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दिव्यांगों के जज्बे को लोगों ने किया सलाम, बोले-हम किसी से कम नहीं - nanital news

सरोवर नगरी में आयोजित मानसून मैराथन में दृष्टिबाधित (दिव्यांग) छात्र-छात्राओं ने भी उत्साह से हिस्सा लिया.

मानसून मैराथन
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Published : Aug 26, 2019, 10:28 AM IST

नैनीतालः अगर मन में कुछ कर गुजरने का हौसला हो, तो बड़ी से बड़ी बाधाएं पार हो जाती हैं. ऐसा ही कुछ सपना हल्द्वानी के दृष्टिबाधित (दिव्यांग) छात्र-छात्राओं ने देखा है. नैनीताल में दृष्टिहीन छात्र छात्राओं ने मैराथन में प्रतिभाग कर यह जता दिया कि वे भी किसी से कम नहीं और वे भी सामान्य बच्चों जैसे हैं. वे सामान्य बच्चों की तरह हर कार्य कर सकते हैं. जिनके बुलंद हौसलों को देख हर कोई हैरान रह गया.

मानसून मैराथन में नेत्रहीन छात्रों ने भी हिस्सा लिया.

नैनीताल में हल्द्वानी से आए 20 दृष्टिबाधित (दिव्यांग) छात्र- छात्राओं ने ओपन मैराथन में प्रतिभाग कर जता दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं और समाज में सामान्य बच्चों की तरह सभी काम कर सकते हैं और कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते हैं.

नैनीताल दृष्टिबाधित छात्राओं का कहना है कि भले ही कुदरत ने उन्हें आम बच्चों की तरह नहीं बनाया लेकिन वह आम बच्चों से कहीं ज्यादा बढ़कर हैं और उनसे ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं

यह भी पढ़ेंः पानी बहने के विवाद में युवक पर गोली चलाई, आरोपी फरार, पुलिस जांच में जुटी

बता दें कि नैनीताल में मानसून मैराथन में दृष्टिबाधित छात्रों ने प्रतिभाग करके यह तो साबित कर दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं. वहीं इस दौरान छात्रों का कहना है कि उनको टीचर, डॉक्टर समेत इंजीनियर बनना हैं. उन्होंने आगे कहा कि वे केवल शारीरिक रूप से अक्षम है न कि मानसिक रूप से इसे वे साबित करना चाहते हैं.

इस दौरान छात्राओं का कहना है कि वह समाज में अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं और दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती. जिसके लिए वे दिन और रात मेहनत कर रहीं हैं. साथ ही वे अपने पैरों में खड़ा होकर साबित करना चाहती हैं कि वह किसी से कम नहीं हैं.

नैनीतालः अगर मन में कुछ कर गुजरने का हौसला हो, तो बड़ी से बड़ी बाधाएं पार हो जाती हैं. ऐसा ही कुछ सपना हल्द्वानी के दृष्टिबाधित (दिव्यांग) छात्र-छात्राओं ने देखा है. नैनीताल में दृष्टिहीन छात्र छात्राओं ने मैराथन में प्रतिभाग कर यह जता दिया कि वे भी किसी से कम नहीं और वे भी सामान्य बच्चों जैसे हैं. वे सामान्य बच्चों की तरह हर कार्य कर सकते हैं. जिनके बुलंद हौसलों को देख हर कोई हैरान रह गया.

मानसून मैराथन में नेत्रहीन छात्रों ने भी हिस्सा लिया.

नैनीताल में हल्द्वानी से आए 20 दृष्टिबाधित (दिव्यांग) छात्र- छात्राओं ने ओपन मैराथन में प्रतिभाग कर जता दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं और समाज में सामान्य बच्चों की तरह सभी काम कर सकते हैं और कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते हैं.

नैनीताल दृष्टिबाधित छात्राओं का कहना है कि भले ही कुदरत ने उन्हें आम बच्चों की तरह नहीं बनाया लेकिन वह आम बच्चों से कहीं ज्यादा बढ़कर हैं और उनसे ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं

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बता दें कि नैनीताल में मानसून मैराथन में दृष्टिबाधित छात्रों ने प्रतिभाग करके यह तो साबित कर दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं. वहीं इस दौरान छात्रों का कहना है कि उनको टीचर, डॉक्टर समेत इंजीनियर बनना हैं. उन्होंने आगे कहा कि वे केवल शारीरिक रूप से अक्षम है न कि मानसिक रूप से इसे वे साबित करना चाहते हैं.

इस दौरान छात्राओं का कहना है कि वह समाज में अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं और दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती. जिसके लिए वे दिन और रात मेहनत कर रहीं हैं. साथ ही वे अपने पैरों में खड़ा होकर साबित करना चाहती हैं कि वह किसी से कम नहीं हैं.

Intro:Summry
मन में अगर कुछ कर गुजरने की चाह हो तो वह जरूर पूरी होती है ऐसा ही कुछ सपना देखा है हल्द्वानी के दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं ने।

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नैनीताल में आज दृष्टिहीन छात्र छात्राओं ने मैराथन में प्रतिभाग का यह जता दिया कि वो भी किसी से कम नहीं और वो भी सामान्य बच्चों जैसे हैं और वो सामन्य बच्चो की तरह खेल सकते हैं गा सकते हैं और सभी काम कर सकते हैं।


Body:नैनीताल में आज हल्द्वानी से आए 20 दृष्टिबाधित छात्रों ने ओपन मैराथन में में प्रतिभाग कर जता दिया कि वह किसी से कम नहीं है और समाज में सामान्य बच्चों की तरह सभी काम कर सकते हैं और कंधे से कंधा मिलाकर चल सकते हैं,
नैनीताल दृष्टिबाधित छात्राओं का कहना है कि भले ही कुदरत ने हुए हैं आम बच्चों की तरह नहीं बनाया लेकिन वह आम बच्चों से कहीं ज्यादा बढ़कर हैं और उनसे ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं

बाईट- कविता


Conclusion:आपको बता दें कि आज नैनीताल में मानसून मैराथन में दृष्टिबाधित छात्रों ने प्रतिभाग करके यह तो साबित कर दिया कि छात्र किसी से कम नहीं और वह सब काम कर सकते हैं जो एक सामान्य छात्र।
वहीं इस दौरान छात्रों का कहना है कि उनको टीचर, डॉक्टर समेत इंजीनियर बनना है ताकि उस साबित कर सकें कि वह केवल शारीरिक रूप से अक्षम है ना कि मानसिक रूप से।
इस दौरान छात्राओं का कहना है कि वह समाज में अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं और दूसरों पर निर्भर नहीं रहना चाहती जिसके लिए वह दिन रात मेहनत कर रही हैं, और वह अपने पैरों में खड़ा होकर साबित करना चाहती हैं कि वह किसी से कम नहीं।

बाईट- पूजा
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