देहरादून: उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले कुछ समय में ऐसे कई एनकाउंटर्स को अंजाम दिया है, जिसमें बड़े इनामी बदमाशों को मार गिराया गया. ताजा मामला माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और उसके एक साथी गुलाम की एनकाउंटर से जुड़ा है. जिन्हें यूपी एसटीएफ ने झांसी में एनकाउंटर के दौरान मार गिराया. बहरहाल यह यूपी की बात, लेकिन उत्तराखंड में कुछ साल पहले एक एनकाउंटर हुआ, था जिसने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी थी. इस एनकाउंटर के बाद उत्तराखंड पुलिस की कार्यशैली ही बदल गई. इसके बाद राज्य में सालों साल तक कोई एनकाउंटर ही नहीं हुआ है. क्या है यह पूरा मामला, जानिए
यूपी एसटीएफ ने अतीक अहमद के बेटे असद और उसके साथी शूटर गुलाम को एनकाउंटर में मार गिराया. इसी के साथ लोगों को उत्तराखंड में करीब 13 साल पहले हुआ वह एनकाउंटर भी याद आ गया, जिसमें राज्य के 17 पुलिसकर्मियों को जेल की हवा खानी पड़ी थी. मामला साल 2009 का है. जब रणवीर नाम के एक युवक को पुलिस ने एनकाउंटर के दौरान मार गिराने का दावा किया था. देहरादून में हुई इस घटना के दौरान राजधानी के एसएसपी अमित सिन्हा थे.
पुलिस ने शुरुआती कहानी में बताया कि दो युवक किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के लिए देहरादून पहुंचे थे. इस दौरान पुलिस के साथ उनकी मुठभेड़ हुई, जिसमें पुलिस ने उन्हें लाडपुर के जंगल में एनकाउंटर के दौरान मार गिराया, लेकिन जब मामले की जांच हुई तो हकीकत बेहद चौंकाने वाली थी. जांच में खुलासा हुआ कि जिस रणवीर को पुलिस बदमाश बता रही थी, वह एमबीए का छात्र था. जिसके साथ पुलिस ने मारपीट की और एक फर्जी एनकाउंटर में उसे मार दिया.
जिसके बाद पुलिस ने बताया कि चेकिंग के दौरान रणवीर की आरा घर रिपोर्टिंग चौकी क्षेत्र में एक दरोगा के साथ हाथापाई हो गई थी. घटना की शुरुआत तब हुई जब रणवीर अपने दो साथियों के साथ मोहनी रोड पर एक बाइक के साथ खड़ा था. इस दौरान दरोगा जीडी भट्ट ने उन्हें संदिग्ध मानते हुए उनसे सवाल-जवाब शुरू कर दी. बात गाली-गलौज और धक्का-मुक्की पर पहुंच गई. इसके बाद इसकी जानकारी कंट्रोल रूम को दे दी गई.
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जिसके बाद पुलिसकर्मी रणवीर को पकड़कर चौकी ले गए. जहां रणवीर के साथ थर्ड डिग्री इस्तेमाल की गई, जिससे रणवीर की हालत काफी खराब हो गई थी. इस पूरी घटना के बाद पुलिस ने रणवीर के साथ हुई मारपीट और उसकी खराब हालत को छिपाने के लिए उसे जंगल में ले जाकर एनकाउंटर के दौरान मारने का दावा कर दिया, लेकिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो सारी कहानी सामने आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रणवीर के शरीर पर 28 चोटों के निशान पाए गए थे. इसके बाद इस पूरे मामले में जांच के आदेश कर दिए गए.
वहीं, रणवीर के परिजनों ने बागपत से देहरादून पहुंच कर इस जांच के खिलाफ विरोध करते हुए सीबीआई जांच की मांग की थी. मामले में राज्य सरकार की तरफ से सीबीसीआईडी की जांच करवाई गई थी. जिस पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. हालांकि इस मामले में दबाव बढ़ता चला गया और सरकार को सीबीआई जांच की सिफारिश करनी पड़ी. मामले में 1 साल बाद 6 जून 2010 को 18 पुलिस कर्मियों को दोषी करार दे दिया गया.
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उत्तराखंड में फर्जी एनकाउंटर के बाद पुलिस कर्मियों के जेल जाने से पुलिस महकमे में भी उसका सीधा असर पड़ा और एनकाउंटर को लेकर राज्य में पुलिस की कार्यशैली ही बदल गई. स्थिति यह है कि रणवीर एनकाउंटर के बाद राज्य में पुलिस ने किसी भी बदमाश को एनकाउंटर के दौरान मार गिराने की हिम्मत नहीं जुटाई. हालांकि, इसे सामान्य रूप से एक इत्तेफाक भी कहा जा सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस जिस तरह से बदमाशों को एनकाउंटर में मार रही है. उसके बाद उत्तराखंड का रणवीर एनकाउंटर एक बार फिर सबके जेहन में ताजा हो गया है. हालांकि, इस मामले में कई पुलिसकर्मियों को जमानत भी मिली हुई है.
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एनकाउंटर को लेकर यदि देशभर के विभिन्न राज्यों का आंकड़ा देखें तो साल 2016 से 2022 तक कुल 6 सालों में 813 लोगों को एनकाउंटर के दौरान ढेर किया गया. इसमें सबसे ज्यादा एनकाउंटर के मामले छत्तीसगढ़ में हुए हैं. जहां 264 एनकाउंटर की गई है. इसके बाद दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का है, जहां 121 अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया है. जबकि बिहार में भी 25 अपराधी को पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर दिया. इन आंकड़ों के बीच उत्तराखंड में पिछले करीब 12 सालों से एक भी एनकाउंटर में किसी अपराधी को ढेर नहीं करने के कई मायने निकाले जा सकते हैं.
एक तरफ से उत्तराखंड की शांत आबोहवा का असर कहा जा सकता है, तो दूसरी तरफ रणवीर एनकाउंटर के बाद पुलिस में हताशा और एनकाउंटर के बाद होने वाली जांच का डर भी माना जा सकता है.