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कुमाऊं में धूमधाम से मनाया गया लोकपर्व खतड़वा

लोगों में मान्यता है कि खतड़वे के साथ ही पशुओं के अनिष्ट भी समाप्त हो जाते हैं. इस दौरान ककड़ी और अन्य स्थानीय फलों को खाने और बांटने की भी परंपरा अतीत से चली आ रही है.

Kumaon folk festival
खतड़वा पर्व
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Published : Sep 18, 2021, 7:22 AM IST

Updated : Sep 18, 2021, 1:39 PM IST

रामनगर: कुमाऊं मंडल में खतड़वा का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. मान्यता है कि बरसात में गाय और अन्य पशुओं को कई तरह की बीमारी होती है. बरसात खत्म होने और शरद ऋतु के प्रारंभ में पशुओं के रोग-व्याधियों को भगाने के लिए खतड़वा मनाया जाता है.

खतड़वा शब्द की उत्पत्ति खातड़ या खातड़ी शब्द से हुई है. जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गर्म कपड़े. बता दें कि भाद्रपद की शुरूआत सितंबर मध्य से पहाड़ों में ठंड धीरे-धीरे शुरू हो जाती है. यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शीत ऋतु के आगमन का परिचय देता है. खतड़वा त्योहार को लेकर पहले गांवों में शाम के समय खासा उत्सव का माहौल रहता है. बच्चे गांव से दूर किसी चारागाह के किनारे पेड़ की टहनी को गाढ़ कर उसमें घास-फूस एकत्र कर लकड़ियों की सहायता से पुतला बनाते हैं. फिर शाम को कांस की घास से बूढ़ी-बुड्ढा बनाकर उसे सजाया जाता है.

कुमाऊं में धूमधाम से मनाया गया लोकपर्व खतड़वा.

पढ़ें-मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ही होंगे विधानसभा चुनाव में BJP का CM फेस, प्रह्लाद जोशी ने की घोषणा

सूर्यास्त के बाद गांव के सभी बच्चे मशाल लेकर हर घर के गोठ या खरक (गोशाला) में जाते हैं. जिसके बाद बच्चे पशुओें के बांधने के स्थल पर मशाल को घुमाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पशुओं को होने वाले रोगों और उन्हें हानि पहुंचाने वाली दुष्ट शक्तियों का नाश होता है. बाद में बूढ़े को उखाड़ कर घर की छत पर फेंक दिया जाता है और बूढ़ी को खतड़वे के साथ जला देते हैं. खतड़वे की राख का तिलक बच्चे खुद को और पशुओं को भी लगाते हैं.

वहीं, इस महत्वपूर्ण पर्व के संबंध में पिछले कुछ दशक से भ्रांतियां भी फैलाई जा रही हैं. जिनकी किसी प्रकार से पुष्टि नहीं होती है. कई लोगों की ऐसी मान्यता भी है कि पूरे साल हरियाली, फल और सब्जी की कमी ना रहे, इसलिए भी इस पर्व को मनाया जाता रहा है.

रामनगर: कुमाऊं मंडल में खतड़वा का पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया. मान्यता है कि बरसात में गाय और अन्य पशुओं को कई तरह की बीमारी होती है. बरसात खत्म होने और शरद ऋतु के प्रारंभ में पशुओं के रोग-व्याधियों को भगाने के लिए खतड़वा मनाया जाता है.

खतड़वा शब्द की उत्पत्ति खातड़ या खातड़ी शब्द से हुई है. जिसका अर्थ है रजाई या अन्य गर्म कपड़े. बता दें कि भाद्रपद की शुरूआत सितंबर मध्य से पहाड़ों में ठंड धीरे-धीरे शुरू हो जाती है. यह पर्व वर्षा ऋतु की समाप्ति के बाद शीत ऋतु के आगमन का परिचय देता है. खतड़वा त्योहार को लेकर पहले गांवों में शाम के समय खासा उत्सव का माहौल रहता है. बच्चे गांव से दूर किसी चारागाह के किनारे पेड़ की टहनी को गाढ़ कर उसमें घास-फूस एकत्र कर लकड़ियों की सहायता से पुतला बनाते हैं. फिर शाम को कांस की घास से बूढ़ी-बुड्ढा बनाकर उसे सजाया जाता है.

कुमाऊं में धूमधाम से मनाया गया लोकपर्व खतड़वा.

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सूर्यास्त के बाद गांव के सभी बच्चे मशाल लेकर हर घर के गोठ या खरक (गोशाला) में जाते हैं. जिसके बाद बच्चे पशुओें के बांधने के स्थल पर मशाल को घुमाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से पशुओं को होने वाले रोगों और उन्हें हानि पहुंचाने वाली दुष्ट शक्तियों का नाश होता है. बाद में बूढ़े को उखाड़ कर घर की छत पर फेंक दिया जाता है और बूढ़ी को खतड़वे के साथ जला देते हैं. खतड़वे की राख का तिलक बच्चे खुद को और पशुओं को भी लगाते हैं.

वहीं, इस महत्वपूर्ण पर्व के संबंध में पिछले कुछ दशक से भ्रांतियां भी फैलाई जा रही हैं. जिनकी किसी प्रकार से पुष्टि नहीं होती है. कई लोगों की ऐसी मान्यता भी है कि पूरे साल हरियाली, फल और सब्जी की कमी ना रहे, इसलिए भी इस पर्व को मनाया जाता रहा है.

Last Updated : Sep 18, 2021, 1:39 PM IST
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