नैनीतालः कुमाऊं में दीपावली के मौके पर ऐपण बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. भले ही अब पारंपरिक ऐपण की बजाए रेडीमेड बाजार में बिकने लगे हैं, लेकिन कुमाऊं में होने वाले किसी भी शुभ कार्य में हाथ से बनाए एपणों का महत्व आज भी बरकरार है. उत्तराखंड की यह कला अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. हालांकि, कुछ लोग इन्हें सहेजने का काम कर रहे हैं, उन्हीं में से एक नैनीताल की हेमलता भी हैं. जो कुमाऊंनी ऐपण कला की विधा को देश-विदेश तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं.
देवभूमि उत्तराखंड अपनी सांस्कृतिक विरासत और अनमोल परंपराओं के कारण सदियों से देश-दुनिया में अलग ही पहचान रखता आ रहा है. ऐसी कई लोककलाएं भी उत्तराखंड में मौजूद हैं, जो यहां की पहचान बन चुकी हैं. उन्हीं में से एक ऐपण कला भी है, लेकिन बदलते दौर में अब यह लोक कला धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार (Aipan art on verge of Extinction in Uttarakhand) पर है. परंपरागत ऐपण प्राकृतिक रंगों से बनाई जाती है. इसमें पहाड़ की लाल मिट्टी और चावल के आटे को मिलाकर पारंपरिक रंगोली तैयार की जाती है. इससे महिलाएं अपने हाथों से घरों की देहली को सजाने का काम करती हैं.
नैनीताल की ऐपण कलाकार हेमलता (Nainital Aipan artist Hemlata) बताती हैं कि वे कुमाऊं के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल मुक्तेश्वर की सुंदर पहाड़ियों के बीच बसे छोटे से गांव सतखोल में रहती हैं. यहां हर साल लाखों की संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक घूमने आते हैं. पर्यटक यहां आकर उत्तराखंड की इस लोक कला को देखकर काफी खुश होते हैं और अपने साथ देश के विभिन्न शहरों और विदेशों तक लेकर जाते हैं. जिससे इस ऐपण को विदेशों तक पहचान मिल रही है.
हेमलता बताती हैं कि इन ऐपण कलाओं को सबसे ज्यादा विदेशी पर्यटक पसंद करते हैं. जिस वजह से विदेशों से आने वाले पर्यटक इन ऐपणों को डाक के माध्यम से अपने देशों तक मंगवाते हैं. मुक्तेश्वर के छोटे से गांव सतखोल से शुरू हुई इस बेटी की मुहिम आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी उत्तराखंड की लोक संस्कृति (Folk Culture of Uttarakhand) की धूम मचा रही है. हेमलता कई लोगों को भी ऐपण कला के गुर सिखा रही हैं. जो रोजगार का साधन बन रहा है. लोग उनके इस कला को काफी पसंद भी कर रहे हैं.
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दीपावली के मौके पर महिलाएं इन ऐपणों को पूरी लगन से अपने-अपने घरों में सजाती है. दिखने में भले ही ये ऐपण आसान नजर आते हैं, लेकिन इन्हें बनाने में ग्रहों की स्थिति का खास ख्याल रखा जाता है. कहा जाता है कि शुभ अवसरों पर इन ऐपणों को बनाने से घर में खुशहाली और सुख-समृद्धि आती है. आज के बाजारवादी दौर में इन ऐपणों का भी बाजारीकरण हो गया है. ऐपण एक ऐसी लोक कला है, जो बिना किसी संरक्षण के पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार समृद्ध होती जा रही है. इस लोककला को जिंदा रखने में महिलाओं की भी अहम भूमिका रही है. महिलाओं की बदौलत ही आज कुमाऊं में होने वाले प्रत्येक शुभ कार्यों में ये ऐपण हर घर की दहलीज में नजर आते हैं.
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