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उत्तराखंड में हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है घी संक्रांति, जानिए क्या है महत्व - berinag latest news

उत्तराखंड में घी संक्रांति बड़े धूम-धाम के साथ मनाई जा रही है. कृषि, पशुधन और पर्यावरण पर आधारित इस पर्व को लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है. लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जो इस दिन घी नहीं खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है.

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घी संक्रांति
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Published : Aug 17, 2022, 9:25 AM IST

Updated : Aug 17, 2022, 12:17 PM IST

बेरीनाग: उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप में कई ऐसे पर्वों को भी समेटे हुई है, जिनका यहां की संस्कृति में खास महत्व है. इन्हीं में से एक लोकपर्व (Uttarakhand folk festival) घी त्यार भी है. कुमाऊं मंडल में इस पर्व को घी त्यार और गढ़वाल मंडल में घी संक्रांति (Ghee Sankranti 2022) के नाम से जानते हैं. कृषि, पशुधन और पर्यावरण पर आधारित इस पर्व को लोग धूमधाम के साथ मनाते हैं.

घी संक्रांति का खास महत्व: घी त्यार (घी संक्रांति) देवभूमि उत्तराखंड में सभी लोक पर्वों की तरह प्रकृति एवं स्वास्थ्य को समर्पित पर्व है. पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना की जाती है. अच्छे स्वास्थ के लिए, घी एवं पारम्परिक पकवान हर घर में बनाए जाते हैं. उत्तराखंड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है. लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जो इस दिन घी नही खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है. इसलिए लोग इस पर्व के लिए घी की व्यवस्था पहले से ही करके रखते हैं.
पढ़ें-उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया गया फूलदेई, देहरी पूजन के लिए घर-घर पहुंचीं फुलारी

अतुलनीय संस्कृति और विरासत: उत्तराखंड राज्य पूरे विश्व में अपनी कला और लोक संस्कृति के नाम से जाना जाता है. यूं तो यहां हर पर्व अपने आप में खास होता है. लेकिन कुछ पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं. इसलिए उनका महत्व और बढ़ जाता है. प्रदेश में सुख, समृद्धि और हरियाली का प्रतीक माना जाने वाला घी त्यार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. उत्तराखंड में घी संक्रांति का विशेष महत्व है. इसे भाद्रपद की संक्रांति भी कहते हैं. इस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है. इसलिए इसे भद्रा संक्रांति भी कहते हैं.

परोसे जाते हैं पहाड़ी पकवान: घी त्यार (लोकपर्व) पर प्रत्येक घरों में पुए, पकौड़े और खीर बनाई जाती है. इन पकवानों को घी के साथ परोसा जाता है. यह त्योहार अच्छी फसल की कामना के लिए भी मनाया जाता है. घी त्यार मनाए जाने की एक वजह यह भी है कि गर्मी और बरसात के मौसम में खान-पान को लेकर परहेज किया जाता था. खान-पान के लंबे परहेज के बाद खुशी में पकवान बनाए जाते हैं.
पढ़ें-आपने देखा है कभी ऐसा पांडव नृत्य, यहां ग्रामीण पांडवों को खिला रहे पकवान!

क्यों खाया जाता है घी: उत्तराखंड में घी त्यार किसानों के लिए अत्यंत महत्व रखता है. आज के दिन प्रत्येक उत्तराखंडी 'घी' जरूर खाता है. यह भी कहा जाता है कि घी खाने से शरीर की कई व्याधियां भी दूर होती हैं. इससे स्मरण क्षमता बढ़ती है. नवजात बच्चों के सिर और तलुवों में भी घी लगाया जाता है. जिससे वे स्वस्थ्य और चिरायु होते हैं. बता दें कि पंचांग के अनुसार सूर्य एक राशि में संचरण करते हुए जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं. इस तरह बारह संक्रांतियां होती हैं. इसको भी शुभ दिन मानकर कई त्योहार मनाये जाते हैं जिसमें से एक पर्व घी त्यार भी है.

लोगों के लिए खास महत्व रखता है लोक पर्व: किसान अंचल में कृषक वर्ग, ऋतुद्रव प्रमुख पदार्थ और भुट्टा मक्खन आदि अपने भूमि देवता, भूमिया और ग्राम देवता को अर्पित करते हैं. घर के लोग इसके उपरांत ही इनका उपयोग करते हैं. आज के दिन प्रत्येक प्रदेशवासी घी में खाना जरूर बनाते हैं. माना जाता है कि, इस त्योहार में घी खाने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है. यह त्योहार व्यक्ति को आलस छोड़ने को प्रेरित करता है. घी त्यार के दिन दूब को घी से छू कर माथे पर लगाया जाता है. इस त्योहार में भोजन घी में ही बनता है. इस दिन का मुख्य भोजन बेड़ू, रोटी, उड़द की दाल को सिल में पीस कर भरते हैं. पिनालू की सब्जी और उसके पातों, पत्तों जिन्हें गाबा पत्यूड़े कहते हैं की सब्जी बनती है.

बेरीनाग: उत्तराखंड की संस्कृति और विरासत अपने आप में कई ऐसे पर्वों को भी समेटे हुई है, जिनका यहां की संस्कृति में खास महत्व है. इन्हीं में से एक लोकपर्व (Uttarakhand folk festival) घी त्यार भी है. कुमाऊं मंडल में इस पर्व को घी त्यार और गढ़वाल मंडल में घी संक्रांति (Ghee Sankranti 2022) के नाम से जानते हैं. कृषि, पशुधन और पर्यावरण पर आधारित इस पर्व को लोग धूमधाम के साथ मनाते हैं.

घी संक्रांति का खास महत्व: घी त्यार (घी संक्रांति) देवभूमि उत्तराखंड में सभी लोक पर्वों की तरह प्रकृति एवं स्वास्थ्य को समर्पित पर्व है. पूजा पाठ करके इस दिन अच्छी फसलों की कामना की जाती है. अच्छे स्वास्थ के लिए, घी एवं पारम्परिक पकवान हर घर में बनाए जाते हैं. उत्तराखंड की लोक मान्यता के अनुसार इस दिन घी खाना जरूरी होता है. लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि जो इस दिन घी नही खाता है, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है. इसलिए लोग इस पर्व के लिए घी की व्यवस्था पहले से ही करके रखते हैं.
पढ़ें-उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया गया फूलदेई, देहरी पूजन के लिए घर-घर पहुंचीं फुलारी

अतुलनीय संस्कृति और विरासत: उत्तराखंड राज्य पूरे विश्व में अपनी कला और लोक संस्कृति के नाम से जाना जाता है. यूं तो यहां हर पर्व अपने आप में खास होता है. लेकिन कुछ पर्व प्रकृति से जुड़े हुए हैं. इसलिए उनका महत्व और बढ़ जाता है. प्रदेश में सुख, समृद्धि और हरियाली का प्रतीक माना जाने वाला घी त्यार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. उत्तराखंड में घी संक्रांति का विशेष महत्व है. इसे भाद्रपद की संक्रांति भी कहते हैं. इस दिन सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करता है. इसलिए इसे भद्रा संक्रांति भी कहते हैं.

परोसे जाते हैं पहाड़ी पकवान: घी त्यार (लोकपर्व) पर प्रत्येक घरों में पुए, पकौड़े और खीर बनाई जाती है. इन पकवानों को घी के साथ परोसा जाता है. यह त्योहार अच्छी फसल की कामना के लिए भी मनाया जाता है. घी त्यार मनाए जाने की एक वजह यह भी है कि गर्मी और बरसात के मौसम में खान-पान को लेकर परहेज किया जाता था. खान-पान के लंबे परहेज के बाद खुशी में पकवान बनाए जाते हैं.
पढ़ें-आपने देखा है कभी ऐसा पांडव नृत्य, यहां ग्रामीण पांडवों को खिला रहे पकवान!

क्यों खाया जाता है घी: उत्तराखंड में घी त्यार किसानों के लिए अत्यंत महत्व रखता है. आज के दिन प्रत्येक उत्तराखंडी 'घी' जरूर खाता है. यह भी कहा जाता है कि घी खाने से शरीर की कई व्याधियां भी दूर होती हैं. इससे स्मरण क्षमता बढ़ती है. नवजात बच्चों के सिर और तलुवों में भी घी लगाया जाता है. जिससे वे स्वस्थ्य और चिरायु होते हैं. बता दें कि पंचांग के अनुसार सूर्य एक राशि में संचरण करते हुए जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं. इस तरह बारह संक्रांतियां होती हैं. इसको भी शुभ दिन मानकर कई त्योहार मनाये जाते हैं जिसमें से एक पर्व घी त्यार भी है.

लोगों के लिए खास महत्व रखता है लोक पर्व: किसान अंचल में कृषक वर्ग, ऋतुद्रव प्रमुख पदार्थ और भुट्टा मक्खन आदि अपने भूमि देवता, भूमिया और ग्राम देवता को अर्पित करते हैं. घर के लोग इसके उपरांत ही इनका उपयोग करते हैं. आज के दिन प्रत्येक प्रदेशवासी घी में खाना जरूर बनाते हैं. माना जाता है कि, इस त्योहार में घी खाने से कई बीमारियों से बचा जा सकता है. यह त्योहार व्यक्ति को आलस छोड़ने को प्रेरित करता है. घी त्यार के दिन दूब को घी से छू कर माथे पर लगाया जाता है. इस त्योहार में भोजन घी में ही बनता है. इस दिन का मुख्य भोजन बेड़ू, रोटी, उड़द की दाल को सिल में पीस कर भरते हैं. पिनालू की सब्जी और उसके पातों, पत्तों जिन्हें गाबा पत्यूड़े कहते हैं की सब्जी बनती है.

Last Updated : Aug 17, 2022, 12:17 PM IST
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