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Migration Commission Report: सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने सरकार के दिए ये सुझाव - पलायन आयोग की रिपोर्ट

पलायन आयोग ने अपनी जो दूसरी अंतरिम रिपोर्ट जारी की है, उसको लेकर समाजसेवी अनूप नौटियाल ने सरकार को कुछ सुझाव दिए हैं. नौटियाल ने कहा कि आंकड़े स्पष्ट संदेश देते हैं कि राज्य में बढ़े हुए पलायन के पैटर्न और प्रवृत्ति को रोकने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.

Migration Commission Report
अनूप नौटियाल
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Published : Mar 14, 2023, 12:03 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग ने हाल ही में उत्तराखंड में पलायन की स्थिति पर अपनी दूसरी अंतरिम रिपोर्ट जारी की है. पहली रिपोर्ट 5 वर्ष पूर्व अप्रैल 2018 में जारी की गई थी. रिपोर्ट में स्थाई प्रवासन में गिरावट का दावा किया गया है. दरअसल राज्य के बुद्धिजीवियों ने उत्तराखंड में 2018 से 2022 में और 2008 से 2018 के आंकड़ों के मुकाबले वार्षिक आधार पर पलायन विश्लेषण के बाद उत्तराखंड सरकार को आत्म निरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है.

समाजसेवी अनूप नौटियाल के सुझाव: वहीं समाजसेवी अनूप नौटियाल ने प्लान को लेकर कुछ सुझाव सरकार को दिए हैं. उन्होंने कहा कि विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेप और अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन के बावजूद राज्य में पलायन में वृद्धि जारी है. इसलिए यह उल्लेख किया जाना जरूरी है कि उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना जैसी योजनाओं को शुरू करके रिवर्स माइग्रेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए कोरोना को ध्यान में रखते हुए कई प्रयास किए थे. पलायन निवारण आयोग की दूसरी अंतरिम रिपोर्ट के आंकड़े स्पष्ट संदेश देते हैं कि राज्य में बढ़े हुए पलायन के पैटर्न और प्रवृत्ति को रोकने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.

बरकरार हैं चुनौतियां: अनूप नौटियाल ने कहा कि दूसरी अंतरिम रिपोर्ट में पलायन के कारणों को शामिल नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 की पहली अंतरिम रिपोर्ट में यह सूचित किया गया था कि राज्य में 50.16 प्रतिशत, 15.21% और 8.8 3% लोग पर्याप्त रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के अभाव के कारण पलायन कर चुके हैं. ऐसे में यह मान लेना यथोचित रूप से सुरक्षित है कि यह चुनौतियां आज भी ना के केवल मौजूद हैं, बल्कि वास्तव में बीते 4 सालों के दौरान समस्या कहीं अधिक गंभीर हो गई है.

ये है रिपोर्ट: गौरतलब है कि उत्तराखंड में 10 वर्षों 2008 से 2018 में कुल 502,717 लोगों ने पलायन किया. जबकि बीते 4 वर्षों में 2018 से लेकर 2022 में कुल 335,841 लोगों ने पलायन किया है. वहीं उत्तराखंड में बीते 4 सालों में वार्षिक आधार पर 83,960 लोगों की तुलना में 10 वर्ष यानी 2008 से 2018 की अवधि में 50,272 लोगों ने पलायन किया है. वार्षिक आधार पर यदि तुलना की जाए तो पहले के 10 वर्षों की तुलना में बीते 4 वर्षों में प्रतिवर्ष 67 प्रतिशत की बहुत बड़ी वृद्धि हुई है. इन 10 वर्षों में 118,981 लोगों ने स्थाई पलायन किया, जबकि बीते 4 वर्षों की अवधि में 28,531 लोगों ने स्थाई रूप से पलायन किया.
ये भी पढ़ें: Uttarakhand Migration Report: बदला पलायन का पैटर्न, कस्बों में शिफ्ट हो रहे लोग, पांच साल में 24 गांव बने घोस्ट विलेज

वार्षिक आधार की तुलना में स्थाई लोगों की संख्या में उत्साहजनक रूप से 40% की कमी आई है. वहीं 24 गांव बीते 4 वर्षों में भुतहा बन चुके हैं. वहीं 398 गांव ऐसे हैं जहां लोग पलायन कर बस गए हैं. हालांकि 82% गांव (398 गांव में से 326) जैसे नैनीताल, देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार जिलों में हैं, यह उत्तराखंड के मैदानी जिलों में गांव की ओर बड़े पैमाने पर पलायन का स्पष्ट संकेत हैं.

देहरादून: उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग ने हाल ही में उत्तराखंड में पलायन की स्थिति पर अपनी दूसरी अंतरिम रिपोर्ट जारी की है. पहली रिपोर्ट 5 वर्ष पूर्व अप्रैल 2018 में जारी की गई थी. रिपोर्ट में स्थाई प्रवासन में गिरावट का दावा किया गया है. दरअसल राज्य के बुद्धिजीवियों ने उत्तराखंड में 2018 से 2022 में और 2008 से 2018 के आंकड़ों के मुकाबले वार्षिक आधार पर पलायन विश्लेषण के बाद उत्तराखंड सरकार को आत्म निरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया है.

समाजसेवी अनूप नौटियाल के सुझाव: वहीं समाजसेवी अनूप नौटियाल ने प्लान को लेकर कुछ सुझाव सरकार को दिए हैं. उन्होंने कहा कि विभिन्न नीतिगत हस्तक्षेप और अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन के बावजूद राज्य में पलायन में वृद्धि जारी है. इसलिए यह उल्लेख किया जाना जरूरी है कि उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना जैसी योजनाओं को शुरू करके रिवर्स माइग्रेशन को सुविधाजनक बनाने के लिए कोरोना को ध्यान में रखते हुए कई प्रयास किए थे. पलायन निवारण आयोग की दूसरी अंतरिम रिपोर्ट के आंकड़े स्पष्ट संदेश देते हैं कि राज्य में बढ़े हुए पलायन के पैटर्न और प्रवृत्ति को रोकने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है.

बरकरार हैं चुनौतियां: अनूप नौटियाल ने कहा कि दूसरी अंतरिम रिपोर्ट में पलायन के कारणों को शामिल नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 की पहली अंतरिम रिपोर्ट में यह सूचित किया गया था कि राज्य में 50.16 प्रतिशत, 15.21% और 8.8 3% लोग पर्याप्त रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के अभाव के कारण पलायन कर चुके हैं. ऐसे में यह मान लेना यथोचित रूप से सुरक्षित है कि यह चुनौतियां आज भी ना के केवल मौजूद हैं, बल्कि वास्तव में बीते 4 सालों के दौरान समस्या कहीं अधिक गंभीर हो गई है.

ये है रिपोर्ट: गौरतलब है कि उत्तराखंड में 10 वर्षों 2008 से 2018 में कुल 502,717 लोगों ने पलायन किया. जबकि बीते 4 वर्षों में 2018 से लेकर 2022 में कुल 335,841 लोगों ने पलायन किया है. वहीं उत्तराखंड में बीते 4 सालों में वार्षिक आधार पर 83,960 लोगों की तुलना में 10 वर्ष यानी 2008 से 2018 की अवधि में 50,272 लोगों ने पलायन किया है. वार्षिक आधार पर यदि तुलना की जाए तो पहले के 10 वर्षों की तुलना में बीते 4 वर्षों में प्रतिवर्ष 67 प्रतिशत की बहुत बड़ी वृद्धि हुई है. इन 10 वर्षों में 118,981 लोगों ने स्थाई पलायन किया, जबकि बीते 4 वर्षों की अवधि में 28,531 लोगों ने स्थाई रूप से पलायन किया.
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वार्षिक आधार की तुलना में स्थाई लोगों की संख्या में उत्साहजनक रूप से 40% की कमी आई है. वहीं 24 गांव बीते 4 वर्षों में भुतहा बन चुके हैं. वहीं 398 गांव ऐसे हैं जहां लोग पलायन कर बस गए हैं. हालांकि 82% गांव (398 गांव में से 326) जैसे नैनीताल, देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार जिलों में हैं, यह उत्तराखंड के मैदानी जिलों में गांव की ओर बड़े पैमाने पर पलायन का स्पष्ट संकेत हैं.

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