देहरादूनः स्वास्थ्य महकमे में दवा खरीद को लेकर ऑडिट की आपत्तियों से हड़कंप मचा हुआ है. उत्तराखंड सरकार दूसरे राज्यों के मुकाबले दवाइयों को करीब दोगुने दामों में खरीद रही है. रिपोर्ट के मुताबिक दो करोड़ से ज्यादा की दवाईयां खरीदी गई है. जो अन्य राज्यों के मुकाबले काफी महंगे हैं. ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद खरीद को लेकर आपत्ति जताई गई है. वहीं, मामले पर अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं.
उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे में दवाइयों की खरीद को लेकर गड़बड़झाला अक्सर सुर्खियों में रहा है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस विभाग में ताजा मामला ऑडिट रिपोर्ट से जुड़ा है. जिसमें दूसरे राज्यों के मुकाबले दवाइयां करीब दोगुने दामों में खरीदे जाने की आपत्ति जताई गई है. हालांकि, नियमों की बाध्यता के चलते इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी की जा रही है. उधर, दवा खरीद को लेकर कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं.
बता दें कि केंद्रीय सरकारी क्षेत्र की दवा कंपनियों से ही 103 दवाओं को खरीदे जाने की बाध्यता है, लेकिन हाल ही में ही करीब दो करोड़ की दवाएं खरीदी गई हैं. ऑडिट में खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड सरकार को यह दवाईयां काफी महंगी पड़ रही है. इतना ही नहीं दूसरे राज्यों के मुकाबले उत्तराखंड उन्हीं दवाओं पर दुगुना पैसा खर्च कर रहा है. बताया जा रहा है कि राजस्थान ने कॉरपोरेशन बनाकर दवाओं को काफी सस्ते रेट में खरीदा है. जबकि, वही दवाएं उत्तराखंड को काफी महंगी पड़ रही है.
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स्वास्थ्य महकमा बिचोलिये के जरिये लेता है दवाएं
दवा खरीद को लेकर सरकार की नीतियां ही संदेह के घेरे में है. दरअसल, स्वास्थ्य महकमा केंद्रीय सरकारी दवा कंपनियों से सीधे दवा खरीदने के बजाय बिचौलिए के जरिए दवाओं की खरीद करता है. जिससे इसका मोटा मुनाफा बिचौलियों के जेब में जाता है. जबकि, सरकार केंद्रीय दवा कंपनियों से सीधे खरीद करें तो काफी हद तक उत्तराखंड का पैसा दवा खरीद में बच सकता है.
वहीं, मामले पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि राज्य सरकार कॉरपोरेशन बनाए जाने पर विचार कर रही है और दवा के महंगी खरीद को लेकर भी समीक्षा करने के निर्देश दिए हैं. ऐसे में प्रदेश में दवा खरीद को लेकर कॉरपोरेशन बनाए जाने की भी संभावना जताई जा रही है.
उधर, ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद न केवल बिचौलियों की मुनाफाखोरी पर एक बार फिर सवाल खड़े होने लगे हैं. बल्कि, केंद्रीय सरकारी कंपनियों को लेकर बनाए गए नियम भी संदेह के घेरे में हैं. ऐसा नहीं है कि राज्य में महंगी दवा खरीद को लेकर अधिकारियों और नेताओं को जानकारी नहीं है. लंबे समय से इन व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े होने के बावजूद भी आज तक मामले पर कोई बदलाव नहीं किया गया है.