नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उद्यान विभाग में हुए घोटाले की जांच सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी द्वारा कराए जाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने एसआईटी द्वारा पेश 42 पेज की रिपोर्ट पर सुनवाई के बाद सरकार से पूछा है कि एसआईटी ने निदेशक उद्यान हरमन बवेजा और अनिका ट्रेडर्स के नितिन शर्मा से पूछताछ की है या नहीं? जम्मू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में एसआईटी कैसे जांच करेगी, क्योंकि घोटाले में वहां के उद्यमी भी शामिल हैं.
साथ ही कोर्ट ने अगली तिथि को सील बंद लिफाफे में एसआईटी की प्रगति रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए. मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 सितंबर की तिथि नियत की है. कोर्ट ने एसआईटी की जांच रिपोर्ट का अवलोकन करके पाया कि एसआईटी ने हरमन बवेजा और नीतिन शर्मा से पूछताछ नहीं की है. इसलिए कोर्ट ने अगली तिथि तक इसपर स्थिति स्पष्ट करने को कहा. मामले के अनुसार दीपक करगेती ने जनहित याचिका दाखिल कर उद्यान विभाग में घोटाले का आरोप लगाया है.
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जनहित याचिका में कहा गया है कि उद्यान विभाग में लाखों का घोटाला किया गया है. जिसमें फल और अन्य के पौधरोपण में गड़बड़ियां की गई हैं. जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि विभाग द्वारा एक ही दिन में वर्क ऑर्डर जारी कर उसी दिन जम्मू कश्मीर से पेड़ लाना दिखाया गया है. जिसका पेमेंट भी कर दिया गया. याचिका में कहा गया कि इस पूरे मामले में कई वित्तीय व अन्य गड़बड़ियां हुई हैं, जिसकी सीबीआई या फिर किसी निष्पक्ष जांच एजेंसी से जांच कराई जाए.
शीतकालीन सत्र में निलंबित उद्यान निदेशक द्वारा पहले एक नकली नर्सरी अनिका ट्रेडर्स को पूरे राज्य में करोड़ों रुपए की पौध खरीद का कार्य देकर बड़े घोटाले को अंजाम दिया. जब उद्यान लगाओ उद्यान बचाओ यात्रा से जुड़े किसानों और उत्तरकाशी के किसानों द्वारा जोर शोर से इस प्रकरण को उठाया तो आनन फानन में अनिका ट्रेडर्स के आवंटन को रद्द करने का पत्र जारी कर दिया गया. फिर भी पौधे अनिका ट्रेडर्स के बांटे गए. इधर नैनीताल में मुख्य उद्यान अधिकारी राजेंद्र कुमार सिंह के साथ मिलकर बवेजा ने एक फर्जी आवंटन जम्मू कश्मीर की एक और नर्सरी बरकत एग्रो फार्म को कर दिया गया.
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जिसमें हुए भौतिक सत्यापन में भी गड़बड़ी का जिक्र याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में किया है. बरकत एग्रो फार्म को इनवॉइस बिल आने से पहले ही भुगतान कर दिया गया, तो कहीं अकाउंटेंट के बिलों पर बिना हस्ताक्षर के ही करोड़ों करोड़ रुपए ठिकाने लगा दिए.