों से यारसागंबू के अतिदोहन के कारण अब ये जड़ी काफी कम मात्रा में पाई जाती है।

सामान्य तौर पर कीड़ा जड़ी एक प्रकार का फफूंद है। जो एक खास कीड़े के कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम हैपीलस फैब्रिक्स है। स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते है क्योंकि ये आधा कीड़ा और आधा जड़ी है। चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा के नाम से जाना जाता है। हिमालय में 11,000 फ़ीट से अधिक ऊंचाई पर पेड़रहित इलाकों में ये पाया जाता है। मई से जून के बीच बर्फ पिघलने के दौरान इसके पनपने का चक्र शुरू होता है। धारचूला से करीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग के बाद स्थानीय लोग इन इलाकों तक पहुंचते है। जहां करीब एक से दो महीने तक डेरा डालकर यारसागंबू का दोहन किया जाता है।

भारत मे यारसागंबू का उपयोग फिलहाल ना के बराबर है। मगर चीन में इसे प्राकृतिक स्टीरॉयड के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस फंगस में प्रोटीन, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2, बी -12 और पेपटाइड्स जैसे पोषक तत्व होते है। जो तत्काल रूप से शरीर को ताकत देते है। चीनी-तिब्बती परम्परागत चिकित्सा पद्धति में इसका उपयोग फेफड़ों और किडनी के इलाज में जीवन रक्षक दवा के तौर पर होता है। साथ ही इसका इस्तेमाल गठिया, वात और अन्य रोगों के इलाज के लिए भी किया जाता है। यौन उत्तेजना बढ़ाने वाले टॉनिक को तैयार करने के लिए चीन में इस जड़ी की भारी मांग है।

राज्य बनने के 18 साल बाद भी सरकार यारसागंबू के विदोहन की ठोस नीति नही बना पाई है। कुछ इलाकों में वन पंचायतों को यारसागंबू दोहन की अनुमति है तो कई इलाकों में नही है। तिब्बत की तकलाकोट मंडी, ल्हासा के साथ ही चीन के बीजिंग समेत तमाम शहरों में यारसागंबू की खुली बिक्री होती है। भारत मे सही कीमत ना मिलने के कारण इस कीड़ाजड़ी की बड़े पैमाने में अंतराष्ट्रीय बाजारों में तस्करी होती है। नेपाल के रास्ते तस्कर इस जड़ी को चीन के बाजारों तक पहुंचाते है। जहाँ मुँह मांगे दामों पर इसकी खरीद फरोख्त होती है।

धारचूला और मुनस्यारी के हिमालयी इलाकों में यारसागंबू के अन्धाधुन्ध दोहन के कारण अब ये काफी कम मात्रा में पाई जाती है। हर साल हजारों की तादात में स्थानीय लोग हिमालयी इलाकों में जाते है। जिससे हिमालय की जैव विविधता और पारिस्थितिकी को भारी नुकसान होता है।

Byte: जगदीश देवली, स्थानीय
Byte: विजय कुमार जोगदंडे, जिलाधिकारी, पिथौरागढ़




Conclusion:
Last Updated : Apr 27, 2019, 3:50 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.