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PM मोदी ने भी मुस्लिम विवि को भुनाने की कोशिश की, दिग्गजों ने प्रचार को दी धार, पढ़ें चुनावी हलचल - मुस्लिम यूनिवर्सिटी

उत्तराखंड विधानसभा चुनाव होने में अब गिनती के दिन रह गए हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के दिग्गज उत्तराखंड पहुंच रहे हैं. जहां वे जनसभाएं और रैलियां कर प्रत्याशियों के पक्ष में वोट करने की अपील कर रहे हैं. इस बार नेताओं के जुबान पर स्थानीय मुद्दों पर फोकस कम और धर्म के इर्द गिर्द ज्यादा फोकस प्रतीत हो रहा है. साथ ही आरोप प्रत्यारोप भी खूब लगाए जा रहे हैं. आइए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 से जुड़ी दिनभर की खबरों पर एक नजर डालते हैं...

uttarakhand assembly election 2022
उत्तराखंड चुनाव दिनभर
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Published : Feb 7, 2022, 8:44 PM IST

देहरादून: कहते हैं बदलाव के लिए दावे-वादों से बढ़कर नीयत होनी चाहिए, ये नीयत ही थी जिसमें पहले के राजनेताओं को इतिहास में अमर किया है, ये कुछ कर गुजरने की नीयत ही थी जिसने देश को आगे बढ़ाने में मदद की है, लेकिन आज के दल-बदल और राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के दौर में यह सच्ची नीयत कहीं खो गई है. आज बचा है तो बस एक दूसरे पर आरोप लगाना, राजनीतिक स्तर को गिराना और जनता को लोक-लुभावने झूठे वादों के फेर में फंसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना. ये बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज से ठीक एक हफ्ते बाद उत्तराखंड की जनता अपने पांच साल के भविष्य को तय करेगी, आज के एक हफ्ते बाद यानी अगले सोमवार 14 फरवरी को देवभूमि उत्तराखंड की जनता अपने लिए अपने जनप्रतिनिधि चुनेगी और इसलिए देवभूमि की जनता इन 'माननीयों' की असल नीयत टटोलने में व्यस्त है. इस 'नीयत' को हम आगे विस्तार से समझेंगे...

उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च को खत्म हो जाएगा, उससे पहले 10 मार्च को तय हो जाएगा कि पहाड़ी राज्य में किसकी सरकार बनेगी. बीजेपी इतिहास बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है तो कांग्रेस फिर से सत्ता वापसी के लिए अपने घोड़े दौड़ा रही है. बीजेपी की चुनावी प्रचार को धार लगाने की जिम्मेदारी खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाली हुई है. पीएम ने आज प्रदेश की जनत से वर्चुअली जुड़ते हुए वोट अपील तो की ही साथ ही 'मुस्लिम यूनिवर्सिटी' विवाद को भी मुद्दा बना दिया.

ये भी पढे़ंः पिथौरागढ़ में नड्डा का कांग्रेसी सीएम को 15 मिनट का चैलेंज, कहा- टिक नहीं पाएंगे

दरअसल, आज पीएम हरिद्वार-देहरादून की जनता को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि, कांग्रेस पार्टी का प्रदेश को लेकर ऐसा रवैया रहा है कि पहले तो वो खुद अच्छा नहीं करना चाहते और कोई दूसरा अच्छा काम कर दे तो उनके पेट में दर्द होने लगता है. पीएम ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का उदाहरण देते हुए डबल इंजन सरकार के फायदों को गिनाया. साथ ही इस बार के बजट में उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए 'पर्वतमाला परियोजना' की बात भी की. उन्होंने कहा कि, इससे पहाड़ों पर विकास के नए युग का आरंभ होने जा रहा है.

जहां एक ओर पीएम मोदी ने दिल्ली से मोर्चा संभाला हुआ था वहीं उनके सिपाही उत्तराखंड के कोने-कोने में फैले हुए थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कुमाऊं में डेरा डाला हुआ था और फायर ब्रांड नेता शिवराज सिंह चौहान गढ़वाल को साधने में जुटे थे. दोनों ही नेताओं ने कांग्रेस पर हमला करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. नड्डा ने सीधे कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे परिवारिक पार्टी करार दे दिया. नड्डे ने कहा कि, कांग्रेस अब केवल भाई-बहन की पार्टी हो गई है. यहां तक कि राहुल गांधी को तो पूजा करना तक नहीं आता. वो हरिद्वार आते हैं और गंगा के घाट पर उन्हें पूजा करनी सिखाई जाती है.

उधर, शिवराज तो पूरे फॉर्म में दिखाए दिए. उनके तरकश से कांग्रेस पर एक के बाद एक प्रहार होते रहे. गढ़वाल मंडल की अलग-अलग विधानसभाओं में चुनाव प्रचार करने के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को राहु और केतु बता दिया. उन्होंने कहा कि, यदि ये दोनों उत्तराखंड में आ गए तो विकास को ग्रहण लग जाएगा. इससे पहले शिवराज ने कांग्रेस के चारधाम और चारकाम पर तीखा व्यंग्य किया था. उन्होंने कहा था, कांग्रेस के चारधाम सोनिया गांधी, बाबा राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और राबर्ट वाड्रा हैं. वो उससे आगे कुछ नहीं सोच सकते. जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे तो वे भी इन्हीं धामों के गुण गाते थे.

ये भी पढे़ंः शिवराज ने राहुल और केजरीवाल को बताया राहु-केतु, बोले- दोनों ग्रहण लगाने आए हैं

हालांकि, उनके इस तंज का जवाब भी हरीश रावत ने तीखे लहजे में दिया है. हरीश रावत का कहना है कि, मुख्यमंत्री पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को इस तरह की गैर जिम्मेदाराना बात नहीं कहनी चाहिए, जिस तरह से शिवराज ने चारधाम को लेकर टिप्पणी की है. उनका कांग्रेस और अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी के लिए इस तरह का बयान देना लोकतंत्र का अपमान है.

भले ही हरीश रावत कुछ भी कहें लेकिन क्या फर्क पड़ने वाला है, क्योंकि तंज कसने में तो हरीश रावत भी किसी से कम नहीं है. क्या फर्क पड़ जाएगा किसी नेता का किसी दूसरे नेता को कुछ कह देने भर से, क्योंकि आजकल की राजनीति में तो यह 'कॉमन' बात है. अपने विपक्षी का अपमान करना, उनको नीचा दिखाना, उन पर तंज कसना एक आम बात हो चुकी है और चुनाव पास आने के साथ-साथ तो ये गरिमा और भी धूमिल होती ही रहती है.

अब बीजेपी-कांग्रेस की बात हो रही है तो ऐसे में आम आदमी पार्टी को कैसे भूला जा सकता है. आम आदमी पार्टी के प्रचार के लिए तो आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद उत्तराखंड पहुंचे हुए थे. केजरीवाल ने सबसे पहले हरिद्वार से अपनी तीन दिनी दौरे का आगाज किया. केजरीवाल ने सीधे-सीधे कहा कि, उनका एक ही मकसद है उत्तराखंड से भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए, क्योंकि एक बार भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा तो बाकी चीजों के लिए अपने आप ही रास्ता बन जाएगा.

यहां केजरीवाल ने उस 'नीयत' की बात की, जो हम शुरुआत में आपको बता रहे थे. उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियां भ्रष्टाचार खत्म नहीं करना चाहती क्योंकि उनकी नीयत में खोट है, लेकिन आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली देगी, रोजगार देगी, और ये काम उन्होंने दिल्ली में करके दिखाया है. प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के लिए माहौल बनाया जाएगा. उत्तराखंड के लोगों को यही रोजगार दिया जाएगा. दिल्ली जैसी शिक्षा उत्तराखंड के स्कूलों में भी दी जाएगी और शहीद सैनिकों व पुलिसकर्मियों के परिवार को 1 करोड़ की मदद दी जाएगी.

ये भी पढे़ंः मुस्लिम विवि को लेकर PM मोदी ने कांग्रेस पर साधा निशाना, कहा- वो तुष्टिकरण का जहर फैला रहे हैं

केजरीवाल कहते हैं कि ये सब काम होंगे क्योंकि इनको सही नीयत से किया जाएगा. सही भी है, क्योंकि अबतक पहाड़ पर राज करने वाले नेताओं और पार्टियों की सही नीयत होती तो आज पहाड़ यूं वीरान न होते. उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 बरस हो गए लेकिन जब आज भी उन्हीं पुरानी बातों पर वोट मांगे जाते हैं तो हर उस पहाड़ी को कष्ट होता है जिसने बस विकास की एक किरण के लिए हर बार बढ़-चढ़कर वोट दिया. नेता को विधानसभा तक पहुंचाया, और वो नेता फिर वही वादा लेकर इस पर भी उनकी चौखट पर हैं.

लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि अगर आम आदमी पार्टी की 'नीयत' उत्तराखंड के लिए इतनी अच्छी है तो फिर वो खुद के कार्यकर्ताओं को पार्टी में क्यों नहीं रोक पा रही? देखा जा रहा है कि पिछले दो महीने में आम आदमी पार्टी के 20 से अधिक पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने पार्टी का दामन छोड़ा है. इनमें प्रदेश प्रवक्ता संजय भट्ट, रविंद्र जुगरान व कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व आईपीएस अनंत कुमार, पूर्व आईएएस सुवर्धन शाह जैसे बड़े नेताओं के नाम भी शामिल हैं.

ये भी पढ़ेंः शिवराज ने गिनाए 'कांग्रेस के चारधाम' तो भड़के हरीश रावत, चौहान को बताया नकली धर्माचरणी

सभी का आरोप है कि पार्टी में वो उपेक्षित होकर रह गए थे. इन सभी नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर पहाड़ विरोधी होने का आरोप लगाया है. ये अजब-गजब है! एक ओर केजरीवाल प्रदेश में बड़े-बड़े बदलावों की बात करते हैं लेकिन उनकी पार्टी ही बदलाव मांग रही है. अब सवाल ये कि- पहले क्या इन पार्टियों को खुद में झांकने की जरूरत नहीं?

अब एक नजर इन 'अच्छी' नीयत वाले नेताओं के ट्रैक रिकॉर्ड पर भी डाल ही लेते हैं. द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और उत्तराखंड इलेक्शन वॉच ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि चुनाव के वक्त जनता के द्वार-द्वार हाथ जोड़कर जाने वाले 40 प्रतिशत प्रत्याशी करोड़पति हो चुके हैं. इन चुनावों में कुल 632 प्रत्याशी मैदान में है. जिसमें से 626 के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया गया है. इसमें से 252 प्रत्याशियों की संपत्ति एक करोड़ से अधिक है. इनमें से करीब 10 फीसदी 'बाहुबली' हो चुके हैं, इनके खिलाफ 61 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. कांग्रेस के सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवार, भाजपा के 13, आम आदमी पार्टी के 15, बहुजन समाज पार्टी के 10 और इकलौती क्षेत्रीय पार्टी यूकेडी के 7 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

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चुनावी चर्चाओं के बीच बॉलीवुड अभिनेत्री रिमी सेन ने हाथ को थाम लिया है, पहले वो 2017 में बीजेपी में शामिल हुई थीं, वो बीजेपी की स्टार प्रचारक रह चुकी हैं. नैनीताल के हल्द्वानी कांग्रेस मुख्यालय में पूर्व सीएम हरीश रावत ने रिमी सेन को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई. रिमी सेन उत्तराखंड कांग्रेस के प्रचार के साथ-साथ हरीश रावत के लिए लालकुआं विधानसभा में भी प्रचार करेंगी.

चुनाव में तो दल-बदल का खेल चलता ही रहता है लेकिन अब आपको एक अनोखी खबर बताते हैं. दरअसल, चुनाव का क्रेज इतना है कि लोग अपना जमा-जमाया करोबार छोड़ चुनाव लड़ने उत्तराखंड पहुंच रहे हैं. ऐसा ही कुछ किया है टिहरी के दर्शन लाल आर्य ने, जिन्होंने जापान में अपना कारोबार जमा चुके हैं लेकिन बस चुनाव लड़ने के लिए घनसाली लौटे हैं. दर्शन लाल आर्य ने घनसाली विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोकी है. पहले दर्शन लाल भाजपा से टिकट मांग रहे थे, टिकट नहीं मिला तो अकेले दम पर मैदान में उतर गए हैं.

उत्तराखंड में अभी तक चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. यहां की ये परंपरा रही है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी को दोबारा गद्दी नहीं मिली. सत्ता पर दावेदारी तय करने में वहां के क्षेत्रीय दल, बसपा और निर्दलीयों की प्रमुख भूमिका रही है. मगर इस बार क्षेत्रीय दलों और बसपा की ताकत कम होने के कारण मुकाबला कांटे का है. इस बार तो आम आदमी पार्टी भी मोर्चे में डटी है. बीजेपी को तो आप ने इतना खतरा नहीं बताया जा रहा लेकिन आम आदमी पार्टी कांग्रेस के काफी वोट काट सकती है. ऐसे में इस बार सच में टक्कर कांटे की ही है... कहीं-कहीं तो एक-दो वोट से ही जीत-हार का फैसला फंस सकता है.

देहरादून: कहते हैं बदलाव के लिए दावे-वादों से बढ़कर नीयत होनी चाहिए, ये नीयत ही थी जिसमें पहले के राजनेताओं को इतिहास में अमर किया है, ये कुछ कर गुजरने की नीयत ही थी जिसने देश को आगे बढ़ाने में मदद की है, लेकिन आज के दल-बदल और राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के दौर में यह सच्ची नीयत कहीं खो गई है. आज बचा है तो बस एक दूसरे पर आरोप लगाना, राजनीतिक स्तर को गिराना और जनता को लोक-लुभावने झूठे वादों के फेर में फंसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना. ये बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज से ठीक एक हफ्ते बाद उत्तराखंड की जनता अपने पांच साल के भविष्य को तय करेगी, आज के एक हफ्ते बाद यानी अगले सोमवार 14 फरवरी को देवभूमि उत्तराखंड की जनता अपने लिए अपने जनप्रतिनिधि चुनेगी और इसलिए देवभूमि की जनता इन 'माननीयों' की असल नीयत टटोलने में व्यस्त है. इस 'नीयत' को हम आगे विस्तार से समझेंगे...

उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च को खत्म हो जाएगा, उससे पहले 10 मार्च को तय हो जाएगा कि पहाड़ी राज्य में किसकी सरकार बनेगी. बीजेपी इतिहास बदलने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है तो कांग्रेस फिर से सत्ता वापसी के लिए अपने घोड़े दौड़ा रही है. बीजेपी की चुनावी प्रचार को धार लगाने की जिम्मेदारी खुद प्रधानमंत्री मोदी ने संभाली हुई है. पीएम ने आज प्रदेश की जनत से वर्चुअली जुड़ते हुए वोट अपील तो की ही साथ ही 'मुस्लिम यूनिवर्सिटी' विवाद को भी मुद्दा बना दिया.

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दरअसल, आज पीएम हरिद्वार-देहरादून की जनता को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि, कांग्रेस पार्टी का प्रदेश को लेकर ऐसा रवैया रहा है कि पहले तो वो खुद अच्छा नहीं करना चाहते और कोई दूसरा अच्छा काम कर दे तो उनके पेट में दर्द होने लगता है. पीएम ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का उदाहरण देते हुए डबल इंजन सरकार के फायदों को गिनाया. साथ ही इस बार के बजट में उत्तराखंड जैसे राज्यों के लिए 'पर्वतमाला परियोजना' की बात भी की. उन्होंने कहा कि, इससे पहाड़ों पर विकास के नए युग का आरंभ होने जा रहा है.

जहां एक ओर पीएम मोदी ने दिल्ली से मोर्चा संभाला हुआ था वहीं उनके सिपाही उत्तराखंड के कोने-कोने में फैले हुए थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कुमाऊं में डेरा डाला हुआ था और फायर ब्रांड नेता शिवराज सिंह चौहान गढ़वाल को साधने में जुटे थे. दोनों ही नेताओं ने कांग्रेस पर हमला करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. नड्डा ने सीधे कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उसे परिवारिक पार्टी करार दे दिया. नड्डे ने कहा कि, कांग्रेस अब केवल भाई-बहन की पार्टी हो गई है. यहां तक कि राहुल गांधी को तो पूजा करना तक नहीं आता. वो हरिद्वार आते हैं और गंगा के घाट पर उन्हें पूजा करनी सिखाई जाती है.

उधर, शिवराज तो पूरे फॉर्म में दिखाए दिए. उनके तरकश से कांग्रेस पर एक के बाद एक प्रहार होते रहे. गढ़वाल मंडल की अलग-अलग विधानसभाओं में चुनाव प्रचार करने के दौरान शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को राहु और केतु बता दिया. उन्होंने कहा कि, यदि ये दोनों उत्तराखंड में आ गए तो विकास को ग्रहण लग जाएगा. इससे पहले शिवराज ने कांग्रेस के चारधाम और चारकाम पर तीखा व्यंग्य किया था. उन्होंने कहा था, कांग्रेस के चारधाम सोनिया गांधी, बाबा राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और राबर्ट वाड्रा हैं. वो उससे आगे कुछ नहीं सोच सकते. जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे तो वे भी इन्हीं धामों के गुण गाते थे.

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हालांकि, उनके इस तंज का जवाब भी हरीश रावत ने तीखे लहजे में दिया है. हरीश रावत का कहना है कि, मुख्यमंत्री पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को इस तरह की गैर जिम्मेदाराना बात नहीं कहनी चाहिए, जिस तरह से शिवराज ने चारधाम को लेकर टिप्पणी की है. उनका कांग्रेस और अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी के लिए इस तरह का बयान देना लोकतंत्र का अपमान है.

भले ही हरीश रावत कुछ भी कहें लेकिन क्या फर्क पड़ने वाला है, क्योंकि तंज कसने में तो हरीश रावत भी किसी से कम नहीं है. क्या फर्क पड़ जाएगा किसी नेता का किसी दूसरे नेता को कुछ कह देने भर से, क्योंकि आजकल की राजनीति में तो यह 'कॉमन' बात है. अपने विपक्षी का अपमान करना, उनको नीचा दिखाना, उन पर तंज कसना एक आम बात हो चुकी है और चुनाव पास आने के साथ-साथ तो ये गरिमा और भी धूमिल होती ही रहती है.

अब बीजेपी-कांग्रेस की बात हो रही है तो ऐसे में आम आदमी पार्टी को कैसे भूला जा सकता है. आम आदमी पार्टी के प्रचार के लिए तो आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद उत्तराखंड पहुंचे हुए थे. केजरीवाल ने सबसे पहले हरिद्वार से अपनी तीन दिनी दौरे का आगाज किया. केजरीवाल ने सीधे-सीधे कहा कि, उनका एक ही मकसद है उत्तराखंड से भ्रष्टाचार को खत्म किया जाए, क्योंकि एक बार भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा तो बाकी चीजों के लिए अपने आप ही रास्ता बन जाएगा.

यहां केजरीवाल ने उस 'नीयत' की बात की, जो हम शुरुआत में आपको बता रहे थे. उन्होंने कहा कि दूसरी पार्टियां भ्रष्टाचार खत्म नहीं करना चाहती क्योंकि उनकी नीयत में खोट है, लेकिन आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली देगी, रोजगार देगी, और ये काम उन्होंने दिल्ली में करके दिखाया है. प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के लिए माहौल बनाया जाएगा. उत्तराखंड के लोगों को यही रोजगार दिया जाएगा. दिल्ली जैसी शिक्षा उत्तराखंड के स्कूलों में भी दी जाएगी और शहीद सैनिकों व पुलिसकर्मियों के परिवार को 1 करोड़ की मदद दी जाएगी.

ये भी पढे़ंः मुस्लिम विवि को लेकर PM मोदी ने कांग्रेस पर साधा निशाना, कहा- वो तुष्टिकरण का जहर फैला रहे हैं

केजरीवाल कहते हैं कि ये सब काम होंगे क्योंकि इनको सही नीयत से किया जाएगा. सही भी है, क्योंकि अबतक पहाड़ पर राज करने वाले नेताओं और पार्टियों की सही नीयत होती तो आज पहाड़ यूं वीरान न होते. उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 21 बरस हो गए लेकिन जब आज भी उन्हीं पुरानी बातों पर वोट मांगे जाते हैं तो हर उस पहाड़ी को कष्ट होता है जिसने बस विकास की एक किरण के लिए हर बार बढ़-चढ़कर वोट दिया. नेता को विधानसभा तक पहुंचाया, और वो नेता फिर वही वादा लेकर इस पर भी उनकी चौखट पर हैं.

लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि अगर आम आदमी पार्टी की 'नीयत' उत्तराखंड के लिए इतनी अच्छी है तो फिर वो खुद के कार्यकर्ताओं को पार्टी में क्यों नहीं रोक पा रही? देखा जा रहा है कि पिछले दो महीने में आम आदमी पार्टी के 20 से अधिक पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने पार्टी का दामन छोड़ा है. इनमें प्रदेश प्रवक्ता संजय भट्ट, रविंद्र जुगरान व कार्यकारी अध्यक्ष पूर्व आईपीएस अनंत कुमार, पूर्व आईएएस सुवर्धन शाह जैसे बड़े नेताओं के नाम भी शामिल हैं.

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सभी का आरोप है कि पार्टी में वो उपेक्षित होकर रह गए थे. इन सभी नेताओं ने आम आदमी पार्टी पर पहाड़ विरोधी होने का आरोप लगाया है. ये अजब-गजब है! एक ओर केजरीवाल प्रदेश में बड़े-बड़े बदलावों की बात करते हैं लेकिन उनकी पार्टी ही बदलाव मांग रही है. अब सवाल ये कि- पहले क्या इन पार्टियों को खुद में झांकने की जरूरत नहीं?

अब एक नजर इन 'अच्छी' नीयत वाले नेताओं के ट्रैक रिकॉर्ड पर भी डाल ही लेते हैं. द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और उत्तराखंड इलेक्शन वॉच ने अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए बताया है कि चुनाव के वक्त जनता के द्वार-द्वार हाथ जोड़कर जाने वाले 40 प्रतिशत प्रत्याशी करोड़पति हो चुके हैं. इन चुनावों में कुल 632 प्रत्याशी मैदान में है. जिसमें से 626 के शपथ पत्रों का विश्लेषण किया गया है. इसमें से 252 प्रत्याशियों की संपत्ति एक करोड़ से अधिक है. इनमें से करीब 10 फीसदी 'बाहुबली' हो चुके हैं, इनके खिलाफ 61 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. कांग्रेस के सबसे ज्यादा 23 उम्मीदवार, भाजपा के 13, आम आदमी पार्टी के 15, बहुजन समाज पार्टी के 10 और इकलौती क्षेत्रीय पार्टी यूकेडी के 7 प्रत्याशियों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

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चुनावी चर्चाओं के बीच बॉलीवुड अभिनेत्री रिमी सेन ने हाथ को थाम लिया है, पहले वो 2017 में बीजेपी में शामिल हुई थीं, वो बीजेपी की स्टार प्रचारक रह चुकी हैं. नैनीताल के हल्द्वानी कांग्रेस मुख्यालय में पूर्व सीएम हरीश रावत ने रिमी सेन को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई. रिमी सेन उत्तराखंड कांग्रेस के प्रचार के साथ-साथ हरीश रावत के लिए लालकुआं विधानसभा में भी प्रचार करेंगी.

चुनाव में तो दल-बदल का खेल चलता ही रहता है लेकिन अब आपको एक अनोखी खबर बताते हैं. दरअसल, चुनाव का क्रेज इतना है कि लोग अपना जमा-जमाया करोबार छोड़ चुनाव लड़ने उत्तराखंड पहुंच रहे हैं. ऐसा ही कुछ किया है टिहरी के दर्शन लाल आर्य ने, जिन्होंने जापान में अपना कारोबार जमा चुके हैं लेकिन बस चुनाव लड़ने के लिए घनसाली लौटे हैं. दर्शन लाल आर्य ने घनसाली विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर ताल ठोकी है. पहले दर्शन लाल भाजपा से टिकट मांग रहे थे, टिकट नहीं मिला तो अकेले दम पर मैदान में उतर गए हैं.

उत्तराखंड में अभी तक चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. यहां की ये परंपरा रही है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी को दोबारा गद्दी नहीं मिली. सत्ता पर दावेदारी तय करने में वहां के क्षेत्रीय दल, बसपा और निर्दलीयों की प्रमुख भूमिका रही है. मगर इस बार क्षेत्रीय दलों और बसपा की ताकत कम होने के कारण मुकाबला कांटे का है. इस बार तो आम आदमी पार्टी भी मोर्चे में डटी है. बीजेपी को तो आप ने इतना खतरा नहीं बताया जा रहा लेकिन आम आदमी पार्टी कांग्रेस के काफी वोट काट सकती है. ऐसे में इस बार सच में टक्कर कांटे की ही है... कहीं-कहीं तो एक-दो वोट से ही जीत-हार का फैसला फंस सकता है.

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