हरिद्वार: आज है पितृ अमावस्या है. ऐसा माना जाता है कि आज के दिन बदरीनाथ धाम, गया और हरिद्वार के नारायणी शीला मंदिर में पितरों के लिए की जाने वाली पूजा से उनको प्रेत योनि से मोक्ष की प्राप्ति होती है. आज के दिन श्राद्ध पक्ष में भूलोक में आये पितरों को विदाई देने के लिए बड़ी संख्या में लोग हरिद्वार के नारायणजी शीला मंदिर पहुंच रहे हैं. माना जाता है कि यदि किसी के पितरों की मृत्यु की तिथि ना पता हो, तो वह पितृ पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या को पितरों को पिंड दान तर्पण करे तो पितरों को मुक्ति और मोक्ष जरूर मिलता है. इस दिन किया गया दान पुण्य कभी बेकार नहीं जाता है.
ये है नारायणी शिला मंदिर का महत्व: नारायणी शिला के पंडित मनोज त्रिपाठी ने बताया कि पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में किसी भी वजह से श्राद्ध नहीं कर पाता है, तो वह इस पक्ष के आखिरी दिन पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन यदि पिंड दान श्राद्ध आदि कर दे, तो पितरों को सदगति मिलती है. यह भी मान्यता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला पर अपने सभी भूले बिसरे और अज्ञात पितरों का पिंड दान व तर्पण करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
नारायणी शिला में है श्रीहरि के कंठ से नाभि तक का हिस्सा: ऐसी मान्यता है कि हरिद्वार में स्थित नारायणी शिला भगवान श्री हरि नारायण की कंठ से नाभि तक का हिस्सा है. भगवान के कमल विग्रह स्वरूप के बीच का हिस्सा है. इसी कमल स्वरूप भगवान के चरण गयाजी में विष्णु पाद और ऊपर का हिस्सा ब्रह्म कपाली के रूप में बदरिकाश्रम अर्थात बदरीनाथ में पूजे जाते हैं. श्रीहरि का कंठ से लेकर नाभि तक का हिस्सा हरिद्वार स्थित नारायणी शिला के रूप में पूजा जाता है.
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नारायणी शिला में हृदय से सुनते हैं नारायण: नारायणी शिला के बारे में बताया जाता है कि यह श्री हरि नारायण का हृदय स्थल है. यहां पर आकर आप जो कुछ कहते हैं, वह भगवान को अपने हृदय में सुनाई देता है. यहां पर आकर जो अपने पितरों के निमित्त कर्म करता है, उसके पितरों को मुक्ति तो मिलती है. साथ ही बड़ी बात यह भी है कि पितरों की पूर्णता भी नारायणी से ही संभव है. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई पितृ अधोगति गया है तो नारायणी शिला पर शादी करने से वह पितरों के बीच चला जाता है.
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