श्रीनगर: नवंबर महीने में भी अलकनंदा नदी में गाद (silt in alaknanda river) का बहना जलीय जंतुओं के लिए संकट बना हुआ है. मानसून के दौरान नदी में मिट्टी, सिल्ट का बहना आम बात है, लेकिन नवंबर माह में इस तरह नदी के स्वरूप के बदल जाने से वैज्ञानिकों ने भी चिंता जताई है. वहीं, स्थानीय भी नवंबर माह में नदी में गाद को देखकर हैरत में है.
अलकनंदा नदी में इन दिनों भी गाद बह रही है, जिससे अलकनंदा नदी बिल्कुल मटमैली नजर आ रही है. हालांकि, मानसून में नदियों में गाद, मिट्टी का बहना और नदी का मटमैला होना आम बात है, लेकिन नवंबर महीने में भी अलकनंदा नदी में इस तरह गाद बहने पर वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है.
गढ़वाल विश्वविद्यालय (Garhwal University) के हिमालयन एक्वेटिक विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो जसपाल राणा ने कहा नदी में रहने वाले जीव-जंतुओं का प्रजनन और माइग्रेसन को लेकर एक निर्धारित समय रहता है. ऐसे में पानी के साफ न रहने, नदी में मिट्टी, सिल्ट की मात्रा बढ़ने से जहं एक जलीय जीव जंतुओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वहीं कई ऐसे जीव जंतु हैं, जो विलुप्ती की कगार पर पहुंच रहे हैं. क्योंकि उन्हें प्रजनन के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं मिल पा रहा है. साथ ही गाद आने से नदी के प्रवाह पर भी प्रभाव पड़ता है. पानी की गुणवत्ता में भी कमी देखी जा रही है.
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समाजसेवी भोपाल सिंह चौधरी ने कहा कि गंगा नदी को जीवित प्राणी का दर्जा सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, लेकिन इसके बाद भी नदी में विकास के नाम पर मलबा फेंका जा रहा है. जिसका परिणाम है कि नवंबर माह में भी इतनी सिल्ट नदी में दिख रही है. उन्होंने कहा गंगा पर ठोस कानून बनाये जाने की जरूरत है.