पिथौरागढ़: एक तरफ पहाड़ के गांव पलायन से खाली होते जा रहे जा रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर कई लोगों ऐसे भी हैं जो गांवों में रहकर ही अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़कर कुछ अलग करने में जुटे हैं. ऐसे ही एक शख्स हैं पिथौरागढ़ जिले के सिनतोली गांव के रहने वाले मनोज सिंह खड़ायत. जिन्हें यहां के लोग 'Apple Man' के नाम से भी जानते हैं.
मनोज सिंह खड़ायत एक कम्प्यूटर इंजीनियर हैं. मनोज ने कम्प्यूटर इंजीनियरिंग का काम छोड़कर स्मार्ट एग्रीकल्चर कर रहे हैं. उन्हें इसका आइडिया हिमाचल में अपने रिश्तेदारों के यहां सेब से लकदक पेड़ों को देखकर आया. तब उन्होंने फैसला किया कि वो अपने गांव में सेब का उत्पादन करेंगे.
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2017 में मनोज ने गांव में ट्रायल बेस पर 25 पेड़ों का एक सेब का बागीचा लगाया. जिसका अच्छा रिजल्ट मिलने के बाद मनोज ने इसे साल-दर-साल अपने बागीचे का विस्तार करना शुरू किया. अब आलम ये है कि मनोज ने विदेशी प्रजाति के सुपर चीफ, रेड कैफ, सुपर डिलेसियस और कैमस्पर की बड़े पैमाने पर खेती की है. सेब की ये प्रजातियां 5 से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर होती हैं. जो कम चिलिंग आवर्स के बावजूद एक-दो साल में ही फल देना शुरू कर देती हैं. मनोज जिले के पहले किसान हैं जिन्होंने सेब की इन प्रजातियों को लगाया है और अपने प्रयोग में सफल हुए हैं.
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मनोज फिलहाल सेब के क्वालिटी इम्प्रूवमेंट पर ध्यान दे रहे हैं. मनोज का ड्रीम प्रोजेक्ट है कि वो ए-क्वालिटी का सेब तैयार कर बाहरी जिलों और राज्यों में इसकी बिक्री करें. इसके लिए मनोज टीम वर्क के जरिये बड़े पैमाने पर सेब के उत्पादन की योजना बना रहे हैं. सेब के उत्पादन को लेकर मनोज इस कदर जुनूनी हैं कि बिना किसी सरकारी प्रोत्साहन के विषम आर्थिक परिस्थितियों को मात देकर वे इस काम को अंजाम देने में जुटे हैं. मनोज का कहना है कि 2 साल के भीतर सेब के पेड़ों में से ए-क्वालिटी का फल आना शुरू हो जाएगा. जिसके बाद उन्हें सेब के बढ़िया दाम मिल सकेंगे. साथ ही उन्होंने कहा कि अगर सरकार सेब के पौधों में सब्सिडी दे तो वे और अधिक पैमाने पर सेब का उत्पादन कर सकते हैं. लेकिन अगर उन्हें कोई मदद नहीं मिलती है तो वो स्थानीय लोगों की मदद से इस काम को अंजाम देंगे.
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'Apple Man' के नाम से विख्यात मनोज की कड़ी मेहनत और लगन का नतीजा है कि आज उनके पास सेब का एक पूरा बगीचा है. जहां मिठास और गुणवत्ता से पूर्ण सेब का उत्पादन हो रहा है. सेब के अलावा मनोज सीजनल सब्जियों का भी उत्पादन कर रहे हैं. फलों और सब्जियों को बाजार में बेचकर मनोज अपने परिवार के लिए साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ कर लेते हैं.
कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के जानकार रहे मनोज ने गांव से पलायन करने के बजाय स्वरोजगार को बढ़ावा देकर ये साबित किया है कि गांव में रहकर भी काफी कुछ किया जा सकता है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो मनोज जैसे प्रगतिशील किसानों को प्रोत्साहन देने के लिए आगे आये ताकि ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार को बढ़ावा मिलने के साथ ही पलायन की रफ्तार को भी थामा जा सके.