देहरादून: हर चुनौती को स्वीकार करने और उस पर जीत पाने की ललक प्रकाश पंत के भीतर अंतिम क्षणों तक थी. इसी दृढ़ता की बदौलत प्रकाश पंत ने मौत से जंग नहीं हारी, वे आखिरी वक्त तक मौत के सामने पहाड़ की तरह खड़े रहे. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. अंतिम वक्त पर प्रकाश पंत ने अपने इस संघर्ष को कलम के जरिए कोरे कागज पर उकेरा.
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जीवन के हर पल को सिद्धांतों के साथ जीने वाले प्रकाश पंत अब हमारे बीच में नहीं है, लेकिन जाते-जाते भी उन्होंने समाज को एक ऐसा संदेश दिया जिसे हर किसी को अपनाना चाहिए. यह संदेश है संघर्ष का. अपने जीवन के अंतिम पलों में भी प्रकाश पंत संघर्ष से पीछे नहीं हटे. अंतिम वक्त तक भी वह खुद के अंदर प्रकाश को ढूंढते रहे. उस ज्योति को जो जिंदगी की तरफ ले जाती थी.
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आखरी वक्त पर प्रकाश पंत ने अपने उसी संघर्ष को खुद की कलम से कोरे कागज पर बयां किया. खुद की लिखी चार लाइनों में ही प्रकाश पंत ने संघर्ष के जरिए जीत का भरोसा जाहिर किया तो समाज को कभी हार न माने का भी संदेश दिया था. मौत से संघर्ष करते प्रकाश पंत की वह चार लाइन जो किसी के लिए भी प्रेरणा बन सकती हैं.
मैं जीत कर आऊंगा
जन्म के साथ संघर्ष,
हर पड़ाव पर संघर्ष,
आज एक और संघर्ष,
मैं जीत कर आऊंगा,
मैं तुझे हरा कर आऊंगा,
हां मैं जीत कर आऊंगा
प्रकाश पंत
यह उस शख्स की लिखी चार लाइनें हैं, जो शायद खुद को मौत के बेहद करीब महसूस कर रहा था. यह खुद पर विश्वास ही था कि जहां डॉक्टर हार मान चुके थे, लेकिन प्रकाश पंत संघर्ष के बिना हार मानने को कतई तैयार नहीं थे. उन्हें विश्वास था कि उनका संघर्ष उन्हें अंधेरे से प्रकाश की तरफ ले जाएगा और वह बेरहम मौत की लड़ाई को आखिरकार जीत कर ही रहेंगे. लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था..अंत में प्रकाश पंत एक ऐसे अंधेरे में चले गए जहां से वापस नहीं आया जा सकता.