देहरादून: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ दौरे को लेकर प्रदेश की सियासत गर्म है. पीएम का यह दौरा धार्मिक या राजनीतिक है, इसको लेकर बहस जारी है. बहस हो भी क्यों नही, 2022 में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में इस यात्रा का विपक्षी दल राजनीतिक मायने निकाल रहे हैं.
पीएम मोदी का संदेश: केदारनाथ से प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित कर 2022 के साथ 2024 के लिए भी संदेश देने की कोशिश की. यहीं नहीं, उन्होंने ऐसे कई बिंदुओं पर फोकस किया, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की तय लाइन को आगे बढ़ाने का काम किया है.
मोदी दौरे के मायने: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का केदारनाथ दौरा धार्मिक माना जाए या राजनीतिक, इसका जवाब उनके भाषण में ही देखने को मिला. उन्होंने अपने संबोधन में धर्म से लेकर देश प्रेम और केंद्र की नीतियों को जाहिर करने की कोशिश की. अपने भाषण में उन्होंने धर्मगुरुओं, पुजारी और पंडा समाज को संदेश देकर देशभर में हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की. इसके बाद देश प्रेम और सेवा को सैनिकों के सम्मान के साथ अपने भाषण में रखा.
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केदारनाथ दौरे पर सियासी बहस: यही नहीं उत्तराखंड में केदारनाथ पुनर्निर्माण से लेकर दूसरी तमाम योजनाओं को भी अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने जगह दी. उनका निश्चित बिंदुओं पर फोकस कर संबोधन देना देश को कुछ खास संदेश देने वाला था. जिसकी वजह से प्रधानमंत्री दौरे के धार्मिक या राजनीतिक होने की बहस शुरू हो गई. वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री के इस दौरे को धार्मिक ठहराने की कोशिश कर रही है. इसके पीछे बीजेपी के अपने तर्क हैं. इन तर्कों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूर्व से ही केदारनाथ आना, केदारनाथ से उनकी भक्ति और भावना को जोड़ा गया है.
विपक्ष को हर बात में राजनीति दिखती है: बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता शादाब शम्स ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को विपक्ष व्यक्तिगत की जगह राजनीतिक मानता है, तो इसमें क्या किया जा सकता है. विपक्षी दलों को यदि हर बात पर राजनीति दिखती है, तो इसमें भी कुछ नहीं किया जा सकता. जबकि प्रधानमंत्री के धार्मिक और व्यक्तिगत दौरे को कांग्रेस राजनीतिक रूप देकर शिवालयों में जाने को मजबूर दिख रही है.
पीएम का दौरा धार्मिक या राजनीतिक: यूं तो धार्मिक स्थल पर अपनी भावनाओं को प्रकट करना व्यक्तिगत ही माना जाना चाहिए, लेकिन यदि यह दौरा एक खास वक्त और संदेश को देने से जुड़कर किया जाए, तो इस पर सवाल उठना भी लाजमी है. कुछ ऐसी स्थितियों के कारण ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे को भी धार्मिक के बजाय राजनीतिक ज्यादा माना जा रहा है. दरअसल प्रधानमंत्री मोदी भले ही पूर्व से ही केदारनाथ आते रहे हो और उनका लगाव बाबा केदार से रहा हो, लेकिन 2014 से अब तक केदारधाम में प्रधानमंत्री का आगमन एक खास वक्त और संदेश देने के लिए होता हुआ दिखाई दिया है.
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हर बार चुनाव से पहले मोदी का दौरा: 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी बाबा केदार के दर्शन को पहुंचे थे. इसके बाद 2017 में भी प्रधानमंत्री चुनाव के आसपास ही केदारधाम पहुंचे थे. वहीं, 2019 लोकसभा चुनाव में अंतिम चरण के मतदान से पहले प्रधानमंत्री केदारधाम में पहुंचकर गुफा में ध्यानलीन दिखाई दिए. अब 2022 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का उत्तराखंड पहुंचना देवभूमि और उत्तर प्रदेश के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
पीएम दौरे पर कांग्रेस का सवाल: उत्तराखंड कांग्रेस भी इसी वजह से प्रधानमंत्री की यात्रा पर सवाल खड़े कर रही है. कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र भंडारी का कहना है कि यदि पीएम की धार्मिक यात्रा होगी तो इसका स्वागत है, लेकिन चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का आना और लोगों को सपने दिखाना आशंका व्यक्त करता है. प्रधानमंत्री बाबा केदार धाम पहुंचते हैं और लोगों से लिए कई वायदे करते हैं. जबकि धरातल पर कुछ भी नहीं दिखाई देता. इसीलिए प्रदेश की जनता इन वायदों से भी मायूस है. प्रधानमंत्री को पहले 5 साल पहले किए गए वादों को पूरा करना चाहिए, तभी जनता मौजूदा वादों पर विश्वास करेगी.
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पीएम मोदी पर आप हमलावर: प्रधानमंत्री के दौरे से न केवल कांग्रेस बल्कि पहली बार 70 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही आम आदमी पार्टी भी चिंतित दिखाई दे रही है. आप प्रदेश में पहली बार चुनाव लड़ने जा रही है. आप को पता है कि 2017 में मोदी मैजिक के सहारे भाजपा ने उत्तराखंड में ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. लिहाजा इस बार मोदी के इस दौरे को लेकर आम आदमी पार्टी भी आक्रामक दिखाई दे रही है. आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता संजय भट्ट ने कहा पीएम मोदी का उत्तराखंड में स्वागत है, लेकिन वह चुनाव से पहले ही उत्तराखंड के दौरे पर क्यों आते हैं? इस पर उन्हें आपत्ति है. प्रधानमंत्री के तमाम वायदे और उनके दौरों से क्या प्रदेश में बंद पड़े 5000 स्कूलों की समस्या का समाधान हो गया है? राज्य में पलायन से लेकर स्वास्थ्य शिक्षा और बेरोजगारी के मुद्दे पर केंद्र सरकार कितना हल निकाल पाई है? प्रधानमंत्री को उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बदलने से ही फुर्सत नहीं है. इसीलिए इस बार के दौरे में उनके आत्मविश्वास में भी कमी देखी गई.