हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार में 11 वर्ष (पहली बार) बाद महाकुंभ हो रहा है. महाशिवरात्रि के शाही स्नान से शुरू होकर अप्रैल तक यह आयोजन रहेगा. इस बार कोरोना के चलते महाकुुंभ सीमित रहेगा. आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो यह विश्व का सबसे बड़ा समागम है. पेशावाई एवं अखाड़ों का शाही स्नान इसकी शान है. कुंभ का इतिहास बहुत पुराना है. यह कब शुरू हुआ इसके बारे में स्पष्ट बताना मुश्किल है. विद्वानों का मानना है कि सातवीं शताब्दी में हर्षवर्धन के समय यह आयोजन शुरू हुआ. आठवीं शताब्दी के अन्त में आदि शंकराचार्य ने इसका फलक व्यापक कर दिया.
महाकुंभ में तभी स्नान ध्यान, पूजा-पाठ आदि की परम्परा है. शाही स्नान भी बाद में इसका हिस्सा रहे. जहां एक ओर शाही स्नान वैभव का प्रतीक रहे हैं, वहीं कई बार अखाड़ों के आपसी संघर्ष ने इसे रक्तरंजित भी किया है. शाही स्नान को राजयोग स्नान भी कहते हैं, जिसकी शुरुआत 14वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य मानी जाती है. यह वह दौर है जब विदेशी अक्रांताओं की बुरी नजर भारत पर लगी हुई थी. यहां किसी केंद्रीय सत्ता का अभाव था. देश राज्यों में बंटा था. असुरक्षित हो चला था.
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हिंदु राजाओं के लिए धर्मसत्ता पहले से ही सर्वोपरि थी. इस कारण साधु-संतों से रक्षा की गुहार लगाई गयी. कालान्तर में राजा और धर्म प्रतिनिधि में संधि होने लगी. बदले में संतों ने राष्ट की रक्षा का वचन दिया. राजाओं ने बदले में जो उपहार आदि दिये वह संतों के लिए उपयोग के नहीं थे, परन्तु संत इन सोने, चांदी के सामान, हाथी, घोड़े आदि का प्रयोग किसी खास मेले आदि में करते थे. यहीं से आगाज होता है शाही स्नान परम्परा का. विभिन्न अखाड़ों से ताल्लुक रखने वाले संतगण इन्हीं संसाधनों का इस्तेमाल कर शाही स्नान में अपना वैभव दिखाते हैं.
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इस बारे में महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत रविन्द्र पुरी महाराज कहते हैं कि ठाठ-बाट के साथ संतों का स्नान के लिए जाना शाही स्नान है. आज कुंभ में 13 अखाड़ों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. शैव, वैष्णव एवं उदासीन पंथ के मान्यता प्राप्त यह 13 अखाड़े हैं. कहा जाता है कि अखाड़ा शब्द मुगलकाल से शुरू हुआ. अखाड़ा शब्द का अर्थ उस स्थान से है जहां पहलवान कसरत आदि करते हैं, संतों के अखाड़ों में साधुओं का वह दल होता था जो शस्त्र विद्या में भी पारंगत हो. शाही स्नान की परम्परा और स्नान की व्यवस्था अंग्रेजों के समय से ही अधिकारियों द्वारा होती रही है.
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शाही स्नान में मामूली कहासुनी एवं स्नान का क्रम अखाड़ों में आपसी खूनी संघर्ष की भी वजह रहा है. वर्ष 1310 के हरिद्वार महाकुंभ में महानिर्वाणी अखाड़े और रामानन्द वैष्णवों के बीच हुए झगड़ ने खूनी संघर्ष का रूप ले लिया था. वहींं, 1398 के अर्धकुंभ में तैमूर लंग ने भी उत्पात मचाया था. 1760 में शैव संन्यासियों एवं वैष्णव बैरागियों के बीच संघर्ष हुआ था. 1796 के कुंभ में शैव संन्यासी और निर्मल संप्रदाय आपस में भिड़ गये थे. 1927 एवं 1986 में भीड़ दुर्घटना का कारण बनी. 1998 में भी हरकी पैड़ी पर अखाड़ों में संघर्ष हुआ. इन सबके बावजूद देश के चार स्थानों पर लगने वाला कुंभ आकर्षण का केंद्र होता है.