देहरादून: 'जब रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा था'. ऐसा ही कुछ हाल इस वक्त पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत का है. जब कैप्टन अमरिंदर पंजाब छोड़ दिल्ली जा रहे थे, जिस वक्त सिद्धू अध्यक्ष पद छोड़ पंजाब की राजनीति में हड़कंप मचा रहे थे, उस वक्त पंजाब प्रभारी सोशल मीडिया पर अपनी अलग ही पाठशाला चलाए हुए थे. शायद हरीश रावत को इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था, कि पंजाब में आखिरकार हो क्या रहा है ? पंजाब कांग्रेस में उठापटक के बीच क्यों हरीश रावत लोगों को अपनी कर्मगाथा सुनाने में लगे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत उत्तराखंड की राजनीति का वो पन्ना है, जिसे पढ़े बिना उत्तराखंड की राजनीति को समझा नहीं जा सकता. उत्तराखंड की राजनीति में हरीश रावत का एक बड़ा कद है. राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद हरीश रावत का कद और अधिक बढ़ गया था, क्योंकि हरीश रावत एक जाना-माना चेहरा हैं, जिन्हें उत्तराखंड में राजनीतिकार के रूप में जाना जाता है. साल 2016 में तमाम हथकंडे अपनाकर हरीश रावत अपनी सरकार बचाने में कामयाब हुए, जिसके चलते आलाकमान ने उन्हें पंजाब की जिम्मेदारी सौंपी थी.
अलाकमान ने हरीश रावत पर जताया भरोसा: पंजाब में पिछले कुछ महीनों से कुछ ऐसे समीकरण बनते नजर आ रहे थे जिसके चलते आलाकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पर भरोसा जताते हुए उन्हें पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी थी. आलाकमान को शायद भरोसा था कि हरीश रावत पंजाब की स्थितियां सामान्य कर देंगे लेकिन ऐसा ना हो सका. कांग्रेस को पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ा. नेतृत्व परिवर्तन के बाद पंजाब की स्थितियां सामान्य होती कि इससे पहले ही पंजाब के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. दो मंत्रियों ने इस्तीफे दे दिए. उधर, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर दिल्ली में डेरा डाले बैठे हुए हैं.
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पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते हैं हरीश रावत: पंजाब कांग्रेस में जारी उठापटक के बीच हरीश रावत को सक्रिय भूमिका में नजर आना चाहिए लेकिन वो इन सब से दूर-दूर सोशल मीडिया के माध्यम से जनता को अपनी गाथा सुनाने में लगे हुए हैं. जिसे देखकर यही लगता है कि पंजाब में जो हालात है, पंजाब प्रभारी हरीश रावत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. उनको फर्क पड़ेगा भी क्यों क्योंकि हरीश रावत पहले ही पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त करने की बात कह चुके हैं, लेकिन अभी तक आलाकमान ने ऐसा कोई निर्णय नहीं लिया है.
हरीश रावत हैं 'घाघ' पॉलिटिशियन: वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि इस समय पंजाब कांग्रेस संकट में है. वहीं, उत्तराखंड में अगले साल चुनाव होना है. ऐसे में हरीश रावत के कंधों पर दोहरी जिम्मेदारी है. अगर हरीश रावत पंजाब में बिजी रहेंगे, तो उत्तराखंड में कांग्रेस को कौन संभालेगा. यही वजह है कि हरीश रावत एक 'घाघ' पॉलिटिशन की तरह न सिर्फ सोशल मीडिया बल्कि भाग-दौड़कर अपनी छवि को बरकरार रखना चाहते हैं.
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पंजाब कांग्रेस का बंटाधार: भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता नवीन ठाकुर ने कहा है कि हरीश रावत के रहते पंजाब में कांग्रेस का बंटाधार हो गया लेकिन हरीश रावत सोशल मीडिया के माध्यम से उत्तराखंड की जनता को अपनी गाथा सुनाने में व्यस्त हैं. कुछ दिनों पहले हरीश रावत ने पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिद्धू के चेहरे पर चुनाव लड़ने की बात कही थी, लेकिन अब नवजोत सिद्धू ने वहां से इस्तीफा सौंप दिया है. उन्होंने कहा कि यह हरीश रावत और उनकी पार्टी का निजी मामला है लेकिन हरीश रावत कुछ भी कर लें, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में भाजपा ही सत्ता पर काबिज होगी.
पंजाब को संकट से उबारेंगे हरीश रावत: कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि सोशल मीडिया के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जो अपनी गाथा, बयां कर रहे हैं वह सिर्फ उत्तराखंड के संबंध में हैं. रही बात पंजाब की तो हरीश रावत अपने दायित्वों का निर्वहन सही ढंग से कर रहे हैं. हरीश रावत पिछले 2 दिन से दिल्ली में मौजूद हैं और नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. ताकि पंजाब की स्थितियों को कंट्रोल किया जा सके. उन्होंने कहा कि राजनीति में ऐसा होता रहा है कि कुछ लोग आते हैं, तो कुछ लोग जाते हैं. उन्हें उम्मीद है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पंजाब में उपजी स्थितियों को संभालने में कामयाब होंगे.