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ब्लैक फंगस: केंद्र पर HC की तल्ख टिप्पणी, 2 करोड़ की आबादी पर 700 इंजेक्शन मजाक जैसा - केंद्र को HC की तल्ख टिप्पणी

ब्लैक फंगस (black fungus cases in uttarakhand) के मामलों पर नैनीताल हाईकोर्ट (nainital high court) ने केंद्र और राज्य सरकार को अपना जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं. स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने भी कोरोना के जो आंकड़े पेश किए थे, उन पर कोर्ट ने नाराजगी जताई है.

नैनीताल हाई कोर्ट
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Published : Jun 9, 2021, 6:06 PM IST

Updated : Jun 9, 2021, 7:44 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे ब्लैक फंगस (black fungus cases in uttarakhand) के मामलों को नैनीताल हाईकोर्ट (nainital high court) ने गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.

वहीं, चारधाम यात्रा (char dham yatra) को लेकर सचिव पर्यटन ने कोर्ट में जो जवाब पेश किया है, उस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने अगली सुनवाई में सचिव पर्यटन को पेश होने के आदेश दिए हैं. ब्लैक फंगस के मामलों को गंभीरता से लेते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जबाव मांगा है.

इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि उत्तराखंड को जल्द से जल्द ब्लैक फंगस के इंजेक्शन उपलब्ध कराए जाएं. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपना जवाब भी पेश किया था, जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था कि उत्तराखंड को ब्लैक फंगस के 700 इंजेक्शन दिए जा रहे हैं.

पढ़ें- सुशीला तिवारी अस्पताल में जल्द शुरू होगी OPD, सामने आए ब्लैक फंगस के 20 मरीज

केंद्र सरकार के जवाब पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनसंख्या करीब दो करोड़ है. ऐसे में इस भयानक बीमारी से लड़ने के लिए केंद्र सरकार मात्र 700 इंजेक्शन उपलब्ध करा रही है, जो किसी मजाक से कम नहीं हैं. आज मामले में अधिवक्ता शिव भट्ट ने नई जनहित याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि उत्तराखंड आ रहे लोगों को स्टार इमेजिंग टेस्टिंग लैब समेत अन्य लैबों में पैसे देकर फर्जी कोविट निगेटिव रिपोर्ट दी जा रही है. उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने 16 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) का कड़ाई से पालन का आदेश राज्य सरकार को दिया है. एसओपी में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि जो कोरोना पीड़ित होम आइसोलेट हैं, उन्हें आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से होम आइसोलेशन किट दी जाए.

किट में ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर समेत कोरोना से लड़ने वाली सभी दवाएं उपलब्ध हों. वहीं कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि केंद्र सरकार की एसओपी के आधार पर आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं को पीपीई किट उपलब्ध कराई जाए.

इसके अलावा जो लोग होम आइसोलेट हैं, उनकी रोज डॉक्टर निगरानी करें. साथ ही राज्य सरकार, मध्य प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी नर्स, आंगनबाड़ी और होमगार्ड की टीम नियुक्त कर घर-घर जाकर कोविड की वैक्सीन लगाने का काम करें.

सरकार कोरोना की तीसरी लहर की अभी से तैयारी करे. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों का आइडेंटिटी कार्ड/ आधार कार्ड के चलते वैक्सीनेशन नहीं हो रहा है, उन लोगों के टीकाकरण के लिए जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाए.

पढ़ें- उत्तराखंड के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने बनाई ब्लैक फंगस 'किलर' मशीन

वहीं, आज प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने भी शपथ पत्र पेश कर कोर्ट में अपना जवाब पेश किया, लेकिन कोर्ट उनके जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आया. कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव नेगी के जबाव पर नाराजगी व्यक्त की. क्योंकि स्वास्थ्य सचिव ने अपने एक ही शपथ पत्र में कोविड-19 के अलग-अलग आंकड़े पेश किए थे.

इस पर कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव से स्पष्टीकरण मांगा है. स्वास्थ्य सचिव ने अपने जवाब में कहा था कि उनके द्वारा प्रदेश में मई माह में 10 लाख 56,944 कोविड टेस्ट के तो वहीं दूसरी पंक्ति में उनके द्वारा 1 लाख 30 हजार 40 टेस्ट कराए गए.

वन रावत जनजाति को टीका लगाने पर हुई सुनवाई

वहीं, जनसंख्या के आधार पर उत्तराखंड की सबसे छोटी जनजाति वन रावत जनजाति के लोगों को कोरोना वैक्सीन न लगाने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि नेपाली मूल के श्रमिक, उत्तराखंड में दूसरे राज्य के रह रहे प्रवासी को वैक्सीन लगाने के लिए जल्द से जल्द जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाए, ताकि सभी लोगों को कोरोना की वैक्सीन लग सके.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुहास रतन जोशी के द्वारा री-वैक्सीनेशन इन वन रावत नामक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. हाईकोर्ट पहुंचे सुहास रतन जोशी का कहना है कि हिमालयी जनजाति वन रावत जनजाति की कुल जनसंख्या 650 है और यह सभी गरीबी रेखा से नीच जीवनयापन कर रहे हैं. ऐसे लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं और न ही ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं. ऐसे में इस हिमालयी जनजाति के लोगों के लिए टीकाकरण की व्यवस्था की जाए. ताकि संक्रमण काल के दौरान यह सभी लोग सुरक्षित रह सकें.

नैनीताल: उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे ब्लैक फंगस (black fungus cases in uttarakhand) के मामलों को नैनीताल हाईकोर्ट (nainital high court) ने गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों पर केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने के आदेश दिए हैं.

वहीं, चारधाम यात्रा (char dham yatra) को लेकर सचिव पर्यटन ने कोर्ट में जो जवाब पेश किया है, उस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने अगली सुनवाई में सचिव पर्यटन को पेश होने के आदेश दिए हैं. ब्लैक फंगस के मामलों को गंभीरता से लेते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जबाव मांगा है.

इसके अलावा कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए हैं कि उत्तराखंड को जल्द से जल्द ब्लैक फंगस के इंजेक्शन उपलब्ध कराए जाएं. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अपना जवाब भी पेश किया था, जिसमें केंद्र सरकार ने कहा था कि उत्तराखंड को ब्लैक फंगस के 700 इंजेक्शन दिए जा रहे हैं.

पढ़ें- सुशीला तिवारी अस्पताल में जल्द शुरू होगी OPD, सामने आए ब्लैक फंगस के 20 मरीज

केंद्र सरकार के जवाब पर कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनसंख्या करीब दो करोड़ है. ऐसे में इस भयानक बीमारी से लड़ने के लिए केंद्र सरकार मात्र 700 इंजेक्शन उपलब्ध करा रही है, जो किसी मजाक से कम नहीं हैं. आज मामले में अधिवक्ता शिव भट्ट ने नई जनहित याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि उत्तराखंड आ रहे लोगों को स्टार इमेजिंग टेस्टिंग लैब समेत अन्य लैबों में पैसे देकर फर्जी कोविट निगेटिव रिपोर्ट दी जा रही है. उन्होंने इस मामले की सीबीआई जांच की मांग की है.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने 16 मई 2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गई एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) का कड़ाई से पालन का आदेश राज्य सरकार को दिया है. एसओपी में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि जो कोरोना पीड़ित होम आइसोलेट हैं, उन्हें आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से होम आइसोलेशन किट दी जाए.

किट में ऑक्सीमीटर और थर्मामीटर समेत कोरोना से लड़ने वाली सभी दवाएं उपलब्ध हों. वहीं कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि केंद्र सरकार की एसओपी के आधार पर आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं को पीपीई किट उपलब्ध कराई जाए.

इसके अलावा जो लोग होम आइसोलेट हैं, उनकी रोज डॉक्टर निगरानी करें. साथ ही राज्य सरकार, मध्य प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी नर्स, आंगनबाड़ी और होमगार्ड की टीम नियुक्त कर घर-घर जाकर कोविड की वैक्सीन लगाने का काम करें.

सरकार कोरोना की तीसरी लहर की अभी से तैयारी करे. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि जिन लोगों का आइडेंटिटी कार्ड/ आधार कार्ड के चलते वैक्सीनेशन नहीं हो रहा है, उन लोगों के टीकाकरण के लिए जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाए.

पढ़ें- उत्तराखंड के आयुर्वेद विशेषज्ञों ने बनाई ब्लैक फंगस 'किलर' मशीन

वहीं, आज प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने भी शपथ पत्र पेश कर कोर्ट में अपना जवाब पेश किया, लेकिन कोर्ट उनके जवाब से संतुष्ट नजर नहीं आया. कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव नेगी के जबाव पर नाराजगी व्यक्त की. क्योंकि स्वास्थ्य सचिव ने अपने एक ही शपथ पत्र में कोविड-19 के अलग-अलग आंकड़े पेश किए थे.

इस पर कोर्ट ने स्वास्थ्य सचिव से स्पष्टीकरण मांगा है. स्वास्थ्य सचिव ने अपने जवाब में कहा था कि उनके द्वारा प्रदेश में मई माह में 10 लाख 56,944 कोविड टेस्ट के तो वहीं दूसरी पंक्ति में उनके द्वारा 1 लाख 30 हजार 40 टेस्ट कराए गए.

वन रावत जनजाति को टीका लगाने पर हुई सुनवाई

वहीं, जनसंख्या के आधार पर उत्तराखंड की सबसे छोटी जनजाति वन रावत जनजाति के लोगों को कोरोना वैक्सीन न लगाने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि नेपाली मूल के श्रमिक, उत्तराखंड में दूसरे राज्य के रह रहे प्रवासी को वैक्सीन लगाने के लिए जल्द से जल्द जिला स्तर पर टास्क फोर्स का गठन किया जाए, ताकि सभी लोगों को कोरोना की वैक्सीन लग सके.

हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुहास रतन जोशी के द्वारा री-वैक्सीनेशन इन वन रावत नामक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. हाईकोर्ट पहुंचे सुहास रतन जोशी का कहना है कि हिमालयी जनजाति वन रावत जनजाति की कुल जनसंख्या 650 है और यह सभी गरीबी रेखा से नीच जीवनयापन कर रहे हैं. ऐसे लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं और न ही ऑनलाइन पंजीकरण करा सकते हैं. ऐसे में इस हिमालयी जनजाति के लोगों के लिए टीकाकरण की व्यवस्था की जाए. ताकि संक्रमण काल के दौरान यह सभी लोग सुरक्षित रह सकें.

Last Updated : Jun 9, 2021, 7:44 PM IST
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