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डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा सुशीला तिवारी अस्पताल, कैसे होगा मरीजों का इलाज?

Shortage of Doctors in Sushila Tiwari Hospital हल्द्वानी में सुशीला तिवारी अस्पताल और राजकीय मेडिकल कॉलेज में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है. जिससे दूर-दराज से आने वाले लोग निजी हॉस्पिलों का रुख करने को मजबूर हैं. निजी हॉस्पिटल में इलाज के लिए लोगों को काफी धन व्यय करना पड़ता है.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Oct 15, 2023, 11:15 AM IST

सुशीला तिवारी अस्पताल में डॉक्टरों की भारी कमी

हल्द्वानी: सुशीला तिवारी अस्पताल और राजकीय मेडिकल कॉलेज इन दिनों डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. कई विभागों में डॉक्टरों की भारी कमी के चलते लोगों को निजी अस्पताल में जाना पड़ रहा है. जबकि पर्वतीय जिलों से कई लोग सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं. मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 40 फीसदी पद खाली हैं. जिसका खामियाजा दूर-दराज से आने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

गौर हो कि सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में ओपीडी से लेकर उपचार तक के लिए पहाड़ों से आने वाले मरीजों को डॉक्टर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इस बात को मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य भी मान रहे हैं कि लगभग 30 से 40% डॉक्टरों की कमी रहती है. लेकिन इस बार 36 डॉक्टर नए आए हैं और कई अन्य विभागों में भी डॉक्टरों की तैनाती के लिए समय-समय पर इंटरव्यू लिए जाते हैं. पहाड़ हो या मैदानी क्षेत्र के लोगों को सुशीला तिवारी अस्पताल से काफी उम्मीदें होती हैं, लेकिन मरीज तो अस्पताल में आते हैं.
पढ़ें-बेहाल बड़कोट सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, विशेषज्ञ डॉक्टरों और स्टाफ की कमी से ICU बना शोपीस

लेकिन डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों की उम्मीद पर पानी फिर जाता है और उन्हें निजी हॉस्पिटल में महंगा इलाज कराना पड़ता है.गौरतलब है कि सुशीला तिवारी अस्पताल में पूरे कुमाऊं मंडल से मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं. हॉस्पिटल में रोजाना दो हजार से तीन हजार तक ओपीडी भी होती है. जबकि 30 से 40 ऑपरेशन होते हैं. ऐसे में हॉस्पिटल में डॉक्टरों की कमी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है. जो सरकार के दावों की पोल खोल रही है.

सुशीला तिवारी अस्पताल में डॉक्टरों की भारी कमी

हल्द्वानी: सुशीला तिवारी अस्पताल और राजकीय मेडिकल कॉलेज इन दिनों डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. कई विभागों में डॉक्टरों की भारी कमी के चलते लोगों को निजी अस्पताल में जाना पड़ रहा है. जबकि पर्वतीय जिलों से कई लोग सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं. मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 40 फीसदी पद खाली हैं. जिसका खामियाजा दूर-दराज से आने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

गौर हो कि सुशीला तिवारी हॉस्पिटल में ओपीडी से लेकर उपचार तक के लिए पहाड़ों से आने वाले मरीजों को डॉक्टर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं. इस बात को मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य भी मान रहे हैं कि लगभग 30 से 40% डॉक्टरों की कमी रहती है. लेकिन इस बार 36 डॉक्टर नए आए हैं और कई अन्य विभागों में भी डॉक्टरों की तैनाती के लिए समय-समय पर इंटरव्यू लिए जाते हैं. पहाड़ हो या मैदानी क्षेत्र के लोगों को सुशीला तिवारी अस्पताल से काफी उम्मीदें होती हैं, लेकिन मरीज तो अस्पताल में आते हैं.
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लेकिन डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों की उम्मीद पर पानी फिर जाता है और उन्हें निजी हॉस्पिटल में महंगा इलाज कराना पड़ता है.गौरतलब है कि सुशीला तिवारी अस्पताल में पूरे कुमाऊं मंडल से मरीज इलाज कराने पहुंचते हैं. हॉस्पिटल में रोजाना दो हजार से तीन हजार तक ओपीडी भी होती है. जबकि 30 से 40 ऑपरेशन होते हैं. ऐसे में हॉस्पिटल में डॉक्टरों की कमी का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है. जो सरकार के दावों की पोल खोल रही है.

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