देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 80% हिस्सेदारी सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की है. इसके बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से देहरादून काफी हद तक निजी स्वास्थ्य संस्थानों पर निर्भर है. आसान शब्दों में कहें तो पिछले 22 सालों में उत्तराखंड स्वास्थ्य के क्षेत्र में जितना भी विकास कर पाया, उसमें अधिकतर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं देहरादून में ही खड़ी की गई हैं. बड़ी बात यह भी है कि देहरादून के शहरी क्षेत्र को छोड़कर बाकी इलाकों में हालात कुछ खास ठीक नहीं दिखते. बस गनीमत यह है कि निजी क्षेत्रों ने मोर्चा संभाल कर देहरादून वासियों की तबीयत को नासाज होने से बचाया हुआ है.
सरकारी अस्पताल बने रेफरल सेंटर: उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों को रेफरल सेंटर कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा. गिनती के इक्का-दुक्का सरकारी अस्पताल ही हैं, जहां कुछ छोटे ऑपरेशन और गिनती की बीमारी का इलाज किया जा रहा है. देहरादून में दून मेडिकल कॉलेज और ऋषिकेश स्थित भारत सरकार के एम्स पर ही इस लिहाज से सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. वह बात अलग है कि यहां पर मरीजों का भारी दबाव होने के चलते अधिकतर मरीजों को निजी स्वास्थ्य संस्थानों की तरफ रुख करना पड़ता है. सबसे पहले जानते हैं कि देहरादून में सरकारी अस्पतालों की क्या है स्थिति है.
अस्पताल ढेर, इलाज में देर: देहरादून जिले में अस्पतालों की पर्याप्त संख्या दिखाई देती है. लेकिन इन अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं को पूरी तरह से विकसित नहीं किए जाने के कारण देहरादून शहर को छोड़कर बाकी जगह पर हालात बहुत अच्छे नहीं दिखाई देते हैं. खास तौर पर जिले के चकराता, रायपुर और विकासनगर क्षेत्रों में मेटरनिटी सेंटर की बेहद ज्यादा जरूरत महसूस की जाती है. इस बात को खुद देहरादून के चीफ मेडिकल ऑफिसर मनोज उप्रेती भी मानते हैं.
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देहरादून जिले के दूरस्थ इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाएं खस्ताहाल: देहरादून जिले में चकराता, विकासनगर के साथ ही टिहरी जिले से लगते हुए क्षेत्रों और डोईवाला क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी दिखाई देती है. यहां पर स्वास्थ्य केंद्र स्थापित तो किए गए हैं लेकिन सामान्य बीमारी के इलाज तक ही यह केंद्र सीमित है. किसी गंभीर बीमारी या बड़े ऑपरेशन की स्थिति में मरीजों को ऋषिकेश एम्स या देहरादून दून मेडिकल कॉलेज के लिए ही रेफर होना होता है. हालांकि जो लोग सरकारी अस्पतालों में पहुंचते हैं, उनका मानना है कि सरकारी अस्पतालों से गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को भारी राहत मिलती है. हालांकि अस्पतालों में भारी भीड़ और कुछ सुविधाओं की शिकायत भी मरीजों को रहती है.
65 फीसदी मरीज प्राइवेट अस्पतालों के भरोसे: देहरादून जिले में निजी सेक्टर ने स्वास्थ्य सुविधाओं को संभाला हुआ है. राज्य में मरीजों का आनुपातिक आकलन करें तो करीब 65% मरीज अब भी देहरादून जिले में निजी अस्पतालों में इलाज करवाते हैं. करीब 35% मरीज ही एम्स और दून मेडिकल कॉलेज समेत दूसरे सरकारी अस्पतालों में सेवाएं ले पाते हैं. इसकी बड़ी वजह सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का ना होना है. मरीजों की भीड़ में अव्यवस्थाओं का होना भी एक बड़ी वजह है. दूसरी तरफ निजी चिकित्सालयों में बेहतर फैसिलिटी मिलने के कारण कुछ मध्यमवर्गीय परिवार और इससे ऊपर का वर्ग निजी अस्पतालों की तरफ ज्यादा रुख करता है. इससे भी बड़ी वजह यह है कि केंद्र सरकार की अटल आयुष्मान योजना के साथ ही राज्य की आयुष्मान योजना के चलते मरीज निजी अस्पतालों में भी अपना इलाज करवा पाते हैं.
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निजी अस्पतालों की मोटी फीस तोड़ती है कमर: निजी अस्पताल भले ही देहरादून जिले में मरीजों की बड़ी संख्या को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए अहम योगदान निभा रहे हों, लेकिन यहां मिलने वाला महंगा इलाज मरीजों की जेब पर भारी पड़ता है. खास तौर पर चिकित्सकों द्वारा करवाए जाने वाले टेस्ट तो मरीजों की कमर ही तोड़ देते हैं. निजी चिकित्सालय में स्वास्थ्य सुविधाओं का अपडेट होना और सरकारी अस्पतालों का पुराने ढर्रे पर चलना मरीजों को निजी अस्पतालों की तरफ धकेलता है.
IAS अफसरों के निर्णय खराब स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जिम्मेदार- डॉक्टर केपी जोशी: वरिष्ठ फिजीशियन केपी जोशी कहते हैं कि सरकारी सिस्टम में अनुभवी चिकित्सकों की राय लिए बिना एसी कमरों से आईएएस अधिकारियों का निर्णय लेना स्वास्थ्य सुविधाओं के खराब हालात की वजह है. वह कहते हैं कि सरकार के साथ-साथ निजी अस्पताल संचालकों की भी मरीजों को लेकर बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन सरकार को भी चिकित्सकों पर लगने वाले विभिन्न टैक्स को कम करना चाहिए. जिसका सीधा असर मरीजों को निजी अस्पताल में मिलने वाले महंगे इलाज पर दिखाई देगा. इससे लोगों को सस्ता इलाज मिल सकेगा.
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अटल आयुष्मान योजना ने सरकारी अस्पतालों का दबाव कम किया: यह बात भी सच है कि पिछले कुछ समय में सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों का समय पर आना और स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी होना जारी है. यही कारण है कि गरीब और मिडिल क्लास परिवार सरकारी सिस्टम पर कुछ भरोसा कर पा रहे हैं, लेकिन इसकी रफ्तार बेहद धीमी है. देहरादून राजधानी होने के कारण बाकी जिलों के लिहाज से कुछ बेहतर स्थिति में दिखाई देता है. हालांकि राजधानी के रूप में उसके हालात और बेहतर हो सकते थे, लेकिन अटल आयुष्मान योजना ने काफी हद तक सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर दबाव कम किया है.