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CM धामी की घोषणा से फिर गरमाया नए जिलों का मुद्दा, कब शुरू हुआ मामला, जानिए सबकुछ - कब शुरू हुआ मामला

उत्तराखंड में नए जिले बनाए जाने का जिन्न एक बार फिर बाहर आया है, लेकिन नए जिले बनाने की कवायद क्या परवान चढ़ पाएगी और क्या इतना आसान है नए जिले बनाना? साथ ही नए जिलों की जरूरत क्यों है और उससे क्या फायदा होगा? आइए आपको विस्तार से जानकारी देते हैं.

New Districts Formation in Uttarakhand
उत्तराखंड में नए जिलों का जिन्न
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Published : Sep 1, 2022, 5:31 PM IST

Updated : Sep 3, 2022, 7:29 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में नए जिलों के गठन की मांग यूं तो नई नहीं है, लेकिन राजनीतिक रूप से समय-समय पर आवाज उठने के चलते यह मुद्दा वक्त के साथ गर्म होता चला जाता है. साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रदेश में कुछ नए जिले बनाने की घोषणा की थी. जिसके बाद से अभी तक नए जिले बनाए जाने की चर्चाएं हर कार्यकाल में होती रही हैं. इसी कड़ी में एक बार फिर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने के मुद्दे को और बल दे दिया है. बीजेपी संगठन ने प्रदेश में 5 नए संगठनात्मक जिले बना दिए हैं. उसके बाद से ही अब उत्तराखंड में कुछ नए जिले बनाए जाने की चर्चाएं सीएम धामी के बयान के बाद तेज हो गई है.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाईओं के गठन की मांग उठती रही है. 21 साल का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो पाया है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश के नए जिलों के गठन का मामला जहां हर बार सियासत की भेंट चढ़ता रहा तो वहीं अब एक बार फिर से प्रदेश में नए जिले बनाने (New Districts Formation in Uttarakhand) जाने का मुद्दा चर्चाओं में है, जिसे लेकर सियासत भी तेज हो गई.

ये भी पढ़ेंः फिर बाहर निकला नए जिलों का जिन्न, स्पीकर ने बताई 4 डिस्ट्रिक्ट की जरूरत

उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह ये है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूल भूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है. इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई. जिससे न सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन-जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास के अवधारणा के सपना को भी साकार किया जा सके. दरअसल, सूबे में कोटद्वार समेत रानीखेत, प्रतापनगर, नरेंद्रनगर, चकराता, डीडीहाट, खटीमा, रुड़की और पुरोला ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें जिला बनाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है. कई सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनीतिक दलों ने भी इस आवाज को बुलंद किया है.

नए जिलों का जिन्न एक बार फिर आया बाहर.

हालांकि, साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चार नए जिले बनाए जाने की घोषणा तक कर दी थी, जिसमें गढ़वाल मंडल में 2 जिले (कोटद्वार, यमुनोत्री) और कुमाऊं मंडल में 2 जिले (रानीखेत, डीडीहाट) बनाने की बात कही थी. लेकिन निशंक के पद से हटते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इतना ही नहीं इसके बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद तत्कालीन विजय बहुगुणा की सरकार ने इस मामले को राजस्व परिषद की अध्यक्षता में नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन संबंधी आयोग के हवाले कर दिया, लेकिन साल 2016 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बदलने के बाद हरीश रावत सत्ता पर काबिज हुए और उन्होंने एक बार फिर 8 नए जिले बनाने की कवायद शुरू कर एक सियासी दांव खेला. साथ ही नए 8 जिलों (डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, यमुनोत्री, रुड़की, ऋषिकेश) को बनाने का खाका भी तैयार कर लिया था.

क्या बोले सीएम धामी? मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में बीते लंबे समय से नए जिलों की मांग उठती रही है. जिसे देखते हुए अब जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी सरकार राय मशवरा करेगी. उन्होंने कहा है कि नए जिलों के गठन में इंफ्रास्ट्रक्चर समेत क्या-क्या व्यवस्थाएं जुटाने हैं, इस बात का भी मंठन किया जाएगा. छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन को लेकर लंबे अरसे से उत्तराखंड में मांग चलती आ रही है. रुड़की, रामनगर, कोटद्वार, काशीपुर और रानीखेत को जिला बनाए जाने पर विचार किया जाएगा.

वहीं, बीजेपी प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने कहा कि बीजेपी इस बात का पक्ष धर है कि प्रदेश में नए जिले बनाए जाना चाहिए. हालांकि, साल 2011 में भी जब बीजेपी, सरकार में थी, उस दौरान भी चार नए जिले बनाए जाने के पक्षधर में थे, लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों की वजह से नए जिले बनाए जाने का काम अधूरा रह गया, लेकिन एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने पर फोकस किया है. ऐसे में आने वाले समय में प्रदेश में नए जिले बनाए जा सकते हैं. साथ ही पूर्व सीएम हरीश रावत पर तंज कसते हुए कहा कि हरदा भी मुख्यमंत्री थे और वो भी नए जिले का गठन कर सकते थे, लेकिन सुझाव देना आसान होता है और करना बहुत मुश्किल.

सरकार वास्तव में जिला बनाएगी तो कांग्रेस का समर्थनः उत्तराखंड में नए जिले बनाए जाने की चर्चाओं पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि अगर राज्य सरकार वास्तव में जिला बनाना चाहती है तो कांग्रेस उसका समर्थन करेगी, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए अगर मुख्यमंत्री ने ऐसा बयान दिया है तो वो इसके विरोध में है. साथ ही कहा कि जनता शुरू से ही नए जिले की मांग कर रही थी. ऐसे में सरकार को चाहिए कि यह इस पर अपना कदम आगे बढ़ाएं. हालांकि, प्रदेश में 4 नए जिले बनाए जाने का जीओ भी तात्कालिक मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल के कार्यकाल में जारी किया जा चुका है. लिहाजा, अगर कोई मुख्यमंत्री जिला बनाना चाहता है तो वो एक दिन में जिले की घोषणा कर जिला बना सकता है.

सिर्फ चुनावी जुमला साबित हुआ नए जिलों के मुद्दे: सूबे में विधानसभा चुनावों के दौरान नए जिलों के गठन का वादा किया जाता रहा है. न केवल बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से नए जिलों के गठन के वादे किए जाते रहे हैं, बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पहली बार चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी राज्य में 6 नए जिलों के गठन का सपना दिखाया था. उन्होंने काशीपुर को जिला बनाने के लिए सार्वजनिक घोषणा की थी तो वहीं उनकी इच्छा यमुनोत्री, कोटद्वार, रुड़की, डीडीहाट और रानीखेत को भी जिला बनाने की थी. लेकिन आम आदमी पार्टी इस चुनाव में मटियामेट हो गई और नए जिले की बात भी गायब हो गई.

बड़े जिलों में नए जिलों की उठती रही मांगः उत्तराखंड राज्य स्थापना से पहले से ही प्रदेश के कुछ जिले ऐसे रहे, जिनका क्षेत्रफल बेहद ज्यादा था. इसी वजह से दूरदराज और जिला मुख्यालयों से कटे होने की वजह से कई क्षेत्रों में नए जिलों के पुनर्गठन की मांग उठी थी. इसमें खासतौर पर चमोली जिला रहा, जिसका क्षेत्रफल काफी बड़ा था. इस जिले में जिन क्षेत्रों में नए जिलों की मांग उठी, इसमें थराली, गैरसैंण और कर्णप्रयाग क्षेत्र शामिल हैं. इसके अलावा हरिद्वार जिले में भी रुड़की के लिए मांग उठाई गई है. उधर, उत्तरकाशी में यमुनोत्री, पिथौरागढ़ में डीडीहाट और पौड़ी जिले में कोटद्वार समेत उधम सिंह नगर में काशीपुर को जिला बनाए जाने की मांग उठती रही है.

ये भी पढ़ेंः राजनीति का शिकार हुआ नए जिलों का सपना!

डीडीहाट जिला बनाने की मांग है काफी पुरानीः गौर हो कि साल 1962 से ही पिथौरागढ़ से अलग डीडीहाट जिला बनाने की मांग (Didihat District Demand) उठती रही है. लगातार उठती मांग को देखते हुए यूपी में मुलायम सरकार ने जिले को लेकर दीक्षित आयोग बनाया था. निशंक सरकार में 15 अगस्त 2011 को डीडीहाट समेत रानीखेत, यमुनोत्री और कोटद्वार को जिला बनाने की घोषणा की थी. चुनावी साल में हुई इस घोषणा का शासनादेश भी जारी कर दिया गया था, लेकिन गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ. नतीजा ये रहा कि जीओ जारी होने के 10 साल बाद भी चारों जिले अस्तित्व में नहीं आ पाए. डीडीहाट जिले के सवाल पर बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दामन पर भी दाग है. साल 2005 में 36 दिनों तक चले अनशन के बाद तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने डीडीहाट को जिला बनाने का ऐलान किया था, लेकिन ये ऐलान भी हवा-हवाई रहा. इस बार के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भी यह मुद्दा उठा, लेकिन चुनाव खत्म हुए तो यह मुद्दा भी गायब हुआ.

पुरोला या यमुनोत्री को जिला बनाने की मांगः उत्तरकाशी जिले के रवांई घाटी के लोगों ने साल 1960 से ही नौगांव, पुरोला व मोरी ब्लॉक को मिलाकर पृथक जिला बनाने की मांग शुरू कर दी थी, लेकिन किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. राज्य गठन के बाद भी यहां कई बार महीनों तक आंदोलन चलते रहे, लेकिन सरकारी तंत्र मूकदर्शक बना रहा. प्रदेश में चार नए जिलों का गठन करने की घोषणा हुई थी, जिसमें यमुनोत्री को जिला बनाने की मांग (Yamunotri District Demand) भी शामिल थी, लेकिन वो अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है. हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे मोरी ब्लॉक के सुदूरवर्ती क्षेत्र के लोग आज भी दो दिन में जिला मुख्यालय उत्तरकाशी पहुंचते हैं.

वित्तीय भार नए जिलों के लिए सबसे बड़ा रोड़ाः उत्तराखंड में आयोजनागत मद पहले ही प्रदेश के लिए मुसीबत बना हुआ है. कुल बजट का 80% तक आयोजनागत में खर्च किया जाता है. जिससे प्रदेश में योजनाओं और विकास के लिए पैसा ही नहीं बचता. ऐसे हालातों में नए जिलों के पुनर्गठन पर राज्य के लिए पैसा खर्च कर पाना नामुमकिन दिखता है. इतना ही नहीं नए जिलों के गठन से आयोजनागत खर्च भी बेहद ज्यादा बढ़ जाएगा. ऐसे में सरकार के लिए नए जिलों का पुनर्गठन टेढ़ी खीर होगा.

कॉर्पस फंड बनाने का हो चुका था फैसलाः हरीश रावत के शासनकाल में सरकार ने जनवरी 2017 को नए जिलों के गठन के लिए एक हजार करोड़ की धनराशि से कॉर्पस फंड बनाने का फैसला तक कर दिया था. लेकिन मार्च 2017 में सत्ता पर काबिज हुई त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली सरकार की ओर से राजस्व परिषद की अध्यक्षता में आयोग का गठन और नए जिलों के निर्माण के लिए एक हजार करोड़ के कॉर्पस फंड के स्थापना के बाद भी इस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया. सरकार ने नए जिलों के गठन का पूरा मामला जिला पुनर्गठन आयोग पर ही छोड़ दिया कि जिला पुनर्गठन आयोग ही तय करेगा कि कितने जिले और कब बनाए जाने हैं.

एक जिले के निर्माण में 150 से 200 करोड़ के व्यय का आकलनः साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के शासनकाल में नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग ने एक नए जिले के निर्माण में करीब 150 से 200 करोड़ रुपए के व्यय का आकलन किया था. यानी उस दौरान 4 नए जिले बनाने की बात चल रही थी. लिहाजा, उस दौरान चार नए जिले बनाए जाते तो राज्य पर करीब 600 से 800 करोड़ तक का अतिरिक्त भार पड़ता. ऐसे में अब जब इस बात को 4 साल का समय बीत गया है, तो अब 4 नए जिलों का गठन किया जाता है तो ऐसे में साल 2016 में अनुमानित व्यय से अधिक खर्च आना लाजिमी है.

नए जिलों के गठन से बढ़ेगा करोड़ों का अतिरिक्त भारः अगर नए जिले बनाए जाते हैं तो उसमें जिलाधिकारी, पुलिस कप्तान के साथ ही इनका पूरा तंत्र और ऑफिस, गाड़ी समेत तमाम खर्चों का व्यय बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं जिला स्तर के सभी विभागों में पद भी सृजित किए जाएंगे, जिसके बाद उनके कार्यालय समेत अन्य खर्चों का अतिरिक्त भार सरकार को झेलना पड़ेगा. जिससे सालाना करोड़ों रुपए का खर्च बढ़ जाएगा. लेकिन वर्तमान राज्य की हालात देखें तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बाजार से कर्ज उठाना पड़ रहा है. अगर कर्ज लेकर घी पीने जैसी नीति रही तो यह भविष्य में नुकसानदेह भी साबित हो सकती है.

बहरहाल, उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में नई छोटी-छोटी इकाइयां बनाए जाने की मांग कई मर्तबा उठ चुकी है. यही वजह है कि साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिले बनाए जाने की घोषणा की. इतना ही नहीं नए जिले के लिए जीओ भी जारी कर दिया गया था. बावजूद इसके नए जिले बनाए जाने का प्रस्ताव राजनीति की भेंट चढ़ गया. अब एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने की बात कही है. अब देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार प्रदेश में चार नए जिले बनाए जाते हैं या फिर पहले की तरह इस बार भी नए जिले बनाए जाने का मुद्दा कुछ दिन चर्चाओं में रहने के बाद राजनीति की भेंट चढ़ जाएगी?

ये भी पढ़ेंः पुरोला को पृथक जिला बनाने की मांग तेज, ढोल-नगाड़ों के साथ सड़क पर उतरे लोग

देहरादूनः उत्तराखंड में नए जिलों के गठन की मांग यूं तो नई नहीं है, लेकिन राजनीतिक रूप से समय-समय पर आवाज उठने के चलते यह मुद्दा वक्त के साथ गर्म होता चला जाता है. साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने प्रदेश में कुछ नए जिले बनाने की घोषणा की थी. जिसके बाद से अभी तक नए जिले बनाए जाने की चर्चाएं हर कार्यकाल में होती रही हैं. इसी कड़ी में एक बार फिर से मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने के मुद्दे को और बल दे दिया है. बीजेपी संगठन ने प्रदेश में 5 नए संगठनात्मक जिले बना दिए हैं. उसके बाद से ही अब उत्तराखंड में कुछ नए जिले बनाए जाने की चर्चाएं सीएम धामी के बयान के बाद तेज हो गई है.

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही छोटी-छोटी प्रशासनिक इकाईओं के गठन की मांग उठती रही है. 21 साल का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी धरातल पर कोई कार्य नहीं हो पाया है. विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस पहाड़ी प्रदेश के नए जिलों के गठन का मामला जहां हर बार सियासत की भेंट चढ़ता रहा तो वहीं अब एक बार फिर से प्रदेश में नए जिले बनाने (New Districts Formation in Uttarakhand) जाने का मुद्दा चर्चाओं में है, जिसे लेकर सियासत भी तेज हो गई.

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उत्तराखंड में नए जिले गठन की मांग के पीछे की मुख्य वजह ये है कि प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में विकास और मूल भूत जरूरतों की अलग-अलग मांग रही है. इसे देखते हुए राज्य गठन के दौरान ही छोटी-छोटी इकाइयां बनाने की मांग की गई. जिससे न सिर्फ प्रशासनिक ढांचा जन-जन तक पहुंच सके, बल्कि प्रदेश के विकास के अवधारणा के सपना को भी साकार किया जा सके. दरअसल, सूबे में कोटद्वार समेत रानीखेत, प्रतापनगर, नरेंद्रनगर, चकराता, डीडीहाट, खटीमा, रुड़की और पुरोला ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें जिला बनाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है. कई सामाजिक संगठनों के साथ ही राजनीतिक दलों ने भी इस आवाज को बुलंद किया है.

नए जिलों का जिन्न एक बार फिर आया बाहर.

हालांकि, साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चार नए जिले बनाए जाने की घोषणा तक कर दी थी, जिसमें गढ़वाल मंडल में 2 जिले (कोटद्वार, यमुनोत्री) और कुमाऊं मंडल में 2 जिले (रानीखेत, डीडीहाट) बनाने की बात कही थी. लेकिन निशंक के पद से हटते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. इतना ही नहीं इसके बाद राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद तत्कालीन विजय बहुगुणा की सरकार ने इस मामले को राजस्व परिषद की अध्यक्षता में नई प्रशासनिक इकाइयों के गठन संबंधी आयोग के हवाले कर दिया, लेकिन साल 2016 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री बदलने के बाद हरीश रावत सत्ता पर काबिज हुए और उन्होंने एक बार फिर 8 नए जिले बनाने की कवायद शुरू कर एक सियासी दांव खेला. साथ ही नए 8 जिलों (डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, यमुनोत्री, रुड़की, ऋषिकेश) को बनाने का खाका भी तैयार कर लिया था.

क्या बोले सीएम धामी? मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य में बीते लंबे समय से नए जिलों की मांग उठती रही है. जिसे देखते हुए अब जनप्रतिनिधियों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी सरकार राय मशवरा करेगी. उन्होंने कहा है कि नए जिलों के गठन में इंफ्रास्ट्रक्चर समेत क्या-क्या व्यवस्थाएं जुटाने हैं, इस बात का भी मंठन किया जाएगा. छोटी प्रशासनिक इकाइयों के गठन को लेकर लंबे अरसे से उत्तराखंड में मांग चलती आ रही है. रुड़की, रामनगर, कोटद्वार, काशीपुर और रानीखेत को जिला बनाए जाने पर विचार किया जाएगा.

वहीं, बीजेपी प्रदेश महामंत्री आदित्य कोठारी ने कहा कि बीजेपी इस बात का पक्ष धर है कि प्रदेश में नए जिले बनाए जाना चाहिए. हालांकि, साल 2011 में भी जब बीजेपी, सरकार में थी, उस दौरान भी चार नए जिले बनाए जाने के पक्षधर में थे, लेकिन कुछ राजनीतिक कारणों की वजह से नए जिले बनाए जाने का काम अधूरा रह गया, लेकिन एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने पर फोकस किया है. ऐसे में आने वाले समय में प्रदेश में नए जिले बनाए जा सकते हैं. साथ ही पूर्व सीएम हरीश रावत पर तंज कसते हुए कहा कि हरदा भी मुख्यमंत्री थे और वो भी नए जिले का गठन कर सकते थे, लेकिन सुझाव देना आसान होता है और करना बहुत मुश्किल.

सरकार वास्तव में जिला बनाएगी तो कांग्रेस का समर्थनः उत्तराखंड में नए जिले बनाए जाने की चर्चाओं पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि अगर राज्य सरकार वास्तव में जिला बनाना चाहती है तो कांग्रेस उसका समर्थन करेगी, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए अगर मुख्यमंत्री ने ऐसा बयान दिया है तो वो इसके विरोध में है. साथ ही कहा कि जनता शुरू से ही नए जिले की मांग कर रही थी. ऐसे में सरकार को चाहिए कि यह इस पर अपना कदम आगे बढ़ाएं. हालांकि, प्रदेश में 4 नए जिले बनाए जाने का जीओ भी तात्कालिक मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल के कार्यकाल में जारी किया जा चुका है. लिहाजा, अगर कोई मुख्यमंत्री जिला बनाना चाहता है तो वो एक दिन में जिले की घोषणा कर जिला बना सकता है.

सिर्फ चुनावी जुमला साबित हुआ नए जिलों के मुद्दे: सूबे में विधानसभा चुनावों के दौरान नए जिलों के गठन का वादा किया जाता रहा है. न केवल बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से नए जिलों के गठन के वादे किए जाते रहे हैं, बल्कि 2022 के विधानसभा चुनाव में तो पहली बार चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने भी राज्य में 6 नए जिलों के गठन का सपना दिखाया था. उन्होंने काशीपुर को जिला बनाने के लिए सार्वजनिक घोषणा की थी तो वहीं उनकी इच्छा यमुनोत्री, कोटद्वार, रुड़की, डीडीहाट और रानीखेत को भी जिला बनाने की थी. लेकिन आम आदमी पार्टी इस चुनाव में मटियामेट हो गई और नए जिले की बात भी गायब हो गई.

बड़े जिलों में नए जिलों की उठती रही मांगः उत्तराखंड राज्य स्थापना से पहले से ही प्रदेश के कुछ जिले ऐसे रहे, जिनका क्षेत्रफल बेहद ज्यादा था. इसी वजह से दूरदराज और जिला मुख्यालयों से कटे होने की वजह से कई क्षेत्रों में नए जिलों के पुनर्गठन की मांग उठी थी. इसमें खासतौर पर चमोली जिला रहा, जिसका क्षेत्रफल काफी बड़ा था. इस जिले में जिन क्षेत्रों में नए जिलों की मांग उठी, इसमें थराली, गैरसैंण और कर्णप्रयाग क्षेत्र शामिल हैं. इसके अलावा हरिद्वार जिले में भी रुड़की के लिए मांग उठाई गई है. उधर, उत्तरकाशी में यमुनोत्री, पिथौरागढ़ में डीडीहाट और पौड़ी जिले में कोटद्वार समेत उधम सिंह नगर में काशीपुर को जिला बनाए जाने की मांग उठती रही है.

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डीडीहाट जिला बनाने की मांग है काफी पुरानीः गौर हो कि साल 1962 से ही पिथौरागढ़ से अलग डीडीहाट जिला बनाने की मांग (Didihat District Demand) उठती रही है. लगातार उठती मांग को देखते हुए यूपी में मुलायम सरकार ने जिले को लेकर दीक्षित आयोग बनाया था. निशंक सरकार में 15 अगस्त 2011 को डीडीहाट समेत रानीखेत, यमुनोत्री और कोटद्वार को जिला बनाने की घोषणा की थी. चुनावी साल में हुई इस घोषणा का शासनादेश भी जारी कर दिया गया था, लेकिन गजट नोटिफिकेशन नहीं हुआ. नतीजा ये रहा कि जीओ जारी होने के 10 साल बाद भी चारों जिले अस्तित्व में नहीं आ पाए. डीडीहाट जिले के सवाल पर बीजेपी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के दामन पर भी दाग है. साल 2005 में 36 दिनों तक चले अनशन के बाद तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने डीडीहाट को जिला बनाने का ऐलान किया था, लेकिन ये ऐलान भी हवा-हवाई रहा. इस बार के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भी यह मुद्दा उठा, लेकिन चुनाव खत्म हुए तो यह मुद्दा भी गायब हुआ.

पुरोला या यमुनोत्री को जिला बनाने की मांगः उत्तरकाशी जिले के रवांई घाटी के लोगों ने साल 1960 से ही नौगांव, पुरोला व मोरी ब्लॉक को मिलाकर पृथक जिला बनाने की मांग शुरू कर दी थी, लेकिन किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. राज्य गठन के बाद भी यहां कई बार महीनों तक आंदोलन चलते रहे, लेकिन सरकारी तंत्र मूकदर्शक बना रहा. प्रदेश में चार नए जिलों का गठन करने की घोषणा हुई थी, जिसमें यमुनोत्री को जिला बनाने की मांग (Yamunotri District Demand) भी शामिल थी, लेकिन वो अभी तक ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है. हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगे मोरी ब्लॉक के सुदूरवर्ती क्षेत्र के लोग आज भी दो दिन में जिला मुख्यालय उत्तरकाशी पहुंचते हैं.

वित्तीय भार नए जिलों के लिए सबसे बड़ा रोड़ाः उत्तराखंड में आयोजनागत मद पहले ही प्रदेश के लिए मुसीबत बना हुआ है. कुल बजट का 80% तक आयोजनागत में खर्च किया जाता है. जिससे प्रदेश में योजनाओं और विकास के लिए पैसा ही नहीं बचता. ऐसे हालातों में नए जिलों के पुनर्गठन पर राज्य के लिए पैसा खर्च कर पाना नामुमकिन दिखता है. इतना ही नहीं नए जिलों के गठन से आयोजनागत खर्च भी बेहद ज्यादा बढ़ जाएगा. ऐसे में सरकार के लिए नए जिलों का पुनर्गठन टेढ़ी खीर होगा.

कॉर्पस फंड बनाने का हो चुका था फैसलाः हरीश रावत के शासनकाल में सरकार ने जनवरी 2017 को नए जिलों के गठन के लिए एक हजार करोड़ की धनराशि से कॉर्पस फंड बनाने का फैसला तक कर दिया था. लेकिन मार्च 2017 में सत्ता पर काबिज हुई त्रिवेंद्र सरकार ने पिछली सरकार की ओर से राजस्व परिषद की अध्यक्षता में आयोग का गठन और नए जिलों के निर्माण के लिए एक हजार करोड़ के कॉर्पस फंड के स्थापना के बाद भी इस दिशा में कोई कदम आगे नहीं बढ़ाया. सरकार ने नए जिलों के गठन का पूरा मामला जिला पुनर्गठन आयोग पर ही छोड़ दिया कि जिला पुनर्गठन आयोग ही तय करेगा कि कितने जिले और कब बनाए जाने हैं.

एक जिले के निर्माण में 150 से 200 करोड़ के व्यय का आकलनः साल 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के शासनकाल में नए जिलों के गठन के लिए बनाए गए आयोग ने एक नए जिले के निर्माण में करीब 150 से 200 करोड़ रुपए के व्यय का आकलन किया था. यानी उस दौरान 4 नए जिले बनाने की बात चल रही थी. लिहाजा, उस दौरान चार नए जिले बनाए जाते तो राज्य पर करीब 600 से 800 करोड़ तक का अतिरिक्त भार पड़ता. ऐसे में अब जब इस बात को 4 साल का समय बीत गया है, तो अब 4 नए जिलों का गठन किया जाता है तो ऐसे में साल 2016 में अनुमानित व्यय से अधिक खर्च आना लाजिमी है.

नए जिलों के गठन से बढ़ेगा करोड़ों का अतिरिक्त भारः अगर नए जिले बनाए जाते हैं तो उसमें जिलाधिकारी, पुलिस कप्तान के साथ ही इनका पूरा तंत्र और ऑफिस, गाड़ी समेत तमाम खर्चों का व्यय बढ़ जाएगा. इतना ही नहीं जिला स्तर के सभी विभागों में पद भी सृजित किए जाएंगे, जिसके बाद उनके कार्यालय समेत अन्य खर्चों का अतिरिक्त भार सरकार को झेलना पड़ेगा. जिससे सालाना करोड़ों रुपए का खर्च बढ़ जाएगा. लेकिन वर्तमान राज्य की हालात देखें तो सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए बाजार से कर्ज उठाना पड़ रहा है. अगर कर्ज लेकर घी पीने जैसी नीति रही तो यह भविष्य में नुकसानदेह भी साबित हो सकती है.

बहरहाल, उत्तराखंड राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश में नई छोटी-छोटी इकाइयां बनाए जाने की मांग कई मर्तबा उठ चुकी है. यही वजह है कि साल 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने चार नए जिले बनाए जाने की घोषणा की. इतना ही नहीं नए जिले के लिए जीओ भी जारी कर दिया गया था. बावजूद इसके नए जिले बनाए जाने का प्रस्ताव राजनीति की भेंट चढ़ गया. अब एक बार फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नए जिले बनाए जाने की बात कही है. अब देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार प्रदेश में चार नए जिले बनाए जाते हैं या फिर पहले की तरह इस बार भी नए जिले बनाए जाने का मुद्दा कुछ दिन चर्चाओं में रहने के बाद राजनीति की भेंट चढ़ जाएगी?

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Last Updated : Sep 3, 2022, 7:29 PM IST
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