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'परदेस' में नहीं लगा प्रोफेसर दंपति का दिल, बड़ौदा से किया रिवर्स पलायन, अब मिट्टी से उगा रहे 'सोना'

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jan 13, 2024, 4:19 PM IST

Updated : Jan 14, 2024, 3:16 PM IST

Reverse Migration in Tehri उत्तराखंड में युवाओं के कदम लगातार रोजगार की तलाश शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं, जिससे पहाड़ खाली होते जा रहे हैं, लेकिन कीर्तिनगर में प्रोफेसर दंपति ने ऐसे ही युवाओं को बड़ी सीख देने का काम किया है. जो पलायन कर रहे हैं. दरअसल, प्रोफेसर दंपति रिवर्स पलायन कर अपने गांव पहुंचे हैं. जो अब शहरों की आरामदायक जिंदगी को पीछे छोड़ गांव में खेती समेत अन्य कामों में हाथ आजमा रहे हैं.

Professor Dinesh Baloni and Rita Baloni
रिवर्स पलायन की मिसाल बने प्रोफेसर दिनेश बलोनी
रिवर्स पलायन की मिसाल बने प्रोफेसर दिनेश बलोनी

श्रीनगर: उत्तराखंड से एक तरफ पलायन की वजह से गांव खाली हो रहे हैं तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो रिवर्स पलायन कर रहे हैं. ऐसे ही एक दंपति दिनेश बलोनी और नीता जोशी हैं, जो अपने मूल गांव लौट आए हैं. वे शहर छोड़ अब गांव में खेती बाड़ी में हाथ आजमा रहे हैं. साथ ही प्रदेश के युवाओं को गांव में ही रहकर गांवों को संवारने की प्रेरणा दे रहे हैं.

दरअसल, टिहरी जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक के चचकिंडा गांव के प्रो. दिनेश बलोनी ने साल 1978 में बड़ौदा में अध्यापन कार्य शुरू किया था. वे साल 2018 में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय बड़ौदा से सेवानिवृत्त हुए. जबकि, उनकी पत्नी प्रो. नीता जोशी बलोनी ने साल 1987 से अपनी सेवा शुरू की और 2020 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हो गईं. जब उन्होंने अपनी सेवाएं समाप्त की तो शहर छोड़ गांव की ओर चल पड़े.

professor couple
प्रोफेसर दिनेश बलोनी और नीता बलोनी

मध्यम परिवार में जन्मे बलोनी की प्राथमिक पढ़ाई लिखाई गुनिखाल प्राथमिक विद्यालय में हुई. उसके बाद प्रो दिनेश अपने पिता के साथ दिल्ली चले गए. जहां उनकी 9 वीं तक पढ़ाई हुई. उसके बाद बड़ौदा में ही उन्होंने हायर एजुकेशन की पढ़ाई की. इतना ही नहीं जिस कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की, उन्हें उसी कॉलेज में पढ़ाने का मौका मिला. उनकी धर्मपत्नी प्रो नीता मूल रूप से रुद्रप्रयाग के भूयता गांव की रहने वाली हैं.
ये भी पढ़ेंः ग्रेजुएट दो युवाओं ने गांव लौट कर बदल दी किस्मत, 10 हेक्टेयर बंजर भूमि पर उगा दिया 'सोना'

उनके पिता सरकारी सेवा में थे तो उनकी भी पढ़ाई देश के विभिन्न शहरों में हुई. इसके साथ ही नीता बलोनी ने भी गुजरात के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय में ही सहकारिता विभाग में अध्यापन का कार्य किया. विभाग की वे हेड भी रहीं, लेकिन अब दोनों दंपति गुजरात के बड़ौदा शहर को छोड़कर अपने पैतृक गांव चचकिंडा वापस आ गए. जहां वे पिछले दो साल से रह रहे हैं.

बड़ौदा के फार्म हाउस छोड़, अब गांव में बना रहे आश्रम: इस प्रोफेसर दंपति ने अपना बड़ौदा स्थित फार्म हाउस को भी छोड़ा और अपने सपनों का घर गांव में ही बनाया. यहां दोनों दंपति भविष्य में बुजुर्ग लोगों के लिए आश्रम की स्थापना कर समाज की सेवा भी करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने गांव से 3 किलोमीटर दूर ऊंची चोटी पर आश्रम का भी निर्माण कर दिया है. जहां ये दंपति गाय पालन के साथ साथ आर्गेनिक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः रिवर्स पलायन के दावे हुए फेल, इस गांव से 30 से ज्यादा परिवार कर गए पलायन

मिट्टी से सोना उगाने की कोशिश में जुटा दंपति: प्रोफेसर दिनेश बलोनी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि उनके गांव की मिट्टी उतनी उर्वरता भरी नहीं है. पूरा इलाका रुखा है. ऐसे में उनका प्रयास है कि ऐसी खेती की जाए, जो इस मिट्टी पर उग पाए. यहां पानी की काफी कमी है और सिंचाई की सुविधा नहीं है. लिहाजा, अब दालों पर हाथ आजमा रहे हैं. उनका प्रयास है कि मिट्टी को खेती के योग्य बनाया जाए और ऑर्गेनिक खेती की जाए.

शहर की दौड़ लगा रहे युवाओं को बड़ी सीख: बलोनी दंपति की दो बेटियां विदेश में रहती हैं. जबकि, उनका बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में हाई रैंक के पद पर नौकरी करता है. सभी सुख सुविधाओं के बाद भी बलोनी दंपति अपने गांव में खुशी से अपनी जिंदगी जी रहे हैं. उनका कहना है कि गांव की शुद्ध आबोहवा शहरों की प्रदूषित वातावरण से लाख गुना अच्छी है. वहीं, बलोनी दंपति के गांव में वापस आने पर ग्रामीण काफी खुश हैं. ग्रामीणों का कहना है कि बलोनी दंपति ने रिवर्स पलायन किया है. साथ ही शहर की दौड़ लगा रहे युवाओं को बड़ी सीख दी है.

रिवर्स पलायन की मिसाल बने प्रोफेसर दिनेश बलोनी

श्रीनगर: उत्तराखंड से एक तरफ पलायन की वजह से गांव खाली हो रहे हैं तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो रिवर्स पलायन कर रहे हैं. ऐसे ही एक दंपति दिनेश बलोनी और नीता जोशी हैं, जो अपने मूल गांव लौट आए हैं. वे शहर छोड़ अब गांव में खेती बाड़ी में हाथ आजमा रहे हैं. साथ ही प्रदेश के युवाओं को गांव में ही रहकर गांवों को संवारने की प्रेरणा दे रहे हैं.

दरअसल, टिहरी जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक के चचकिंडा गांव के प्रो. दिनेश बलोनी ने साल 1978 में बड़ौदा में अध्यापन कार्य शुरू किया था. वे साल 2018 में महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय बड़ौदा से सेवानिवृत्त हुए. जबकि, उनकी पत्नी प्रो. नीता जोशी बलोनी ने साल 1987 से अपनी सेवा शुरू की और 2020 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हो गईं. जब उन्होंने अपनी सेवाएं समाप्त की तो शहर छोड़ गांव की ओर चल पड़े.

professor couple
प्रोफेसर दिनेश बलोनी और नीता बलोनी

मध्यम परिवार में जन्मे बलोनी की प्राथमिक पढ़ाई लिखाई गुनिखाल प्राथमिक विद्यालय में हुई. उसके बाद प्रो दिनेश अपने पिता के साथ दिल्ली चले गए. जहां उनकी 9 वीं तक पढ़ाई हुई. उसके बाद बड़ौदा में ही उन्होंने हायर एजुकेशन की पढ़ाई की. इतना ही नहीं जिस कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की, उन्हें उसी कॉलेज में पढ़ाने का मौका मिला. उनकी धर्मपत्नी प्रो नीता मूल रूप से रुद्रप्रयाग के भूयता गांव की रहने वाली हैं.
ये भी पढ़ेंः ग्रेजुएट दो युवाओं ने गांव लौट कर बदल दी किस्मत, 10 हेक्टेयर बंजर भूमि पर उगा दिया 'सोना'

उनके पिता सरकारी सेवा में थे तो उनकी भी पढ़ाई देश के विभिन्न शहरों में हुई. इसके साथ ही नीता बलोनी ने भी गुजरात के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय में ही सहकारिता विभाग में अध्यापन का कार्य किया. विभाग की वे हेड भी रहीं, लेकिन अब दोनों दंपति गुजरात के बड़ौदा शहर को छोड़कर अपने पैतृक गांव चचकिंडा वापस आ गए. जहां वे पिछले दो साल से रह रहे हैं.

बड़ौदा के फार्म हाउस छोड़, अब गांव में बना रहे आश्रम: इस प्रोफेसर दंपति ने अपना बड़ौदा स्थित फार्म हाउस को भी छोड़ा और अपने सपनों का घर गांव में ही बनाया. यहां दोनों दंपति भविष्य में बुजुर्ग लोगों के लिए आश्रम की स्थापना कर समाज की सेवा भी करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने गांव से 3 किलोमीटर दूर ऊंची चोटी पर आश्रम का भी निर्माण कर दिया है. जहां ये दंपति गाय पालन के साथ साथ आर्गेनिक खेती को भी बढ़ावा दे रहे हैं.
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मिट्टी से सोना उगाने की कोशिश में जुटा दंपति: प्रोफेसर दिनेश बलोनी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि उनके गांव की मिट्टी उतनी उर्वरता भरी नहीं है. पूरा इलाका रुखा है. ऐसे में उनका प्रयास है कि ऐसी खेती की जाए, जो इस मिट्टी पर उग पाए. यहां पानी की काफी कमी है और सिंचाई की सुविधा नहीं है. लिहाजा, अब दालों पर हाथ आजमा रहे हैं. उनका प्रयास है कि मिट्टी को खेती के योग्य बनाया जाए और ऑर्गेनिक खेती की जाए.

शहर की दौड़ लगा रहे युवाओं को बड़ी सीख: बलोनी दंपति की दो बेटियां विदेश में रहती हैं. जबकि, उनका बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में हाई रैंक के पद पर नौकरी करता है. सभी सुख सुविधाओं के बाद भी बलोनी दंपति अपने गांव में खुशी से अपनी जिंदगी जी रहे हैं. उनका कहना है कि गांव की शुद्ध आबोहवा शहरों की प्रदूषित वातावरण से लाख गुना अच्छी है. वहीं, बलोनी दंपति के गांव में वापस आने पर ग्रामीण काफी खुश हैं. ग्रामीणों का कहना है कि बलोनी दंपति ने रिवर्स पलायन किया है. साथ ही शहर की दौड़ लगा रहे युवाओं को बड़ी सीख दी है.

Last Updated : Jan 14, 2024, 3:16 PM IST
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